
डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद से अमेरिका और कनाडा संबंध खराब होते दिख रहे हैं. ट्रंप के बयानों के बाद अब उनके प्रशासनिक अधिकारी भी एंटी-कनाडा बातें कर रहे हैं. हाल में ट्रंप के मुख्य सलाहकार पीटर नवारो ने सुझाव दिया कि कनाडा को फाइव आईज से बाहर निकाल दिया जाए ताकि वो दबाव में रहे. नवारो वैसे इस दावे को नकार रहे हैं लेकिन क्या होगा अगर पांच देशों के खुफिया गुट में से कनाडा बाहर हो जाए?
क्या है फाइव आईज गुट
हर देश की अपनी इंटेलिजेंस एजेंसी होती है, जिनके जासूस खुफिया जानकारी ही नहीं जुटाते, खतरनाक मुहिम को भी अंजाम देते आए हैं. इसके बाद भी आतंकी हमले होते रहे. इसपर काबू के लिए पांच देशों ने मिलकर एक गुट बना लिया. फाइव-आईज-अलायंस नाम से ये संगठन पांच सबसे ताकतवर देशों के बेहतरीन जासूसों का क्लब है.
इसमें अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड हैं. इन सबके बीच करार है कि अगर उनके क्षेत्र में कोई भी संदिग्ध गतिविधि हो, जिससे इन सबमें से किसी भी देश को खतरा हो, तो वे जानकारी शेयर करेंगे. इसमें पांच देशों की 20 खुफिया एजेंसियां काम कर रही हैं. इनके बीच जो जानकारियां शेयर होती हैं, वो क्लासिफाइड सीक्रेट होती हैं.
कब और क्यों बना अलायंस
दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद रूस की खुफिया जानकारियों का भेद लेने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने मिलकर एक क्लब बनाया. बाद में कनाडा और फिर न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया भी इसका हिस्सा बन गए. ये सब इकनॉमी और सैन्य ताकत में भी बाकी देशों से बढ़-चढ़कर थे. शुरुआत में इसका मकसद रूस से मुकाबला ही था लेकिन शीत युद्ध खत्म होते-होते सोवियत संघ टूटकर कमजोर पड़ गया. इसके साथ ही फाइव आईज का ध्यान रूस से हटकर ग्लोबल टैररिज्म पर आ गया.
कैसे काम करता है खुफिया नेटवर्क
इसकी पुख्ता जानकारी तो नहीं, लेकिन साल 2020 में कनाडा के एक इंटेलिजेंस ऑफिसर ने कनाडाई सरकार के मिलिट्री जर्नल के लिए लिखते हुए बताया कि हर देश के एरिया बंटे हुए हैं.
- अमेरिका के हिस्से रूस, उत्तरी चीन, लैटिन अमेरिका और एशिया का बड़ा हिस्सा हैं. यहां होने वाली हर संदिग्ध एक्टिविटी की जानकारी अमेरिकी जासूसों को रहनी चाहिए.
- ऑस्ट्रेलिया को दक्षिणी चीन और इसके पड़ोसियों जैसे इंडोनेशिया पर ध्यान देना है.
- ब्रिटेन का काम पूरा का पूरा अफ्रीका और वे देश हैं, जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे.
- न्यूजीलैंड पश्चिमी प्रशांत को देखता है, जिसमें छोटे-बड़े बहुत से देश हैं.
- कनाडा का काम रूस के पोलर हिस्सों पर नजर रखना है, जो बाकियों की नजर से बच जाते हैं.
पांच देशों के नेटवर्क के बाद इसमें कई और देश भी जुड़ते चले गए. इसमें नाइन-आईज भी है, जिसमें इन पांच देशों के साथ-साथ फ्रांस, डेनमार्क, नॉर्वे और नीदरलैंड भी शामिल हैं. इसके बाद 14-आईज भी है, यानी वे 14 देश जो जासूसी में आपसी मदद करते हैं. इसमें 9 देशों के साथ जर्मनी, बेल्जियम, इटली, स्पेन और स्वीडन आ जाते हैं. हालांकि फाइव-आईज-अलायंस सबसे क्लोजली काम करता है.
ये खुफिया गुट इतने गुप्त ढंग से काम करता है कि साल 1973 में ऑस्ट्रेलिया के तात्कालिक पीएम गफ विटलेम को भी इस बारे में बाद में पता चला. जर्नल ऑफ कोल्ड वॉर स्टडीज में इस घटना का जिक्र है. नब्बे के दशक के आखिर तक सारे देश इसके होने से ही इनकार करते रहे. बाद में ये सूचना बाहर आई.
क्या यूएस वाकई कनाडा को हटाने की सोच रहा है
फाइनेंशियल टाइम्स और द इकनॉमिस्ट की रिपोर्ट्स में बताया गया कि वाइट हाउस एडमिनिस्ट्रेशन के प्रमुख पीटर नवारो ने ट्रंप को ऐसा सुझाव दिया ताकि कनाडा पर और दबाव बनाया जा सके और व्यापार में उससे शर्तें मनवाई जा सकें. अब ये तो नहीं पता कि ट्रंप ने सुझाव माना या नहीं, लेकिन नवारो खुद इसे अस्वीकार कर रहे हैं.
कनाडा इस अलायंस का सबसे छोटा हिस्सा है लेकिन उसका काम बेहद अहम रहा. वो रूस के पोलर हिस्सों पर ध्यान देता है, जहां निर्जनता के बीच ही मॉस्को चाहे तो कई बड़े मंसूबों को अंजाम दे सकता है. फिलहाल दुनिया के कई हिस्सों में चल रही लड़ाइयों के बीच एक पूरा क्षेत्र अगर अनदेखा छोड़ दिया जाए तो ये केवल ओटावा नहीं, बल्कि वॉशिंगटन के लिए भी खतरनाक हो सकता है.
फाइव आईज ने कब बड़ी घटनाओं की पहले ही सूचना दे दी
- 9/11 हमले को लेकर अमेरिका की NSA और ब्रिटेन की GCHQ ने संकेत दिए लेकिन वो इतने साफ नहीं थे कि तुरंत एक्शन लिया जा सके.
- इस्लामिक स्टेट की सीरिया और ईराक में बढ़ती एक्टिविटीज पर भी बात हुई थी.
- अमेरिका और ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियों को यूक्रेन और रूस के बीच तनाव की भनक थी, जिसकी वजह से कई देशों ने एडवायजरी जारी कर दी थी.