
थाईलैंड वैसे तो बौद्ध बहुल देश है, लेकिन हिंदू रीति-रिवाज वहां खूब दिखते हैं. वहां के शाही परिवार में भी बहुत सी परंपराएं हिंदुओं से मिलती-जुलती हैं. प्राण प्रतिष्ठा के लिए अयुथ्या से भी मिट्टी भेजी गई. खुद राम जन्मभूमि ट्रस्ट के जनरल सेक्रेटरी चंपत राय बोल चुके हैं कि अयुथ्या और कुछ नहीं, बल्कि थाइलैंड की अयोध्या है. जानिए, क्या दोनों की सांस्कृतिक और धार्मिक आस्था में क्या है संबंध.
सदियों पहले से बसे हुए हिंदू
दक्षिण एशियाई देश थाइलैंड में करीब 95 प्रतिशत आबादी बौद्ध है, जबकि हिंदू 1 प्रतिशत से भी कम हैं. इसके बाद भी वहां ढेर सारे हिंदू मंदिर दिखते हैं. इनमें से ज्यादातर काफी प्राचीन हैं. इससे साफ होता है कि थाई देश में काफी पहले हिंदू पहुंच चुके होंगे.
वैसे उनके पहुंचने के बारे में अलग-अलग मत हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों का मानना है कि 6वीं सदी से ही आवाजाही शुरू हो चुकी थी. आगे चलकर 19वीं सदी में ये बढ़ा, जब रत्नों और टैक्सटाइल के व्यापारी भारत से थाइलैंड जाने लगे. साल 890 में पंजाब से सिख और हिंदू दोनों वहां पहुंचे.
थाई लिपि और कई दूसरी दक्षिण एशियाई लिपियां पुरानी तमिल पल्लव लिपि से निकली मानी जाती हैं. इसके अलावा वहां के लोगों के लिए, संस्कृत एक पवित्र भाषा है. वहां के नाम भी कुछ इसी तर्ज पर होते हैं. पहले राजाओं के नाम ही संस्कृतिनिष्ठ हुआ करते थे, लेकिन फिर ये चलन आम लोगों तक आ गया. अब भी राजाओं के नाम राम 1, राम 2 जैसे होते हैं. साल 1782 से नाम के साथ राम जोड़ने का परंपरा चली आ रही है.
थाईलैंड में रामाकिएन का मंचन होता है जिसे थाई रामायण का दर्जा दिया गया. वैसे दोनों में कई अंतर भी हैं. रामाकिएन में फ्रा राम वहीं है जो भगवान राम हैं. थाइलैंड के साहित्य, कला और नाटकों पर रामकथा का गहरा प्रभाव है. लेकिन वहां इसके पहुंचने का रास्ता कुछ अलग और काफी पुराना रहा, इसलिए मूल कथा एक होकर भी रामकथा में चरित्र कुछ अलग हो जाते हैं.
अब बात करते हैं अयुथ्या की. इस देश में 9वीं सदी के दौरान खमेर साम्राज्य आया. ये कंबोडिया से थाइलैंड पहुंचा था और हिंदू धर्म का साफ प्रभाव था. तब वहां के राजा जयवर्मन थे, जो इसी धर्म को मानने वाले थे. इससे थाई लोगों पर भी इसका असर होने लगा. अयुत्थाया को तब थाइलैंड की प्राचीन राजधानी बनाया गया. इसका नाम पहले कुछ और था, जो अयुथ्या हो गया. 15वीं सदी के मध्य तक ये शासन बना रहा.
इसी दौरान राम और विष्णु के काफी सारे मंदिर भी बने, जो अब भी बाकी हैं. यहां तीन नदियां भी हैं, जिनके नाम हैं- लोप बुरी, पा साक और चाओ फ्रआ. मंदिर ट्रस्ट को इन तीन पवित्र नदियों का जल भेजा गया था.
थाईलैंड में दो थाई ब्राह्मण समुदाय हैं- ब्रह्म लुआंग और ब्रह्म चाओ बान. ये वैसे तो बौद्ध धर्म को मानते हैं, लेकिन पूजा-पाठ लगभग उसी तरह से करते हैं. लुआंग राजसी समारोहों का हिस्सा होते हैं, राज्याभिषेक या दूसरी शाही रस्में इनके जिम्मे होती हैं. वहीं ब्रह्म चाओ बान आम लोगों के लिए काम करते हैं. यहां बता दें कि अयुथ्या समेत पूरे थाइलैंड में मंदिरों में हिंदू तो आते ही हैं, लेकिन बौद्ध धर्म के लोग भी वहां उतनी ही आस्था से आते हैं. यहां भी पूजा पाठ की विधियां वैसी ही हैं, जैसे फूल और भोग अर्पित करना, या धूप-दिया जलाना.