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भारत का वो प्रोजेक्ट जिसे लेकर भिड़ गए तालिबानी और हक्कानी!

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच अनबन है. ये अनबन कई अहम आर्थिक प्रोजेक्ट्स पर नियंत्रण को लेकर हो रही है. इनमें तापी प्रोजेक्ट भी शामिल है, जिसमें भारत हिस्सेदार है.

सिराजुद्दीन हक्कानी और मुल्ला बरादर. (फाइल फोटो-AP/PTI) सिराजुद्दीन हक्कानी और मुल्ला बरादर. (फाइल फोटो-AP/PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 जून 2023,
  • अपडेटेड 3:03 PM IST

अफगानिस्तान की तालिबान सरकार में आपसी तनाव बढ़ गया है. ये तनाव अफगानिस्तान में चल रहे अहम आर्थिक प्रोजेक्ट्स पर नियंत्रण को लेकर है. इनमें से एक तापी प्रोजेक्ट भी है, जिसमें भारत भी हिस्सेदार है. 

दरअसल, हक्कानी नेटवर्क का मुखिया और तालिबान सरकार में कार्यवाहक गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी तापी प्रोजेक्ट पर अपना नियंत्रण चाहता है. लेकिन कार्यवाहक उप प्रधानमंत्री मुल्ला बरादर उसके प्लान को फेल करने में जुटा है.

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दरअसल, संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि हक्कानी अफगानिस्तान में चल रही अहम आर्थिक परियोजनाओं पर अपना नियंत्रण लेना चाहता है. इनमें तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया (TAPI) प्रोजेक्ट भी शामिल है.

रिपोर्ट में क्या कहा गया?

- संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि सिराजुद्दीन हक्कानी और मुल्ला बरादर के बीच कथित तौर पर अनबन चल रही है.

- रिपोर्ट में कहा गया है कि हक्कानी अफगानिस्तान में चल रहे बड़े प्रोजेक्ट्स पर नियंत्रण की मांग कर रहा है. खासकर कि तापी प्रोजेक्ट.

- इस वजह से हक्कानी और बरादर में अनबन चल रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, बरादर का सरकार पर असर कम है, लेकिन दक्षिणी प्रांत के प्रशासन में उसका अच्छा-खासा दबदबा है.

- इसके अलावा बरादर तालिबान को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने की कोशिश में जुटा है, ताकि विदेश में फ्रीज हुई संपत्तियों और दूसरे कारोबारी सामानों का इस्तेमाल किया जा सके.

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काबुल बनाम कंधार

- संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि तालिबान सरकार में दो पावर सेंटर बन गए हैं. एक है काबुल गुट और दूसरा है कंधार गुट.

- कंधार गुट में हिबतुल्लाह अखुंदजादा और उसके करीबी मौलवी शामिल हैं. जबकि, काबुल गुट में हक्कानी समेत सरकार में शामिल कई मंत्री हैं.

- कंधार वाला गुट जहां खुद को बाकी दुनिया से अलग रखना चाहता है तो दूसरी ओर काबुल का गुट अंतरराष्ट्रीय मेलजोल बढ़ाने की इच्छा रखता है.

तापी पर नियंत्रण को लेकर खींचतान क्यों?

- तालिबानी और हक्कानी, दोनों ही तापी प्रोजेक्ट पर अपना नियंत्रण चाहते हैं. इसे लेकर दोनों की अपनी-अपनी वजहें हैं.

- दरअसल, हक्कानी नेटवर्क चाहता है कि उसे तापी प्रोजेक्ट पर नियंत्रण मिल जाए, ताकि इसके सहारे एक बड़े आर्थिक स्रोत पर उसका नियंत्रण रहे.  ताकिआने वाले वक्त में वह पाकिस्तान, भारत, तुर्कमेनिस्तान जैसे पड़ोसी मुल्कों पर दबदबा बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल कर सके.

- वहीं, मुल्ला बरादर इसे तालिबान को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने वाले प्रोजेक्ट के तौर पर देख रहा है. इस प्रोजेक्ट में चार देश शामिल हैं. अगर इस प्रोजेक्ट पर तालिबान की पकड़ होती है तो वो इसके जरिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने की कोशिश तेज कर सकता है. ताकि वो भारत-पाकिस्तान-तुर्कमेनिस्तान के साथ समझौते की टेबल पर बैठ सके और इसे तालिबान शासन को अंतरराष्ट्रीय मान्यता के तौर पर दुनिया को दिखा सके.

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क्या है तापी प्रोजेक्ट?

- तापी या TAPI यानी तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया. पहले इसको ट्रांस-अफगानिस्तान पाइपलाइन प्रोजेक्ट के नाम से जाना जाता था. लेकिन बाद में पाकिस्तान और भारत के शामिल होने के बाद इसका नाम तापी (TAPI) हो गया. 

- इस पाइपलाइन प्रोजेक्ट के लिए चारों देशों ने मिलकर एक कंपनी भी बनाई है. इस कंपनी का नाम Galkynysh-TAPI पाइपलाइन कंपनी लिमिटेड है. इस प्रोजेक्ट में एशियन डेवलपमेंट बैंक भी पार्टनर है.

- ये गैस पाइपलाइन अफगानिस्तान और पाकिस्तान से होते हुए तुर्कमेनिस्तान से भारत पहुंचेगी. तुर्कमेनिस्तान की Galkynysh गैस फील्ड से गैस की सप्लाई होगी. ये पूरी पाइपलाइन 1,814 किलोमीटर लंबी होगी.

- तुर्कमेनिस्तान से अफगानिस्तान तक इस पाइपलाइन की लंबाई करीब 214 किलोमीटर होगी. इसके बाद ये पाइपलाइन अफगानिस्तान के हेरात और कंधार प्रांत से गुजरेगी. अफगानिस्तान में इस पाइपलाइन की लंबाई करीब 774 किमी होगी.

- अफगानिस्तान से होते हुए पाइपलाइन पाकिस्तान के क्वेटा और मुल्तान से गुजरेगी. आखिरी में ये पाइपाइलाइन भारत के पंजाब के फजिल्का शहर तक पहुंचेगी. पाकिस्तान से भारत तक इस पाइपलाइन की लंबाई 826 किमी होगी.

किसको कितनी गैस मिलेगी?

- एशियन डेवलपमेंट बैंक के मुताबिक, इस गैस के खरीदार अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत होंगे. इन्हें ये गैस तुर्कमेनगैस से मिलेगी.

- पाइपलाइन के जरिए हर साल 33 अरब क्यूबिक मीटर गैस की सप्लाई होगी. इसमें से 5 अरब क्यूबिक मीटर गैस अफगानिस्तान को मिलेगी. जबकि, पाकिस्तान और भारत को 14-14 अरब क्यूबिक मीटर गैस की सप्लाई होगी.

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- इस पाइपलाइन प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 10 अरब डॉलर है. इस प्रोजेक्ट के पूरे होने के बाद गैस के लिए चीन और रूस पर डिपेंडेंसी कम होगी.

 

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