
साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'टीबी मुक्त भारत अभियान' की शुरुआत की थी. उस वक्त पीएम मोदी ने कहा था कि दुनिया ने टीबी को खत्म करने के लिए 2030 तक समय तय किया है, लेकिन भारत ने अपने लिए ये लक्ष्य 2025 तय किया है.
इसी साल वर्ल्ड टीबी समिट में प्रधानमंत्री मोदी ने फिर इसी बात को दोहराया था. उन्होंने कहा था कि 'टीबी खत्म करने का ग्लोबल टारगेट 2030 है. भारत अब साल 2025 तक टीबी खत्म करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है. दुनिया से पांच साल पहले. इतने बड़े देश ने इतना बड़ा संकल्प अपने देशवासियों के भरोसे लिया है.'
भारत के लिए इतना बड़ा ऐलान इसलिए भी अहम है क्योंकि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनिया में सबसे ज्यादा टीबी के मरीज भारत में ही हैं. 2025 में अब दो साल का ही वक्त बचा है. ऐसे में क्या इतने कम वक्त में हजारों साल पुरानी इस बीमारी से पीछा छुड़ा पाना संभव है? आंकड़े बताते हैं कि इस लक्ष्य को पाने में भारत को अभी शायद और वक्त लग जाए.
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, हर साल दुनिया में टीबी के जितने मरीज सामने आते हैं, उनमें से सबसे ज्यादा मामले भारत में होते हैं. डब्ल्यूएचओ की 'ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2023' की मानें तो 2022 में टीबी के 27% मामले भारत में सामने आए थे. यानी, 2022 में दुनिया में मिलने वाला टीबी का हर चौथा मरीज भारतीय था. दूसरे नंबर पर इंडोनेशिया और फिर तीसरे नंबर पर चीन है.
भारत में टीबी के कितने मरीज?
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में दुनियाभर में एक करोड़ से ज्यादा लोग टीबी की चपेट में आए. इनमें से 27% भारतीय थे.
2022 में भारत में 28.2 लाख लोग टीबी से पीड़ित हुए. इसका मतलब हुआ कि हर 11 सेकंड में एक मरीज.
भारत के बाद सबसे ज्यादा 10% मरीज इंडोनेशिया और फिर 7.1% चीन में थे. इनके बाद फिलिपींस में 7%, पाकिस्तान में 5.7%, नाइजीरिया में 4.5%, बांग्लादेश में 3.6% और कॉन्गो में 3% मरीज सामने आए.
दूसरी सबसे ज्यादा जानलेवा बीमारी- टीबी
साल 2022 में दुनियाभर में 13 लाख से ज्यादा लोगों की मौत टीबी की वजह से हुई. ये आंकड़ा भी अनुमानित ही है. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि कोविड-19 के बाद टीबी दूसरी सबसे ज्यादा जानलेवा संक्रामक बीमारी है.
जो लोग एचआईवी से संक्रमित है, उनके टीबी से संक्रमित होने और उससे मौत होने का खतरा ज्यादा होता है. एचआईवी से संक्रमित मरीजों को टीबी से मौत का खतरा 18 गुना ज्यादा होता है.
हालांकि, भारत के आंकड़े राहत वाले हैं. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में भारत में टीबी से 4.94 लाख मरीजों की मौत हुई थी, जबकि 2022 में ये आंकड़ा कम होकर 3.31 लाख पर आ गया.
इसका नतीजा ये हुआ कि 2021 में दुनियाभर में टीबी से होने वाली कुल मौतों में भारत की हिस्सेदारी जहां 36% थी, वो 2022 में घटकर 26% पर आ गई.
भारत के लिए पॉजिटिव बातें...
डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में भारत की तारीफ भी की है. डब्ल्यूएचओ ने बताया है कि भारत में टीबी के मामलों की रिपोर्टिंग में तेजी आई है. इससे टीबी मरीजों की पहचान समय पर हो रही है.
इसके अलावा, भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने नेशनल टीबी प्रिवलांस सर्वे पूरा किया है. भारत में इस सर्वे की शुरुआत 2019 में हुई थी. कोविड के कारण रुकावट आने के बावजूद ये सर्वे 2021 में पूरा कर लिया गया.
इतना ही नहीं, रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि भारत में ट्रीटमेंट कवरेज भी बढ़ा है. 2019 में यानी कोविड से पहले भारत में 70% टीबी के मरीजों को इलाज मिल पाता था, लेकिन 2022 में 80% से ज्यादा मरीजों को इलाज मिल रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक, 30 सबसे ज्यादा टीबी प्रभावित देशों में से सिर्फ चार देश ही ऐसे हैं जहां ट्रीटमेंट कवरेज 80% या उससे ज्यादा है और इसमें भारत भी शामिल है.
क्या 2025 तक पूरा होगा टारगेट?
मोदी सरकार की ओर से 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने का अभियान जोर-शोर से चल रहा है. पीएम मोदी कई मौकों पर इस बात को दोहरा भी चुके हैं. लेकिन क्या ये संभव है? डब्ल्यूएचओ का कहना है कि 2025 तक टीबी के मामलों में कमी तभी आ सकती है, जब हर साल 10% की दर से केस घटे.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2017 में 2025 तक टीबी के खात्मे के लिए एक प्लान पेश किया था. इसमें सरकार ने 2025 तक हर एक लाख आबादी पर टीबी मरीजों की संख्या 44 सीमित करने का लक्ष्य रखा है. लेकिन अभी हर एक लाख आबादी 119 टीबी मरीज हैं.