
लंदन की रियल एस्टेट कंसल्टेंसी- नाइट फ्रैंक, जो पूरी दुनिया में काम करती है, उसने भारत में हाल में एक सर्वे किया. उसकी रिपोर्ट थिंक इंडिया थिंक रिटेल 2024 नाम से आई. ये कहती है कि देशभर में जॉम्बी या गोस्ट मॉल बेहद तेजी से बढ़ रहे हैं. लंबे-चौड़े ये कॉम्प्लेक्स खाली पड़े रहते हैं, दुकानें तो होती हैं, लेकिन आता-जाता कोई नहीं. साल 2023 में ऐसे भुतहा मॉलों की संख्या 57 से बढ़कर 64 हो गई.
क्या है गोस्ट या डेड मॉल
इसे जॉम्बी मॉल भी कहते हैं, जहां आने-जाने वाले बेहद कम होते हैं. ऐसा हमेशा से नहीं होता, लेकिन वक्त के साथ कुछ न कुछ ऐसा होता है कि मॉल खाली रहने लगते हैं. बाजार की बोली में समझें तो जॉम्बी मॉल में कम फुटफॉल के साथ-साथ 40 प्रतिशत दुकानें खाली रहती हैं.
क्या कहता है सर्वे
नाइट फ्रैंक ने 29 टॉप शहरों में ये सर्वे किया. इस दौरान 340 शॉपिंग सेंटरों की पड़ताल हुई. इसमें पता लगा कि 8 शहरों में ऐसे 64 मॉल्स हैं, जो लगभग खाली पड़े रहते हैं. इसमें दिल्ली-एनसीआर में सबसे ज्यादा 21 मॉल्स जॉम्बी हो चुके, जिसके बाद बेंगलुरु, मुंबई और कोलकाता का नंबर है. पांचवे नंबर पर हैदराबाद है, जहां 5 ऐसे शॉपिंग सेंटर हैं. लेकिन वहां जॉम्बी मॉल्स की संख्या कम हो रही है.
रिपोर्ट के अनुसार, 13.3 मिलियन वर्ग फुट शॉपिंग स्पेस वाले लगभग 64 शॉपिंग मॉल खाली हैं, जिसकी वजह से साल 2023 में डेवलपर्स को 6,697 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. बहुत से छोटे मॉल अब बंद हो रहे हैं. या उन्हें तोड़कर नए स्ट्रक्चर बनाए जाने लगे.
क्यों बढ़ डेड मॉल्स
इंटरनेट क्रांति के बाद धीरे-धीरे भारतीय ग्राहकों के सोचने का तरीका भी बदला. उत्पाद चुनने की उनकी आदत और चयन में भी बदलाव हुआ. आज सोशल मीडिया के दौर में लोग ‘ट्रेंडी उत्पाद’ खरीदते हैं- ट्रेंडी पहनते हैं, लेकिन मॉल इन जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते. दरअसल, मॉल के स्टोर अपने सामान को महीने के अंतराल पर या फिर 3 या 6 महीने के फर्क पर बदलते हैं जबकि ई-कॉमर्स वेबसाइट अपना कैटलॉग हर दिन- हर घंटे अपडेट कर सकते हैं- करते भी हैं. ऐसे में अब लोग ट्रेंडी लेने के लिए- अलग-अलग वैरायटी का लेने के लिए ई-कॉमर्स वेबसाइट पर जाते हैं. इससे भी मॉल डेड हो रहे हैं.
ये भी दिख रहा है कि वही शॉपिंग मॉल जॉम्बी में बदल रहे हैं, जो छोटे हैं और कम सुविधाएं या कम स्टोर हैं. खराब एक्सटीरियर वाले मॉल्स से भी लोग दूर हो रहे हैं. इनकी जगह हाई-ग्रेड शॉपिंग सेंटर ले चुके. कई और छुटपुट कारण हैं, जैसे पार्किंग के लिए जगह न दे पाने की वजह से भी यहां लोग नहीं आ रहे.
लेकिन सबसे बड़ी वजह रही कोरोना. लॉकडाउन के दौरान काफी समय तक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बंद रहे. उनके खुलने के बाद भी काफी समय तक ग्राहक बीमारी के डर से वहां जाने से बचते रहे. इस दौरान हुए घाटे की वजह से काफी सारे स्टोर बंद हो गए, जिनमें से अधिकतर बाद में शुरू नहीं हो पाए.
आगे भी दिख रहा खतरा
सर्वे ये भी कह रहा है कि आने वाले दिनों में देश में 132 मॉल्स डेड हो सकते हैं. पिछले साल यहां 36 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा खाली पड़ा था. अच्छा शॉपिंग एक्सपीरियंस न होने के चलते लोगों का आना भी कम हो चुका था. जगह घेरकर भी मुनाफा न दे पाने वाले इन शॉपिंग सेंटरों को या तो तोड़कर नई चीजें बनाई जा रही है, या उन्हें ही तोड़कर नए सिरे से बनाया जा रहा है ताकि हाई-ग्रेड मॉल को टक्कर दे सकें.
क्या हैं अमेरिका के हाल
शॉपिंग मॉल कंसेप्ट के जनक माने जाते विक्टर ग्रुअन ने दावा किया था कि मॉल्स शहरी जीवन की धुरी बन जाएंगे. जहां मॉल होगा, उसके आसपास ही रिहाइशी इमारतें, स्कूल, अस्पताल और सबकुछ बनेगा. विएना के इस आर्किटेक्ट ने अमेरिका में पचास के दशक के आखिर में दुनिया का पहला शॉपिंग मॉल तैयार करवाया. इसके बाद मॉल्स की बाढ़ आ गई. नब्बे के दशक में एक साल में देश में लगभग डेढ़ सौ शॉपिंग सेंटर बन रहे थे. लेकिन साल 2007 के बाद मंदी ने इसमें कमी लाई. ऑनलाइन शॉपिंग में लोगों की दिलचस्पी बढ़ने के साथ वहां भी डेड मॉल्स बढ़ रहे हैं.
अब हालात ये हैं कि अमेरिका की 68% आबादी किसी न किसी डेड मॉल से न्यूनतम एक घंटे की दूरी पर है.
ईसापूर्व भी होते थे मॉल
खरीदारी के लिए मॉल का कंसेप्ट नया नहीं. प्राचीन रोम के साउथडेल सेंटर में ट्रेजन मार्केट नाम का शॉपिंग कॉम्प्लेक्स था. ये ईसापूर्व पहली सदी की बात है. इसमें कई मंजिला इमारतें थी, जहां शराब, फल-सब्जियां, तेल-मसालों से लेकर गहने भी बिका करते थे. आगे चलकर इस्तांबुल और दमिश्क में भी शॉपिंग मॉल से मिलती-जुलती इमारतें बनी थी. अब भी वास्तुकला को देखने के लिए यहां दुनियाभर के लोग आते हैं. यहां प्राचीन समय के इन शॉपिंग सेंटरों की वास्तु को देखें तो भी इंटीरियर और एक्सटीरियर पर काम दिखता है. यहां बीच-बीच में मूर्तियां, पानी के हौद बने हुए हैं. साथ में काफी स्पेस भी है, जैसा आधुनिक सेंटरों में होता है.