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हर पांच में से एक अल्ट्रा रिच विदेश में बसने की सोच रहा, क्या है ये क्लास और इसके बाहर जाने से क्या बदल जाएगा?

एक नए सर्वे में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि जिनकी संपत्ति 25 करोड़ रुपयों से ज्यादा है, वे या तो भारत छोड़ने का मन बना चुके या इस प्रोसेस में हैं. ये वर्ग अल्ट्रा हाई नेट वर्थ इनडिविजुअल्स (UHNIs) का है. एक निजी बैंक के सर्वे में हर पांच में से एक अल्ट्रा अमीर ने माइग्रेट होने का इरादा दिखाया.

देश में अमीर वर्ग तेजी से बाहर बस रहा है. (Photo- Unsplash) देश में अमीर वर्ग तेजी से बाहर बस रहा है. (Photo- Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 28 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 5:11 PM IST

भारत खुद बांग्लादेश या म्यांमार से अवैध तौर पर आने वालों से परेशान है. इस बीच एक सर्वे बता रहा है कि हमारे अपने ही देश से माइग्रेशन तेजी से हो रहा है. केवल पढ़ने या अच्छी नौकरी के लिए लोग नहीं जा रहे, बल्कि सबसे अमीर क्लास के लोग भी देश छोड़ रहे हैं. अल्ट्रा हाई नेट वर्थ इनडिविजुअल्स में आता ये वर्ग कुछ खास देशों की तरफ जा रहा है, जहां नागरिकता या लंबा वीजा आसान हो, और टैक्स में भी छूट मिल सके.  

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क्या कहता है सर्वे

विदेश मंत्रालय का डेटा बताता है कि हर साल लाखों भारतीय माइग्रेट कर जाते हैं. इनमें एक छोटा हिस्सा अल्ट्रा वेल्दी यानी बेहद अमीर लोगों का भी है. कोटक प्राइवेट बैंकिंग ने 12 शहरों के लगभग डेढ़ सौ अल्ट्रा अमीरों से बातचीत की. इसमें पाया गया कि हर पांच में से एक शख्स माइग्रेट करने की सोच रहा है. इनमें से ज्यादातर लोग अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूएई जा रहे हैं या ऐसी प्लानिंग कर रहे हैं. 

क्यों बने ये देश प्राथमिकता

इनमें से कई देशों में नागरिकता आसान है, या फिर पैसे देकर लंबा वीजा खरीदा जा सकता है. मसलन, यूएई की बात करें तो गोल्डन वीजा स्कीम के तहत विदेशी नागरिक 10 साल तक बिना लोकल स्पॉन्सर के रह सकते हैं और अपना बिजनेस बढ़ा सकते हैं. इस वीजा को लेने वाले अपने परिवार लेकर भी आसानी से आ सकते हैं. यही वजह है कि हमारे यहां के अमीर दुबई शिफ्ट हो रहे हैं. इससे उन्हें टैक्स में भी फायदा मिलता है. अमेरिका ने भी हाल में गोल्ड कार्ड शुरू किया जो सिटिजनशिप बाई इनवेस्टमेंट का ही तरीका है. 

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अमीरों के माइग्रेट होने के मामले में हम दूसरे नंबर पर हैं. टॉप पर चीन है. साल 2023 में 13 हजार से ज्यादा अमीर लोगों ने चीन छोड़ा. वहां हर चीज पर सरकारी कंट्रोल, कम आजादी, टैक्स पॉलिसी और बिजनेस पर पाबंदियों की वजह से अल्ट्रा रिच देश से जा रहे हैं. इसके बाद भारत है, जहां साल 2023 में साढ़े छह हजार लोगों ने देश छोड़ा. टैक्स से बचने के अलावा बेहतर लाइफ स्टाइल भी बड़ा कारण है, जो लोग तेजी से विदेशों की तरफ जा रहे हैं. 

हालांकि दिलचस्प बात ये है कि ज्यादातर अमीरों ने माना कि भले ही वे विदेशों में बसना चाहते हैं लेकिन अपनी भारतीय नागरिकता भी नहीं छोड़ना चाहते. ये बात अलग है कि भारतीय संविधान ड्यूल सिटिजनशिप को मंजूरी नहीं देता. यानी अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे देश की नागरिकता लेता है, तो उसे भारतीय नागरिकता छोड़नी होगी. 

देश ओवरसीज सिटिजन ऑफ इंडिया कार्ड देता है जिससे वे भारत आना-जाना तो कर सकते हैं लेकिन जमीन नहीं खरीद सकते और न ही वोट दे सकते हैं. इसी पाबंदी के चलते कई अल्ट्रा रिच अपनी नागरिकता छोड़ना नहीं चाहते. देश में तेजी से बढ़ते बाजार से लेकर इमोशनल और सोशल कनेक्ट जैसी कई वजहें हैं, जिससे ये वर्ग अपनी नागरिकता छोड़े बगैर बिजनेस और लाइफस्टाइल के लिए विदेशों में सैटल हो रहा है. 

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कौन हैं अल्ट्रा रिच 

अल्ट्रा हाई नेट वर्थ इनडिविजुअल वो क्लास है, जिसकी नेट वर्थ कम से कम 30 मिलियन डॉलर यानी ढाई सौ करोड़ रुपए हो. नाइट फ्रैंक वेल्थ रिपोर्ट के अनुसार, भारत में यह क्लास पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे तेजी से बढ़ रही है. वैसे हालिया सर्वे 25 करोड़ से ऊपर की नेट वर्थ पर किया गया. 

अगर अल्ट्रा रिच भारत से बाहर जाएं तो ये बड़ा झटका हो सकता है. फिलहाल जो स्थिति है, वही ट्रेंड जारी रहा तो साल 2031 तक भारत के 30% से ज्यादा अरबपति विदेश में रह सकते हैं.

इसके कई नुकसान हैं

- लोग देश में निवेश, स्टार्टअप्स और बड़ी कंपनियों में पूंजी डालते हैं. जब वे बाहर रहेंगे तो पैसे के साथ निवेश के मौके भी चले जाएंगे. इससे नौकरियां कम हो सकती हैं. 

- अल्ट्रा रिच सबसे ज्यादा टैक्स भरते हैं. अगर वे विदेश शिफ्ट हो जाते हैं, तो उनकी आय पर टैक्स देश को नहीं मिलेगा. इससे इंफ्रा और बाकी सुविधाएं घट सकती हैं. 

- भारत में स्टार्टअप बूम चल रहा है. अगर इन्वेस्टर्स और फाउंडर्स बाहर चले जाएं तो इनोवेशन घटेगा. बता दें कि कई भारतीय स्टार्टअप्स अब विदेशी कंपनियों के रूप में रजिस्टर हो रहे हैं. 

- अगर देश अपनी अमीर आबादी को रोकने में नाकाम रहा, तो इकनॉमिक पावर सेंटर बनने का सपना कमजोर पड़ सकता है.

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किन देशों में आर्थिक आधार पर कम भेद

अल्ट्रा रिच के अलावा देश में इकनॉमी के आधार पर कई वर्ग हैं, जिसमें गरीब से लेकर मिडिल, अपर मिडिल और रिच शामिल हैं. लगभग सारे ही देशों में ये बंटवारा है लेकिन नॉर्डिक मुल्कों में ये बहुत कम दिखता है. नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क और फिनलैंड में अमीर और गरीब के बीच बहुत महीन फर्क है. सभी को एजुकेशन और फ्री हेल्थकेयर मिलती है. टैक्स सिस्टम मजबूत है. अमीरों से ज्यादा टैक्स लिया जाता है और गरीबों को मदद मिलती है. अकेले डेनमार्क की बात करें तो यहां 90 फीसदी से ज्यादा आबादी मिडिल क्लास में आती है, जबकि गरीब नहीं के बराबर हैं. अल्ट्रा रिच भी यहां बेहद कम हैं. 

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