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'जिंदा रहने तक जेल, फांसी की सजा भी', कितना सख्त है POCSO एक्ट, जिसे बदलने की मांग कर रहे बृजभूषण सिंह

यौन शोषण के आरोपों का सामना कर रहे भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण सिंह ने पॉक्सो एक्ट में बदलाव की मांग की है. उन्होंने दावा किया कि इस कानून का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जा रहा है. ऐसे में जानते हैं इस कानून के बारे में. साथ ही ये भी जानेंगे कि ये कितना सख्त है?

बृजभूषण शरण सिंह ने पॉक्सो एक्ट में बदलाव की मांग की है. (फाइल फोटो-PTI) बृजभूषण शरण सिंह ने पॉक्सो एक्ट में बदलाव की मांग की है. (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 मई 2023,
  • अपडेटेड 8:33 PM IST

बच्चों को यौन उत्पीड़न और अश्लीलता से जुड़े अपराधों से बचाने वाले पॉक्सो कानून में बदलाव करने की मांग उठी है. ये मांग उठाई है भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण सिंह ने. उनका कहना है कि पॉक्सो कानून का 'दुरुपयोग' किया जा रहा है. 

अयोध्या में 5 जून को होने वाली संतों की रैली की तैयारियों का जायजा लेने पहुंचे बृजभूषण सिंह ने कहा कि संतों की मदद से हम सरकार पर पॉक्सो कानून बदलने का दबाव बनाएंगे.

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बृजभूषण ने दावा किया कि पॉक्सो कानून का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जा रहा है. बच्चों, बुजुर्गों और संतों के खिलाफ इसका गलत इस्तेमाल किया जा रहा है. यहां तक कि अधिकारी भी इससे अछूते नहीं हैं. 

बृजभूषण पर भी पॉक्सो के तहत केस

बृजभूषण सिंह पर भी पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज है. जंतर-मंतर पर धरना दे रहे पहलवानों ने उन पर यौन शोषण का आरोप लगाया है. उन पर नाबालिग रेसलर का शोषण करने का आरोप भी है.

इस मामले में दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की हैं. एक एफआईआर पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज है. जबकि, दूसरी एफआईआर यौन उत्पीड़न से जुड़ी है.

अब बृजभूषण का कहना है कि सारे पहलुओं को जांचे बिना कांग्रेस सरकार इस कानून को लेकर आई थी. उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को भी खारिज किया है.

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आखिर है क्या पॉक्सो एक्ट?

पॉक्सो यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट. इस कानून को 2012 में लाया गया था. ये बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन शोषण को अपराध बनाता है.

ये कानून 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों, दोनों पर लागू होता है. इसका मकसद बच्चों को यौन उत्पीड़न और अश्लीलता से जुड़े अपराधों से बचाना है. 

इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के लोगों को बच्चा माना गया है और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है. 

पॉक्सो कानून में पहले मौत की सजा नहीं थी, लेकिन 2019 में इसमें संशोधन कर मौत की सजा का भी प्रावधान कर दिया. इस कानून के तहत उम्रकैद की सजा मिली है तो दोषी को जीवन भर जेल में ही बिताने होंगे. इसका मतलब हुआ कि दोषी जेल से जिंदा बाहर नहीं आ सकता.

बेहद सख्त है सजाएं

- अगर कोई व्यक्ति 16 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट का दोषी पाया जाता है तो उसे 20 साल की जेल लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. इस मामले में उम्रकैद यानी जब तक जिंदा है, तब तक जेल में रहना होगा. इसके अलावा दोषी व्यक्ति को भारी जुर्माना भी चुकाना होगा.

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- अगर पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट में बच्चे की मौत हो जाती है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर कम से कम 20 साल या फिर उम्रकैद या फिर मौत की सजा हो सकती है. इस मामले में भी उम्रकैद यानी जिंदा रहने तक जेल में ही रहना होगा. इसके अलावा दोषी को जुर्माना भी देना होगा.

- इसी तरह अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे का इस्तेमाल पोर्नोग्राफी के लिए करने का पहली बार दोषी पाए जाने पर पांच साल और दूसरी बार में सात साल की सजा हो सकती है. इसके अलावा जुर्माना अलग से देना पड़ेगा.

- अगर कोई व्यक्ति बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी को स्टोर करता है, डिस्प्ले करता है या फिर किसी के साथ साझा करता है, तो दोषी पाए जाने पर तीन साल की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.

- अगर कोई व्यक्ति बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी का कमर्शियल इस्तेमाल करता है तो पहली बार दोषी पाए जाने पर 3 से 5 साल की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है. दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 5 से 7 साल की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है.

पॉक्सो एक्ट पर क्या कहते हैं आंकड़े?

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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज होने वाले मामलों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है. 

एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि 2021 में पॉक्सो एक्ट के तहत देशभर में करीब 54 हजार मामले दर्ज किए गए थे. जबकि, इससे पहले 2020 में 47 हजार मामले दर्ज हुए थे. 2017 से 2021 के बीच पांच साल में पॉक्सो एक्ट के तहत 2.20 लाख से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं.

हालांकि, पॉक्सो एक्ट में कन्विक्शन रेट काफी कम है. आंकड़े बताते हैं कि पांच साल में 61,117 आरोपियों का ट्रायल कम्प्लीट हुआ है, जिनमें से 21,070 यानी करीब 35% को ही सजा मिली है. बाकी 37,383 को बरी कर दिया गया.

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