Advertisement

पानी से भरी गुफा में फंस गए थे 12 बच्चे, दो हफ्ते चला बचाव अभियान, जानिए कैसा था दुनिया का सबसे मुश्किल रेस्क्यू मिशन

उत्तरकाशी सुरंग हादसे में फंसे मजदूरों को निकालने की कोशिश जारी है. 5 दिनों से फंसे लोगों को सिरदर्द और उल्टी की तकलीफ होने लगी है, जो कि खतरे का संकेत है. इस बीच भारतीय अधिकारियों ने उस रेस्क्यू टीम से संपर्क करने की कोशिश की, जिसने थाइलैंड में बचाव ऑपरेशन चलाया था. इसमें पानी से भरी गुफा में फंसे बच्चों को दो हफ्तों से ज्यादा समय बाद निकाल लिया गया.

साल 2018 में थाइलैंड की गुफा में जूनियर फुटबॉल टीम फंस गई थी. (Getty Images) साल 2018 में थाइलैंड की गुफा में जूनियर फुटबॉल टीम फंस गई थी. (Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 17 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:10 PM IST

रविवार सुबह जमीन धंसकने की वजह से सिलक्यारा सुरंग के अंदर 40 श्रमिक फंस गए. इसके बाद से लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है. हादसे की जगह पर एसडीआरएफ, एनडीआरफ, आईटीबीपी और फायर टीमें मौजूद हैं, ताकि जरूरत के मुताबिक फटाफट इंतजाम हो सकें. हालांकि टनल के ऊपरी हिस्से से मलबा आ रहा है, जिसकी वजह से मजदूरों को निकालने में दिक्कत हो रही है. अब भीतर फंसे लोग सिरदर्द और उल्टियों की शिकायत कर रहे हैं. ये तब होता है, जब शरीर में ऑक्सीजन या पोषण घटने लगे. 

Advertisement

थाइलैंड से भी ली जा रही है सलाह

इस बीच थाइलैंड का वो हादसा चर्चा में है, जिसे दुनिया का सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन भी माना जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तराखंड में मौजूद टीम थाइलैंड की रेस्क्यू टीम से भी संपर्क में है ताकि नाजुक हालातों में मदद ली जा सके. साल 2018 में थाइलैंड में हुए हादसे में जूनियर फुटबॉल टीम के कोच समेत 12 बच्चे एक गुफा में फंस गए थे. इसके बाद जो बचाव कार्य चला, उसने पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया था. 

क्या हुआ था वहां 

जून 2018 की बात है. थाईलैंड की जूनियर एसोसिएशन फुटबॉल टीम अपने कोच के साथ प्रैक्टिस में लगी थी. इसी के तहत उसने थाम लुआंग गुफा में प्रवेश किया. काफी लंबे इस केव में तब तक कोई खतरा नहीं था. लेकिन टीम के भीतर जाने के कुछ ही देर बाद बारिश शुरू हो गई और गुफा में पानी भर गया. इससे बाहर निकलने के सारे रास्ते बंद हो गए. 

Advertisement

कैसी है गुफा

ये थाइलैंड और म्यांमार के बॉर्डर पर दोई नांग पहाड़ के नीचे करीब 10 किलोमीटर लंबी गुफा है जो अंदर की तरफ संकरी होती जाती है. इसमें चूना पत्थर की आकृतियां और चट्टानें भी हैं. कुल मिलाकर पानी भर जाने पर गुफा का प्रवेश द्वार खोज सकना लगभग असंभव है. 

हफ्तेभर बाद मिला पहला संकेत

तब गुफा में 11 से 16 साल के एक दर्जन बच्चों के साथ 25 साल के असिस्टेंट कोच इकापॉल चंथावॉन्ग मौजूद थे. हादसे के हफ्तेभर तक कोई भी गुफा के नजदीक नहीं जा सका. ज्यादातर लोग मान चुके थे कि सबकी मौत हो चुकी होगी, हालांकि रेस्क्यू दलों ने उम्मीद नहीं छोड़ी. पूरे 9 दिनों बाद दो ब्रिटिश गोताखोर गुफा के मुंह से भीतर की तरफ पहुंच सके. तभी उन्होंने पाया कि बच्चे पानी भरी गुफा में एक ऊंची चट्टान पर मौजूद हैं. इसके बाद असल रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ. 

लगातार बढ़ रहा था खतरा

बचाव दल ने कई विकल्प सोचे. जैसे क्या गुफा का कोई दूसरा प्रवेश द्वार खोजा जाए. या फिर बच्चों को दूर से ही गोताखोरी की ट्रेनिंग दी जाए, ताकि वे खुद ही बाहर आने की कोशिश कर सकें. लेकिन ये दोनों ही विकल्प काफी हवा-हवाई थे. इतनी जल्दी कोई भी बात संभव नहीं थी, जबकि एक-एक मिनट कीमती था. सबसे मुश्किल चीज ये थी कि जुलाई आ चुकी थी. अगर तेज बारिश शुरू हो जाती तो बचाव की सारी गुंजाइश धरी रह जाती. तो फटाफट काम शुरू हुआ. 

Advertisement

10 हजार लोगों की टीम बनी

रेस्क्यू मिशन को किसी सैन्य ऑपरेशन की तरह अंजाम दिया गया. इस काम में 10 हजार के करीब लोग शामिल हुए. इसमें 100 से ज्यादा गोताखोर ही थे. इसके अलावा एंबुलेंस, सैनिक, पुलिस और मेडिकल टीमें थीं ही. सबसे मुश्किल काम रॉयल थाई नेवी सील को मिला. वो गुफा से पानी निकालने में जुटी रही ताकि रास्ता बन सके. इस दौरान एक गोताखोर की मौत भी हो गई, लेकिन ऑपरेशन चलता रहा. 

गंदे पानी से तैरकर बच्चों तक पहुंचे गोताखोर

इस बीच गुफा में ऑक्सीजन का लेवल कम हो रहा है. साथ ही बच्चे भूखे भी थे. तो सबसे पहले डाइवर्स के जरिए फंसे हुए लोगों तक खाना पहुंचाया गया, हालांकि वो लिमिटेड था. इसमें भी समय लग गया क्योंकि गुफा का पानी चूना पत्थरों की वजह से गंदा हो चुका था और कुछ भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था. 

बीच-बीच में कई मुश्किलें आईं

उपकरण खराब हुए. पानी निकासी कर रहे पाइप फट गए. यहां तक कि टीम के लोग जख्मी हुए. इसके बाद भी काम चलता ही रहा. इस बीच गोताखोर बच्चों को तैराकी सिखाने लगे ताकि अगर जरूरत पड़े तो वे खुद को बचा सकें. बच्चे अपनी फैमिली से बात कर सकें, इसके लिए गोताखोरों ने उन्हें वॉटरप्रूफ कागज और पेन दिए. इनपर संदेशों का लेनदेन हुआ. इससे दोनों पक्षों को राहत मिली. 

Advertisement

रेस्क्यू में असल दिक्कत गुफा के संकरे रास्ते थे. गोताखोरों ने बच्चों को अपनी पीठ से बांध लिया था और उन्हीं रास्तों से बाहर निकलने लगे. एक-एक बच्चे को पहले चट्टान से हटाकर गुफा के कुछ आगे तक ले जाया गया, जहां से टीम के दूसरे सदस्य उन्हें मुहाने तक लेकर आए. हर फंसे हुए सदस्य को निकालने में 6 से 8 घंटे लगे. 10 जुलाई तक मिशन पूरा हो गया. गुफा में फंसे 12 बच्चों समेत कोच सही-सलामत बाहर आ चुके थे. 

कोच ने कैसे की मदद

ये तो हुआ रेस्क्यू मिशन का वो चेहरा, जो मीडिया में खूब चर्चा में रहा. लेकिन सवाल ये है कि 15 दिनों तक पानी से भरी गुफा में, बहुत कम ऑक्सीजन और खाने के बीच बच्चे जिंदा कैसे रह सके? इसका जवाब टीम के कोच इकापॉल चंथावॉन्ग से जुड़ा है, जो पहले एक बौद्ध भिक्षु थे. 

करीब एक दशक मठ में गुजार चुके चंथावॉन्ग को मुश्किल से मुश्किल हालातों में जीना आता था. उन्होंने गुफा में फंसे बच्चों को भी इसकी ट्रेनिंग देनी शुरू की. वे उन्हें मेडिटेट करना सिखाते. साथ ही ये सिखाया कि कम सांस लेकर भी कैसे शरीर तक ऑक्सीजन सप्लाई बनाई रखी जा सकती है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement