
धारा 370 हटने के बाद भी कश्मीर में इसे लेकर कसमसाहट बाकी है. नए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी इस मांग को आगे ले जा रहे हैं. अब इस खेमे में एक और नाम जुड़ गया, शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का. उनका कहना है कि इससे पहले कश्मीर में रणबीर दंड संहिता थी, जिसमें गोकशी पर कड़ी सजा थी. लेकिन धारा 370 के रद्द होने के साथ ही यहां भी देश के बाकी हिस्सों की तरह दंड संहिता आ गई. यहां जानने की बात है कि आईपीसी (अब बीएनएस) के मुकाबले रणबीर दंड संहिता क्या थी, और कैसे करती थी काम.
देशभर में कानूनी मामलों में अदालतें कुछ समय पहले तक आईपीसी के तहत कार्रवाई करती रहीं. कुछ ही महीने पहले इसकी जगह बीएनएस ने ली, जिसमें थोड़े-बहुत फेरबदल हैं. लेकिन जम्मू-कश्मीर वो राज्य था, जहां आईपीसी ने कभी दखल नहीं दिया. बल्कि इसकी जगह रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) का इस्तेमाल किया जाता रहा. धारा 370 हटने के साथ ये कानून भी इतिहास बन गया.
घाटी में रणबीर दंड संहिता, जिसे कई बार रणबीर आचार संहिता भी कहा जाता रहा, ब्रिटिश समय से लागू रही. दरअसल आजादी से पहले जम्मू-कश्मीर एक रियासत थी, जिस दौरान यहां डोगरा राजवंश का शासन था. तब महाराजा रणबीर सिंह इसके शासक हुआ करते थे. उन्हीं के नाम पर इस क्षेत्र में आरपीसी लागू हुई. इसमें कई नियम आईपीसी से काफी अलग थे. मान सकते हैं कि ये उस इलाके की सोच के हिसाब से कस्टमाइज किए हुए थे.
इस दंड संहिता में फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन पर साफतौर पर बंदिशें थीं, जबकि संविधान हमें इसकी आजादी देता है. इसके तहत अगर कोई ऐसा भाषण दे, जिससे किसी धर्म, जाति को ठेस पहुंचे तो उसे सजा मिल सकती थी. अगर कोई शख्स सरकार के खिलाफ उकसाने वाले बयान दे तो यह भी क्राइम था. कुल मिलाकर, रणबीर दंड संहिता में अभिव्यक्ति की आजादी की उतनी साफ स्वीकृति नहीं थी और नफरत या हिंसा भड़काने के आरोप में लोगों पर जुर्माने से लेकर जेल की सजा भी हो सकती थी.
रणबीर दंड संहिता में रेप पर भी स्पष्ट बात नहीं मिलती थी. इसमें महिला के कंसेंट का कोई जिक्र नहीं था. जबकि बाकी देश में लागू कानून में यह साफ था कि संबंधों के लिए महिला का सहमति जरूरी है और किन हालातों में सहमति वैध नहीं. घाटी में लागू कानून में माइनर्स के साथ रेप पर भी अलग से परिभाषा नहीं थी. हालांकि रणबीर दंड संहिता में रेप के लिए सजा का प्रावधान था, लेकिन वो आईपीसी के मुकाबले कम सख्त था.
इसमें दहेज पर भी कोई खास प्रावधान नहीं था, जबकि कई दशकों तक घाटी में दहेज की वजह से हो रही मौतों पर बात होती रही. काफी बाद में यहां दहेज निषेध अधिनियम आया तो लेकिन वो लागू धारा 370 के हटने के बाद ही हो सका.
इसपर कई बार विवाद भी हुए
- जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर भी रणबीर दंड संहिता का जिक्र आया था. तब यह सवाल उठा था कि क्या राज्य को अपनी अलग दंड संहिता रखने का हक है.
- नब्बे के दशक में महिलाओं में भेद पर काफी तनाव हुआ था. बलात्कार और घरेलू हिंसा जैसे मामलों में रणबीर दंड संहिता में कई कमियां थीं, जिसपर महिलाओं पर काम करने वाली संस्थाएं नाराज थीं.
- कई बार इसपर धार्मिक पक्षपात का भी आरोप लगा. खासकर नब्बे में हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन के दौरान. या फिर अमरनाथ भूमि विवाद के दौरान.
अब बात करते हैं, उस पॉइंट की, जिसका जिक्र शंकराचार्य कर रहे हैं. ये सच है कि रणबीर दंड संहिता में खासतौर पर गौ हत्या पर सख्त प्रावधान थे. कानून के तहत, यदि कोई शख्स जानबूझकर या गैर-इरादतन भी गाय की हत्या कर दे, तो उसे सजा मिलती थी. अगर किसी ने गाय के साथ दूसरी तरह की क्रूरता की, उसे बंदी बनाकर रखा, या पर्याप्त देखरेख नहीं की तब भी सजा थी.
गौ हत्या पर सजा देते समय घाटी में कई बार तनाव पैदा हो चुका था. अस्सी से नब्बे के दशक के बीच जब दो समुदायों के बीच धार्मिक तनाव बढ़ा, तब इसे लेकर भी खासी तनातनी हुई थी. साल 2015 में कश्मीर में गौ मांस तस्करी का एक बड़ा मामला सामने आया था. जब प्रशासन से इसपर एक्शन लेना शुरू किया तो मुस्लिम समुदाय इसके विरोध में उतर आया. इस समय वहां काफी प्रोटेस्ट भी हुए थे.
शंकराचार्य का ये कहना काफी हद तक ठीक है कि आईपीसी में, या फिर अब के नए कानून में गौ हत्या पर सीधे तौर पर कोई विशेष प्रावधान नहीं. संविधान का अनुच्छेद 48 राज्यों को खेती और पशुपालन के लिहाज से गायों और बछड़ों की हत्या पर रोक लगाने के लिए कदम उठाने की बात करता है लेकिन इसपर सीधा प्रतिबंध खुद नहीं लगाता. इसकी जगह कई राज्यों ने गौ हत्या पर रोक लगाने के लिए अपने-अपने कानून बनाए.
कई स्टेट में इसपर पक्की पाबंदी है, जबकि कहीं-कहीं कानून कम सख्त हैं. इसकी बजाए, अगर गौ हत्या से सार्वजनिक शांति भंग हो, या सांप्रदायिक तनाव बढ़े, तो अलग धाराएं जरूर लागू की जाती हैं.