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ईरान और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा तो चीन के डूब जाएंगे खरबों रुपये, क्या है वजह?

पाकिस्तान और ईरान के बीच तनाव अब भी बढ़ा हुआ है. हालिया एयर स्ट्राइक के बाद दोनों देश एक-दूसरे पर हमलावर हो गए. इस बीच चीन की सांसें उखड़ी हुई हैं. वो बीच-बचाव की कोशिशें कर रहा है. यहां तक कि उसके फॉरेन मिनिस्टर ने पाकिस्तान का दौरा करते हुए मामला सुलझाने की भी पेशकश की.

ईरान और पाकिस्तान के बीच टेंशन बनी हुई है. (Photo- Getty Images) ईरान और पाकिस्तान के बीच टेंशन बनी हुई है. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 24 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 3:06 PM IST

बीते मंगलवार को ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हवाई हमले किए. उसका कहना था कि वो ऐसा एक आतंकी गुट को खत्म करने के लिए कर रहा है. अगले ही दिन पाकिस्तान ने ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान इलाके पर एयर स्ट्राइक कर दी. दोतरफा हमले में कई आम लोग भी मारे गए. तब से टेंशन बढ़ी हुई है. लेकिन ये टेंशन लड़-भिड़ रहे इन्हीं इलाकों तक सीमित नहीं, बल्कि इसकी आंच दूर बैठे चीन तक पहुंच चुकी. 

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चीन के विदेश मंत्री सन वेइदॉन्ग ने पाकिस्तान का दौरा करते हुए कहा है कि वे इस्लामाबाद और तेहरान के बीच कंस्ट्रक्टिव रोल निभाने को तैयार हैं. चीन के विदेश मंत्रालय ने कई और बयान भी जारी किए जो दोनों सरकारों के बीच तनाव कम करने की बात करते हैं. 

चीन दोनों ही के करीबी सहयोगी की तरह काम कर रहा

ईरान पश्चिमी एशिया में उसकी पैठ बढ़ाने का जरिया है. चीन ईरान के साथ-साथ पड़ोसी देशों तक अपना बाजार फैलाना चाहता है. वहीं पाकिस्तान बीजिंग के लिए बहुत अहम है. खासकर इसका बलूचिस्तान वाला हिस्सा. यहां उसने चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के तहत खरबों डॉलर लगा रखे हैं. खुद चीन की फॉरेन मिनिस्ट्री मान चुकी है कि वो अब तक इस प्रोजेक्ट पर 25.4 बिलियन डॉलर खर्च कर चुकी. ये डायरेक्ट इनवेस्टमेंट है.

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क्या हो रहा है बलूचिस्तान में 

इसके तहत चीन के शिनजिंयाग से लेकर पाक के बलूच इलाके तक इंफ्रास्ट्रक्चर का काम हो रहा है. ये दूरी करीब 3 हजार किलोमीटर है. इसके तहत सड़कें, रेल लाइनें और गैस पाइप लाइंस बिछाई जा रही हैं. ये कॉरिडोर चीन के लिए बड़े काम का है क्योंकि इसके जरिए वो सीधे हिंद महासागर तक अपनी पैठ बना सकेगा. इससे समुद्री रास्ते से उसका व्यापार आसान हो जाएगा. 

कुछ सालों से पाकिस्तान जिस तरह की तंगी झेल रहा है, ये उसमें भूखे के आगे थाली जैसी स्थिति है. पाकिस्तान ने तपाक से चीन का ऑफर मान लिया. उसके पास खुद सड़क, बंदरगाह बनाने के पैसे नहीं. यहां तक कि स्कूल, अस्पताल तक कम हैं. ऐसे में चीन का निवेश उसे मदद ही लग रहा है. 

इसका दूसरा पक्ष भी है

चीन जिस प्रांत में इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रहा है, वो बलूचिस्तान लंबे समय से पाकिस्तान से अलग होने की मांग करता रहा. उसका आरोप है कि पाकिस्तान सरकार उसका फायदा तो उठा रही है, लेकिन आर्थिक तौर पर उसे एकदम बदहाल कर रखा है. बता दें कि बलूचिस्तान में गोल्ड, तांबे और गैस का सबसे बड़ा भंडार है. पाकिस्तान की कुल गैस का 40 प्रतिशत यही सूबा देता है. 

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इसका फायदा पाकिस्तान को खूब हो रहा है लेकिन बलूचिस्तान पिछड़ा हुआ है. यही वजह है कि CPEC प्रोजेक्ट का विरोध होने लगा. कई बलूच जनजातियां लगातार चीन के इंजीनियरों और कामगारों पर हमले करने लगीं ताकि वो लौट जाएं. बलूच अलगाववादियों को डर है कि पाकिस्तान और चीन उसका इस्तेमाल करने के बाद दूध से मक्खी की तरह निकालकर फेंक देंगे. 

कुछ समय से बलूचिस्तान में कई अलगाववादी आंदोलन बढ़े. इस साल की शुरुआत ही बलूच प्रोटेस्ट से हुई. उन्होंने अमेरिका में वाइट हाउस के बाहर भी प्रदर्शन किए. पाक सरकार पर बलूच ह्यूमन राइट्स को खत्म करने का आरोप लगाते रहे. बलूचिस्तान के सपोर्टर अक्सर गायब हो जाते हैं, या फिर एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल किलिंग के शिकार बनते हैं. 

कौन-कौन से संगठन कर रहे आजादी की मांग 

बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) की आवाज सबसे ज्यादा सुनाई देती है. पहले वे शांति से अलगाव की मांग करते रहे. बीते कुछ दशकों से आंदोलन हिंसक हो चुका. पाकिस्तान सरकार ने बलूच इलाके में स्थिति खदानों को चीनियों को लीज पर दे रखा है. इसपर भड़के हुए बलूच प्रोटेस्टर बम धमाके भी करते रहते हैं.

पाकिस्तान ने साल 2006 में ही BLA को आतंकी गुट कह दिया. बलोच लिबरेशन फ्रंट, बलोच रिपब्लिकन आर्मी और लश्कर-ए-बलूचिस्तान जैसे कई गुट हैं, जो बलूचिस्तान की आजादी चाह रहे हैं. इधर पाकिस्तान सरकार को शक है कि बलूच आंदोलन को उनका पड़ोसी अफगानिस्तान ही हवा दे रहा है. वहां का चरमपंथी गुट तहरीक-ए-तालिबान (TTP) बलूच संगठनों को ट्रेनिंग देता है.

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किन जगहों पर फोकस 
बॉर्डर पर हमले ज्यादा हो रहे हैं. ये पोरस होते हैं, जहां से आतंकी आराम से यहां-वहां हो सकते हैं. इसके अलावा सीमा को कमजोर करने पर सरकार पर सीधा असर होता है. शहरी इलाकों में मस्जिद या बाजार सॉफ्ट टारगेट बनते हैं.

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