
जी-20 की बैठक करीब आ चुकी. सरकार इसके लिए सारी तैयारियां कर चुकी. होटल बुक किए जा चुके. सुरक्षा के कई लेयर खड़े हो चुके. अब बस मेहमानों का इंतजार है. लेकिन क्या हो अगर विदेशी मेहमानों के आते ही झमाझम बारिश शुरू हो जाए, या फिर गर्मी इतनी पड़े कि बैठक के अलावा वे बाहर घूम-फिर न सकें!
नकली बारिश कराने या धूप रोकने जैसी तकनीकों पर काफी समय से कई देश काम कर रहे हैं. चीन और अमेरिका इनमें सबसे आगे हैं. वे वेदर को मॉडिफाई करके अपने लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. जैसे चीन के जिस इलाकों में बारिश नहीं होती, वहां नकली वर्षा कराना, या तापमान कम-ज्यादा करना.
साल 2020 में चीन ने खुल्लमखुल्ला अपनी ताकत का प्रदर्शन शुरू किया. एक प्रेस वार्ता में वहां की स्टेट काउंसिल ने कहा कि वो वेदर मॉडिफिकेशन में काफी हद तक सफल हो चुकी है, और 2025 तक वो प्रयोग का अपना एरिया फैलाकर साढ़े 5 मिलियन स्क्वायर किलोमीटर तक पहुंचा देगी. यहां तक कि सरकार दूसरे देशों से बातचीत भी करने लगी कि क्या वे अपना एरिया उसे इस प्रयोग के लिए देना चाहेंगे.
क्या है क्लाउड सीडिंग
फिलहाल चीन या दूसरे देश भी वेदर मॉडिफिकेशन के तहत बारिश कराने या रोकने पर फोकस कर रहे हैं. इसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं. वर्ल्ड मेटेरोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन की मानें तो साल 2017 में ही 50 से ज्यादा देश इसपर काम करना शुरू कर चुके थे.
क्या होता है इस प्रोसेस में
नकली बारिश के लिए आसमान में काफी सारे रॉकेट एक साथ दागे जाते हैं, जिनमें सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और क्लोराइड होता है. आसमान में एक निश्चित ऊंचाई तक पहुंचने के बाद ये क्रिया करते हैं. इससे दूरदराज के बादल भी पास आ जाते हैं, और बारिश होती है. आमतौर पर ये सामान्य बारिश से ज्यादा तेज होती है. इसके बाद मौसम खुल जाता है. वैसे इसके भी कई प्रकार हैं, जो इसपर तय होते हैं कि इस दौरान कितने केमिकल्स का इस्तेमाल हो रहा है.
किन देशों में हो रही नकली बारिश
- साल 2008 में बीजिंग ओलिंपिक के दौरान बारिश से खेल न बिगड़ जाए, इसके लिए चीन ने वेदर मॉडिफिकेशन सिस्टम का उपयोग किया और पानी पहले ही बरसा दिया. इसके बाद से कई बार वो ऐसा कर चुका.
- टोक्यो ओलंपिक और पैरालंपिक के दौरान जापान ने आर्टिफिशियल रेन जेनरेटर का भरपूर इस्तेमाल किया था.
- यूएई ने साल 2021 में भारी गर्मी से छुटकार पाने के लिए जमकर नकली बारिश करवाई थी. इसके बाद से वहां भी ये तकनीक चलन में आ गई.
- थाइलैंड ने तय किया है कि वो साल 2037 तक अपने सूखाग्रस्त इलाकों को हराभरा बना देगा. इसके लिए वो नकली वर्षा का सहारा ले रहा है.
भारत में कहां पहुंची तकनीक
बारिश की कमी को पूरा करने की टेक्नीक पर आईआईटी कानपुर लंबे समय से काम कर रहा है. इसी साल के मध्य में उसे इसमें कामयाबी मिली. इसका सफल ट्रायल भी हो चुका. आईआईटी कानपुर का कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग विभाग इसपर काम कर रहा था. हो सकता है कि आगे इसपर पायलेट टेस्टिंग शुरू हो ताकि बड़े पैमाने पर इसकी सफलता-असफलता दिख सके.
क्या कोई खतरा भी है
हां. देश एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं कि वे इस तकनीक के जरिए दूसरों की सीमा पर तबाही मचा सकते हैं. जैसे ज्यादा बारिश करा देना, यहां तक कि सुनामी ला सकना. अमेरिका का एक प्रोजेक्ट हार्प इसके लिए अक्सर घेरे में रहा. कई देशों में आए भूकंप, सुनामी और भूस्खलन के लिए इस रिसर्च संस्था को दोषी ठहराया गया.
इन देशों पर लग चुका है आरोप
माना जाता है कि अमेरिका ने वियतनाम युद्ध के समय मानसून को बढ़ाने के लिए क्लाउड सीडिंग को हथियार बनाया था. इससे वियतनामी सेना की सप्लाई चेन बिगड़ गई थी क्योंकि ज्यादा बारिश के कारण जमीन दलदली हो चुकी थी. हालांकि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिल सके कि ये अमेरिकी चाल थी या कुदरती कहर. भारत में केदारनाथ आपदा के बाद भी कई विदेशी एक्सपर्ट्स ने शक जाहिर किया था कि भारी बारिश के पीछे चीन का वेदर मॉडिफिकेशन हो सकता है.
क्या इसपर काबू के लिए कोई संधि भी है
देश वेदर मॉडिफिकेशन तकनीक को एक-दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं, इसपर यूनाइटेड नेशन्स काफी पहले अलर्ट हो चुका था. अक्टूबर 1987 में ही यूएन ने ENMOD (प्रोहिबिशन ऑफ मिलिट्री ऑर एनी अदर होस्टाइल यूज ऑफ इनवायरनमेंटल मॉडिफिकेशन टेक्नीक्स) ड्राफ्ट किया. ये ड्राफ्ट कहता है कि कोई भी देश मौसम के जरिए दूसरे देश को परेशान नहीं कर सकता है.