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हिजबुल्लाह, हमास, हूती...मिडिल ईस्ट में इनके अलावा कौन-कौन से आतंकी गुट, क्या सबका टारगेट सिर्फ Israel?

लेबनान में सीरियल पेजर ब्लास्ट में हिजबुल्लाह से जुड़े कई लोगों की मौत हो गई और हजारों घायल हैं. इस हमले का आरोप चरमपंथी गुट ने इजरायल पर लगाया. वैसे मिडिल ईस्ट में यह अकेला आतंकी समूह नहीं, बल्कि कई एक्सट्रीमिस्ट संगठन फैले हुए हैं. ये अलग-अलग मकसद के साथ काम करते हैं, लेकिन इजरायल सबका कॉमन दुश्मन रहा.

मध्य पूर्व में कई चरमपंथी संगठन पनप रहे हैं. (Photo- Getty Images) मध्य पूर्व में कई चरमपंथी संगठन पनप रहे हैं. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:56 AM IST

लेबनान में एक के बाद एक सैकड़ों पेजर फटने से दहशत फैल गई. ब्लास्ट में लेबनानी मिलिशिया हिजबुल्लाह के बहुत से लड़ाके घायल हुए, जबकि 10 से ज्यादा मौतें हो चुकीं. अब हिजबुल्लाह इस विस्फोट का आरोप इजरायल पर मढ़ते हुए उससे बदला लेने की बात कर रहा है. यह अकेला गुट नहीं, पूरा का पूरा मिडिल ईस्ट ही चरमपंथ के लिए उपजाऊ जमीन बना हुआ है. यहां कई संगठन हैं, जिनके मकसद और जिनके फंडर भी अलग हैं. 

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लेबनान क्यों पड़ा इजरायल के पीछे

पिछले साल अक्टूबर में हमास ने इजरायल पर घातक हमला किया, जिसमें हजारों लोग मारे गए और सैकड़ों को बंधक बना लिया गया. हमास फिलिस्तीन का आतंकी गुट है. इसके बाद इजरायल का हमलावर होना समझ आता है लेकिन फिर लेबनान का भी जिक्र होने लगा. वो भी बीच में पड़कर इजरायल को धमकाने लगा. लेकिन दो लोगों की लड़ाई में तीसरा कैसे आया? इसका जवाब इतिहास में है. 

साल 1948 में जब इजरायल अलग यहूदी देश बना तो फिलिस्तीन से हजारों लोग भागकर लेबनान पहुंच गए. इससे उस देश में अस्थिरता पैदा हुई. स्थानीय लोग नाराज हुए कि इजरायल के चलते उनके यहां भीड़ बढ़ी. दूसरी तरफ शरण लिए हुए लोग पहले से ही यहूदियों पर उखड़े हुए थे. उन्होंने लेबनान में रहते हुए ही चरमपंथी समूह बना लिए, जिनका काम इजरायल को तबाह करना था. 

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हिजबुल्लाह ऐसा ही एक गुट है, जिसे अमेरिका समेत कई देशों ने आतंकी घोषित कर रखा है.

इसकी नींव ईरान ने इजरायल को पछाड़ने के लिए अस्सी के दशक में रखी थी. यह शिया संगठन है, जो लेबनान में बेहद ताकतवर है. इसे दुनिया के सबसे ताकतवर गैर-सरकारी सैन्य ताकत की तरह भी देखा जाता रहा, जिसका काम इजरायल और उसके सहयोगियों को परेशान करना है. यह शिया विचारधारा को फैलाने के मकसद के साथ सुन्नियों की नाक में भी दम किए रखता है. चूंकि इसकी फंडिंग ईरान करता है तो कह सकते हैं कि इसका काम मिडिल ईस्ट में इस देश को सबसे शक्तिशाली बनाए रखना भी रहा. 

यमन में हूती विद्रोहियों का जिक्र भी अक्सर आता रहा

यह शिया जैदी समुदाय का हथियारबंद समूह है, जिसका मकसद है दुनिया से अमेरिका और इजरायल समेत पश्चिमी असर को खत्म करना. नब्बे के दशक में यमन के तत्कालीन प्रेसिडेंट अब्दुल्लाह सालेह को सत्ता से हटाने के लिए लोगों ने एक मुहिम शुरू की. इसकी शुरुआत हुसैन अल हूती ने की. उन्हीं के नाम पर संगठन का नाम पड़ा. ये संगठन हमास और हिज्बुल्लाह को सपोर्ट करता है क्योंकि वे अमेरिका और इजरायल के खिलाफ मोर्चाबंदी किए रहते हैं.

हमास के दो ही लक्ष्य

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गाजा से संचालित होता हमास सुन्नी चरमपंथी गुट है. साल 1988 में बनने के बाद से इसके दो ही लक्ष्य रहे- यहूदी देश को खत्म करना और जॉर्डन नदी से लेकर भूमध्य सागर तक इस्लामिक स्टेट की स्थापना. इसकी भी मदद ईरान से होती आई. साल 2020 में यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने कहा था कि ईरान इस संगठन को सालाना सौ मिलियन डॉलर देता है. 

पेलेस्टीन इस्लामिक जिहाद भी एक गुट है

ये शुरुआत में मुस्लिम ब्रदरहुड की बात करता था, फिर धीरे से इसका गोल स्पष्ट हुआ. हमास के बाद गाजा में यह सबसे बड़ा लड़ाका गुट है, जो हथियारों के बल पर यहूदियों को खत्म करने की बात करता रहा. इसके लड़ाके अच्छी ट्रेनिंग और आक्रामकता के लिए जाने जाते रहे. ईरान ही इसका भी प्राइमरी स्पॉन्सर है, जो उन्हें ट्रेनिंग और हथियार दोनों दिलवाता है. 

ये गुट साध रहे अमेरिका पर निशाना

कताइब हिजबुल्लाह इराक में एक्टिव शिया आतंकवादी संगठन है, जिसे इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स से ट्रेनिंग मिली. ये इराक में रहते हुए अमेरिका और उसके सहयोगियों को टारगेट करता रहा. जैसे साल 2007 से 2018 तक इसमें इराक में मौजूद अमेरिकी सेना पर कई हमले किए, इसमें ड्रोन अटैक भी शामिल है. 

इराक में ही असैब अल-हक जैसे शिया गुट हैं, जो मिडिल ईस्ट से अमेरिका के पैर उखाड़ने में जुटे रहे. इसे इराक के साथ-साथ ईरान का भी सपोर्ट मिला हुआ है. वैसे फंडिंग के साथ ये आपराधिक गतिविधियों से भी पैसे कमाता रहा. 

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क्या दिक्कत है मध्य-पूर्व के साथ

मिडिल ईस्ट में एक साथ इतने सारे आतंकी संगठनों के पनपने के पीछे उसका धार्मिक-राजनैतिक इतिहास है. यहां कई देश लगातार धर्म को लेकर आपस में लड़ रहे हैं आग में घी डालने के लिए फॉरेन फैक्टर्स भी इसमें शामिल हो जाते हैं, जैसे अमेरिका और कई पश्चिमी देश मुस्लिम चरमपंथ के खिलाफ इजरायल को सपोर्ट करते रहे. इससे लड़ाई शांत होने की बजाए भड़कती ही रही. देशों के खुद के भीतर ही कई गुट हैं, जो राजनैतिक फायदे के लिए आपस में लड़-भिड़ रहे हैं. यहां तक कि कई देशों के राजनैतिक गुटों ने ही प्रॉक्सी संगठन बना रखे हैं जो हथियारों के दम पर डर पैदा करें, जिससे सत्ता उनके हाथ में आ सके.

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