
देश के पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में नवंबर से लेकर अब तक 9 सौ से ज्यादा आग लगने की घटनाएं हो चुकीं. इस बार मामला ज्यादा गंभीर है क्योंकि पिछले साल से लगी आग बुझने का नाम ही नहीं ले रही. आंकड़ों के अनुसार पिछले छह महीनों में वाइल्डफायर की वजह से 1,145 हेक्टेयर जंगल खाक हो चुका. आग अब शहर पर भी असर डाल रही है. धुएं से दिखाई देना कम हो चुका. इस बीच तमाम कोशिशें हो रही हैं. यहां तक कि एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर भी अलग तकनीक से आग बुझाने में लगे हुए हैं.
कैसे लगती है जंगल में आग
आग पकड़ने के लिए ऑक्सीजन और तापमान की जरूरत होती है. जंगल में ये बखूबी मिलता है. लकड़ियां इसके लिए फ्यूल का काम करती हैं. गर्मी, या बिजली गिरने पर छोटी चिंगारी भी पैदा हो जाए तो आग लग सकती है. लेकिन जंगल में गर्मी कैसे पैदा होती है. तो इसके कई कारण हो सकते हैं. जंगलों के आसपास खेती करने वाले लोग अगर पराली जलाएं तो भी आग का डर रहता है. घूमने जाने वाले कैंप फायर करते हैं जो अक्सर ही जंगलों को खाक कर देती है.
रील बनाने वालों ने भी लगाई आग
उत्तराखंड के मामले में एक अजीब बात बताई जा रही है. अधिकारियों का कहना है कि कुछ लोगों ने रील बनाने के फेर में भी जंगल में आग लगा दी. ऐसे ही अलग-अलग मामलों को लेकर 350 से अधिक मुकदमे दर्ज हो चुके. वैसे फिलहाल जो आग लगी है, वो चीड़ के जंगलों में है. इनके पत्ते, जिन्हें पिरूल कहा जाता है, तेजी से आग पकड़ते हैं.
एक बार जंगल में आग पकड़ ले तो फैलती ही चली जाती है. वहां हवा जोरों से चलती है जो आग को फैलाने का काम करती है. घास और सूखी पत्तियां-टहनियां ईंधन बन जाती हैं और आग बढ़ने लगती है. चूंकि तुरंत इसपर ध्यान नहीं जाता है, तो आग इतनी भड़क जाती है कि तेजी से तबाही मचाने लगती है.
जंगल की आग थोड़ी जरूरी भी
बहुत पुराने समय से जंगलों में आग लगती रही. एक हद तक ये जरूरी भी है. एक्सपर्ट मानते हैं कि इससे कई सारी स्पीशीज को पनपने का मौका मिलता है, जिन्हें अंकुरण के लिए धुएं की जरूरत होती है. अगर जंगल में आग न पकड़े तो पेड़-पौधों की ऐसी प्रजातियां खत्म हो जाएंगी. लेकिन इन्हें उतनी ही आग चाहिए जो नेचुरल हों और कुछ समय में खत्म हो जाएं. वाइल्डफायर से जंगल में जरूरत से ज्यादा पेड़-पौधों का भी सफाया हो जाता है, जिससे बचे हुए पेड़ों को सांस लेने और फलने-फूलने की जगह मिलती है.
कैसे बुझाई जाती है वाइल्डफायर
ये काम बहुत ही खतरनाक होता है. खुली हवा और सूखे पेड़-पत्तियों की वजह से आग तेजी से फैलती जाती है, ऐसे में इससे डील करना काफी जोखिमभरा होता है. यही कारण है कि बहुत से देश फायर फाइटर्स के अलावा सेना की भी मदद लेते हैं. आग जितना ही खतरनाक इसके धुएं में सांस लेना है. जैसा कि हम पहले बता चुके, आग से भले ही लोग बच जाएं, लेकिन जहरीले धुएं से ज्यादा जानें जाती रहीं. तो आग बुझानेवालों को इससे भी जूझना होता है.
फिलहाल उत्तराखंड में सेना ने मोर्चा संभाल रखा है. वायुसेना के लिए इसके पास खास एमआई हेलीकॉप्टर हैं, जो भारी वजन उठा पाते हैं. इसमें पानी स्प्रे करने के उपकरण के अलावा बंबी बकेट भी होती है. ये बाल्टी कई हजार लीटर क्षमता वाली है, जो दशकों से जंगलों की आग बुझाने में इस्तेमाल हो रही है.
क्या है बांबी बकेट
ये अलग तरह का हवाई अग्निशमन उपकरण है, जो हल्का खुलने योग्य कंटेनर जैसा है. हेलीकॉप्टर में चलने वाले कर्मी वॉल्व का उपयोग करके नीचे पानी गिराते हैं. जहां भी आग लगी हो, बकेट कोउसके करीबी इलाकों की नदियों-झीलों से भरा जाता है. शहरी इलाकों में स्विमिंग पूल या पानी के दूसरे सोर्स काम आते हैं. बांबी बकेट का साइज कुछ सैकड़ा से 9 हजार लीटर तक हो सकता है.
इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि ये तुरंत और आसानी से भरी जा सकती है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, बांबी बकेट की लिमिटेशन न होने के चलते इसे 115 देशों में फायरफाइटिंग के लिए काम में लाया जा रहा है.