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बगैर शपथ लिए सदन की कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं सांसद, भरना होता है कितना जुर्माना, किन बातों की मनाही?

18वीं लोकसभा का पहला संसदीय सत्र सोमवार से शुरू हो चुका. इस दौरान नए सदस्यों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली. ये सांसद के तौर पर पहली ड्यूटी होती है. लेकिन क्या हो, अगर कोई एमपी इससे इनकार कर दे, या फिर देख-पढ़ नहीं पाता हो. क्या उसे संसद भवन में जाने और कार्यवाही में शामिल होने की इजाजत मिलेगी?

शपथ लिए बिना भी सदन में हिस्सा लिया जा सकता है. (Photo- India Today) शपथ लिए बिना भी सदन में हिस्सा लिया जा सकता है. (Photo- India Today)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 जून 2024,
  • अपडेटेड 3:15 PM IST

सोमवार और मंगलवार को 543 सांसदों का शपथ ग्रहण हुआ. इस दौरान हर एमपी ने अपनी-अपनी भाषा और परिधान के साथ पद और गोपनीयता बनाए रखने की शपथ ली. लेकिन क्या ऐसे भी सदस्य होते हैं जो ओथ टेकिंग के बगैर ही लोकसभा के सत्र में हिस्सा लेने लगें. जानिए, ऐसे में उनपर क्या एक्शन हो सकता है. 

किस धारा के तहत शपथ जरूरी

संसद में अपनी सीट लेने से पहले संविधान की धारा 99 के तहत हर एमपी को शपथ लेनी होती है, साथ ही इससे जुड़ा एक औपचारिक फॉर्म भी भरना होता है. 

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कौन दिलवाता है शपथ 

यह काम प्रो-टेम स्पीकर का होता है. चूंकि नई संसद बनने से पहले पुरानी संसद भंग हो चुकी होती है, लिहाजा कोई अध्यक्ष भी नहीं होता. लिहाजा कुछ दिनों के ट्रांजिशन को पाटने के लिए एक अस्थाई स्पीकर चुना जाता है. इस बार कटक के सांसद भर्तृहरि महताब को प्रोटेम चुना गया, जिन्होंने नए सदस्यों को पद की शपथ दिलवाई. 

क्या होता है इस दौरान 

शपथ ग्रहण वैसे तो कई भाषाओं में ले सकते हैं, लेकिन इस दौरान क्या बोला जाए, ये तय रहता है. सांसद वही दोहरा सकते हैं. इसमें अपना नाम लेते हुए लीडर देश के संविधान के लिए निष्ठा की बात करते हैं, साथ ही अपने पद के लिए ड्यूटी को निभाने का वादा किया जाता है. 

शपथ लेते हुए सांसद अपनी तरफ से कुछ जोड़ें तो क्या होता है

फिलहाल असदुद्दीन ओवैसी का मामला तूल पकड़े हुए है. उन्होंने ओथ लेते हुए जय फिलिस्तीन नारा लगा दिया था. इसपर विपक्ष से लेकर सीनियर वकील भी हमलावर हैं कि जब भारत के संविधान की बात चल रही थी, उसके प्रति निष्ठा की शपथ ली जा रही थी, तब दूसरे देश का जिक्र ही क्यों निकला. यहां तक कि धारा 102 के हवाले से सदस्यता निरस्त करने तक चर्चा हो रही है. इसमें क्या होगा, ये तो कहा नहीं जा सकता लेकिन शपथ ग्रहण बेहद अहम मौका है तो सदस्यों से उम्मीद की जाती है कि उसमें खलल डालने वाली कोई बात न हो. 

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हर सांसद से अपेक्षा रहती है कि वो शपथ ग्रहण में शामिल हो, लेकिन ऐसा हमेशा हो, ये मुमकिन भी नहीं. हो सकता है कि एमपी बीमार पड़ा हुआ हो, या फिर किसी इमरजेंसी की वजह से सदन तक नहीं पहुंच सकता हो. तब क्या होता है?

बाद में भी ले सकते हैं शपथ

ऐसे में ये बंदोबस्त भी है कि चुने हुए सांसद किसी और दिन शपथ ले सकें. इसके लिए उन्हें खास रिक्वेस्ट करनी होती है, और स्पीकर के चैंबर में जाकर वे आधिकारिक तौर पर शपथ ले सकते हैं. जेल में रहते हुए चुनाव जीते सांसद को रियायत मिलती है, वे भी संसद भवन में समारोह का हिस्सा बनेंगे, लेकिन फिर वापस जेल चले जाएंगे. 

क्या बगैर शपथ सदन की कार्यवाही में हिस्सा ले सकते हैं

ये हो सकता है. लेकिन तब सांसद के अधिकार सीमित होंगे. वो सदन की कार्यवाही के दौरान वहां मौजूद रह सकेगा, वोटिंग भी कर सकेगा, लेकिन किसी भी बहस में भाग नहीं ले सकेगा, न ही कोई आधिकारिक कमेंट कर सकेगा. अध्यक्ष उसे इसकी अनुमति ही नहीं देगा. 

रोज 5 सौ का जुर्माना

इसके अलावा उसे पांच सौ रुपए पेनल्टी देनी होगी, जो उसके वेतन से काट ली जाएगी. ये जुर्माना बगैर ओथ लिए सदन में शामिल होने का है. जितने दिन भी सांसद सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेता है, या वोट करता है, उतने दिन रोज के हिसाब से ये जुर्माना लगता है. 

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कई बार शारीरिक अपंगता भी शपथ लेने में बाधा बन सकती है. मसलन, सांसद अगर देख न सके. ऐसे में दूसरा साथी सदस्य शपथ पढ़ेगा, जिसे वो केवल दोहराएगा. 

शपथ ग्रहण क्यों है जरूरी 

- संविधान की धारा 99 के तहत लोकसभा में चर्चा में शामिल होने के लिए एमपी का शपथ लेना जरूरी है. 
- चुनाव जीतने और टर्म शुरू करना ही उन्हें हाउस की कार्यवाही में शामिल होने की योग्यता नहीं दे देता. 

किन भाषाओं में ले सकते हैं शपथ

सांसद अंग्रेजी के अलावा 22 और भाषाओं- हिंदी, असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृति, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू में शपथ ले और दस्तखत कर सकते हैं. वैसे लोकप्रिय भाषा हिंदी और अंग्रेजी हैं, जिसमें आधे सांसद शपथ लेते आए.

क्या जेल में बंद हाई-प्रोफाइल सांसद ले सके ओथ

आतंकवाद के लिए फंडिंग जुटाने के आरोप में इंजीनियर राशिद, और खालिस्तानी चरमपंथी अमृतपाल सिंह दोनों ने ही जेल से चुनाव लड़ा और जीते भी. अमृतपाल असम की जेल में बंद हैं. पंजाब की पारी आने पर कांग्रेस के एमपी गुरजीत सिंह के बाद  उनका नाम भी पुकारा गया, लेकिन वे मौजूद नहीं थे. इसी तरह से बारामूला से चुने गए राशिद की भी पुकार हुई, जो यूएपीए के तहत तिहाड़ में बंद हैं. वे भी शपथ नहीं ले सके. 

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