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Jammu: पुंछ में सेना की गाड़ी पर जिसने किया हमला, उस आतंकी संगठन PAFF का क्या है कच्चा चिट्ठा?

पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट जम्मू कश्मीर में एक्टिव आतंकी संगठन है. यह संगठन 2019 में जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के बाद चर्चा में आया था. इसे पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का समर्थित संगठन बताया जाता है.

पुंछ में सेना की गाड़ी पर आतंकी हमला हुआ था. (फाइल फोटो-PTI) पुंछ में सेना की गाड़ी पर आतंकी हमला हुआ था. (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 9:45 AM IST

जम्मू कश्मीर के पुंछ में गुरुवार को सेना की गाड़ी पर हुए आतंकी हमले में पांच जवान शहीद हो गए हैं. एक घायल जवान का अस्पताल में इलाज चल रहा है. इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (PAFF) ने ली है. इसे पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का समर्थित संगठन बताया जा रहा है. 

पीएएफएफ जम्मू कश्मीर में एक्टिव आतंकी संगठन है. पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट 2019 में जैश के प्रॉक्सी आउटफिट के तौर पर उभरा था. तभी से यह देशभर में विशेष रूप से जम्मू कश्मीर में आतंकी हमलों को अंजाम दे रहा है. यह पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा हुआ है.

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यह संगठन पहली बार 2019 में ही जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के बाद सामने चर्चा में आया था. PAFF समय-समय पर सेना और सरकार को कई धमकियां भी दे चुका है. साल 2020 में संगठन ने वीडियो जारी कर कश्मीर में इजरायल की ओर से  दो सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किए जाने पर धमकी दी थी. 

जम्मू कश्मीर में होने वाली G -20 बैठक से आगबबूला था PAFF

जम्मू कश्मीर में मई महीने में G-20 की बैठक होने वाली है. PAFF इसे लेकर आगबबूला था और वह बैठक को लेकर चेतावनी भी जारी कर चुका था. 

J-K: पुंछ में सेना की गाड़ी पर आतंकी हमला, अब तक 5 जवान शहीद, PAFF ने ली जिम्मेदारी

पीएएफएफ के हमले

पीएएफएफ ने जम्मू कश्मीर में पहले भी कई हमलों को अंजाम दिया है. तीन जून 2021 को बीजेपी नेता राकेश पंडिता की हत्या में इसी संगठन का हाथ था. यह ऐसा मामला था, जिससे यह संगठन सरकार की रडार पर आ गया था. इसके बाद 11 अगस्त 2021 को संगठन ने एक बार फिर राजौरी जिले में सेना पर हमला किया.

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यह आतंक यहीं नहीं रुका. इसके ठीक एक महीने बाद 11 अक्टूबर 2021 को मेंढार में पुंछ जिले में भारतीय जवानों पर हमला किया गया था, जिसमें सेना के 9 जवान शहीद हो गए थे. इस हमले की जिम्मेदारी भी पीएएफएफ ने ली थी. 

तीन अक्टूबर 2022 को जम्मू कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (जेल) हेमंत लोहिया की उनकी घर में घुसकर हत्या कर दी गई थी. यह हत्या ऐसे समय पर की गई थी, जब गृहमंत्री जम्मू कश्मीर के दौरे पर थे. 

गृह मंत्रालय लगा चुका है बैन

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू कश्मीर में आतंकी हमलों में संलिप्तता के लिए इस साल जनवरी महीने में पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट पर बैन लगा दिया था. 

मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर कहा था कि पीएएफएफ सुरक्षाबलों, नेताओं और जम्मू कश्मीर व अन्य राज्यों के नागरिकों के लिए लगातार खतरा बना हुआ था. यह अन्य संगठनों के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर और देश के अन्य प्रमुख शहरों में आतंकी हमलों में शामिल रहा है. 

घाटी में पिछले 5 साल में हुए इतने आतंकी हमले

पिछले साल जुलाई में मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि 2019 के बाद आतंकी हमलों और गतिविधियों में कमी आई है. जम्मू और कश्मीर में 2018 में 417 आतंकी हमले हुए थे, जो 2021 तक घटकर 229 हो गए थे.

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लोकसभा में दिए जवाब में मंत्री ने कहा कि था कि साल 2019 में 154 आतंकी मारे गए. 80 जवान शहीद हुए. साल 2020 में जम्मू और कश्मीर में 244 आतंकी हमले हुए. 221 आतंकी मारे गए. 62 जवान शहीद हो गए थे. 106 जवान जख्मी हुए थे. इन हमलों में सिर्फ जवान ही शहीद नहीं हुए. बल्कि 37 आम नागरिक मारे गए और 112 लोग घायल हुए थे.

आतंकी संगठन ऐसे लेते हैं जिम्मेदारी

हमले के बाद आतंकी संगठन उसकी जिम्मेदारी भी लेते हैं. इसका खास तरीका है. ISIS की अपनी न्यूज एजेंसी है, जिसका नाम है अमाक. इसमें ब्रेकिंग न्यूज से लेकर इस्लामिक कायदों की भी बात होती है. वीडियो और लिखित में भी खबरें आती हैं. हालांकि ये टीवी पर नहीं आता और हर कोई इसे नहीं देख सकता, बल्कि इसके लिए संगठन ही पर्मिशन देता है. ये एक तरह से वैसा ही है, जैसे किसी खास ग्रुप में जोड़ा जाने पर ही आप वहां की एक्टिविटी देख सकें. हमले के बाद इसकी खबर और जिम्मेदारी अमाक न्यूज एजेंसी पर संगठन लेता है.

लेकिन जिम्मेदारी लेने से क्या होता है?

ये आतंकी संगठन हैं, जिनका काम ही झूठ और कत्लेआम मचाना है. फिर हमले के बाद ये लोग सच क्यों बोलते हैं? इसकी भी वजह है. फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज के अनुसार टैररिस्ट ग्रुप्स के लिए ये वैसा ही है, जैसा किसी कंपनी के लिए साल के आखिर में अपना प्रॉफिट गिनाना. वे इसे अपनी उपलब्धि की तरह देखते हैं. अगर कोई समूह बताएगा कि उसने फलाने बड़े देश में बड़ा धमाका कर दिया, तो बाकी जगहों पर उसका खौफ बढ़ जाएगा. सरकारें भी उससे डरेंगी और चाहेंगी कि कहीं न कहीं नेगोशिएट हो जाए.

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फंडिंग आसान हो जाती है

इससे उन्हें एक फायदा ये भी होता है कि एक जैसी सोच वाले छोटे समूह भी उससे मिल जाते हैं. इससे ताकत और बढ़ती है. फंडिंग मिलने में भी इससे आसानी होती है. समान एजेंडा वाले ग्रुप, जो बाहर से सफेदपोश होते हैं, वे ऐसे संगठनों को पैसे देते हैं. इससे ब्लैक मनी भी नहीं दिखती और काम भी बन जाता है. जैसे मान लीजिए कि इस्लामिक स्टेट को हथियार खरीदने या मिलिटेंट्स की ट्रेनिंग के लिए पैसे चाहिए, तो इसमें मदद तभी मिलेगी, जब वे खुद को आतंक की दुनिया में स्थापित कर लें.

कई बार आतंकियों को भी सफाई देने की जरूरत पड़ जाती है

अमेरिका में 9/11 के दौरान वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में कई मुस्लिम भी मारे गए. इसपर एक पाकिस्तानी पत्रकार को इंटरव्यू देते हुए अलकायदा के चीफ ओसामा बिन लादेन ने कहा था कि अफसोस तो है लेकिन इस्लामिक कानून के मुताबिक मुस्लिमों को काफिरों की जमीन पर ज्यादा दिनों तक नहीं रहना चाहिए था. वे रहे, इसी की सजा उन्हें भी मिली.

बहुत से ऐसे आतंकी हमले होते हैं, जिनकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेता

ये या तो किसी आतंकी संगठन की सोच से प्रेरित एक या दो व्यक्ति होते हैं, या फिर संगठन खुद ही होता है. लेकिन कुछ खास हालातों में वो जिम्मेदारी नहीं लेता. जैसे अगर मुस्लिम चरमपंथी संगठन है, और हमले में उनका ही नुकसान हो जाए, तब वे लोगों के गुस्से से बचने के लिए चुप्पी साधे रहते हैं. कई बार उन्हें ये डर भी होता है कि कहीं उनके ही मिलिटेंट उनसे बगावत न कर बैठें, तब भी नुकसान के बाद वे जिम्मेदारी लिए बिना बैठे रहते हैं.

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