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स्वीडन में कुरान जलाने की मंजूरी... क्या है यूरेबिया जिससे डर रहा यूरोप?

इस्लामोफोबिया के बारे में तो बहुत से लोग जानते हैं, लेकिन एक और भी टर्म है- यूरेबिया. ये यूरोब का अरबीकरण है, जिसे लेकर पश्चिम बहुत डरा हुआ है. यही वजह है कि स्वीडन में कुरान जलाया जा रहा है और फ्रांस में मुस्लिमों पर सख्ती की बात हो रही है. इटली में मस्जिदों के बाहर प्रेयर करने पर पाबंदी लगाने की चर्चा है.

इस्लाम को लेकर यूरोप में डर बढ़ रहा है. सांकेतिक फोटो (AFP) इस्लाम को लेकर यूरोप में डर बढ़ रहा है. सांकेतिक फोटो (AFP)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 29 जून 2023,
  • अपडेटेड 12:49 PM IST

यूरोपीय देश स्वीडन में एक बार फिर कुरान जलाने की तैयारी की जा रही है. विरोध प्रदर्शन के लिए एक शख्स को इसकी इजाजत दी गई. पहले भी ऐसा हो चुका है, जिसकी वजह से NATO में उसे सदस्यता नहीं मिल सकी. इसके बाद भी स्वीडन अड़ा हुआ है. यहां तक कि बहुत से यूरोपियन देश उसके पाले में आ रहे हैं. वहां मुस्लिम चरमपंथ को घटाने के नाम पर कई बदलाव हो रहे हैं.

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कहां से आए यूरोप में मुस्लिम?

यूरोप में मुस्लिम आबादी सीरिया, इराक और युद्ध से जूझते देशों से आती गई. शुरुआत में यहां शरणार्थियों को लेकर सरकारें काफी उदार थीं. इसमें उनका खुद का भी हित था. कम आबादी वाले देशों के पास पैसे भरपूर थे और उन्हें काम करने के लिए मैनपावर की जरूरत थी. तो इस तरह से 60 के दशक से यूरोप में मुस्लिम आबादी बढ़ने लगी. यहां तक सबकुछ बढ़िया-बढ़िया दिखता रहा. यूरोप और मुस्लिम दोनों एक-दूसरे की जरूरतें पूरी करते रहे, लेकिन फिर चीजें बदलीं. 

जागरण के नाम पर कट्टरपंथ की हुई अपील

अस्सी के दशक के दौरान ईरान के धार्मिक नेताओं ने इस्लामिक जागरण की बात शुरू कर दी. वे अपील करते कि यूरोप जाकर खुद को यूरोपियन रंग-रूप में ढालने की बजाए मुसलमान खुद को मुस्लिम बनाए रखें. यहीं से सब बदलने लगा. मुस्लिम अपनी मजहबी पहचान को लेकर कट्टर होने लगे. पहले जो लोग फ्रांस या जर्मनी में आम लोगों के बीच घुलमिल रहे थे, वे एकदम से अलग होने लगे. इसके साथ ही उनकी बढ़ती आबादी भी यूरोप को अचानक दिखी. 

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स्वीडन में मस्जिद के सामने कुरान जलाने के प्रदर्शन को मंजूरी मिली. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

क्या माइग्रेशन पर रोक लगाने से डर दूर होगा?

नहीं. प्यू रिसर्च सेंटर का डेटा कहता है कि अगर इसी वक्त यूरोप अपने बॉर्डर सीलबंद कर दे तो भी कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. मुस्लिम आबादी बढ़ती ही जाएगी. इसकी वजह ये है कि वहां रह रही ज्यादातर मुस्लिम आबादी की औसत उम्र 13 साल है. ये फर्टिलिटी की उम्र में जाने पर ज्यादा संतानों को जन्म दे सकेंगे, जबकि यूरोपियन आबादी बड़ी उम्र की है और जन्मदर भी लगातार गिर रही है. 

किन देशों में ज्यादा मुस्लिम आबादी?

फ्रांस और जर्मनी इसमें सबसे ऊपर हैं. साल 2016 में फ्रांसीसी मुस्लिमों की आबादी 57 लाख पार कर चुकी थी. इसके बाद जर्मनी का नंबर आता है, जहां 49 लाख मुस्लिम बसे हुए हैं. यूनाइटेड किंगडम, इटली, नीदरलैंड, स्पेन, बेल्जियम, स्वीडन जैसे देश इनके बाद हैं. यूरोपियन यूनियन के तहत आने वाले साइप्रस में कुल आबादी का करीब 26 मुस्लिम ही हैं. 

युद्ध झेलते मुस्लिम देशों से मुसलमान आबादी यूरोप आने लगी. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

क्या है इससे डर?

खुली सोच और पहनावे वाले यूरोपियन देशों में मुस्लिम अपने रहन-सहन को लेकर ज्यादा कट्टर दिखने लगे. वे बाजार, अस्पताल, स्कूल-कॉलेज हर जगह दिखने लगे. यही बात यूरोप को परेशान करने लगी. अपनी घटती आबादी से वे पहले से डरे हुए थे. इसी समय यूरेबिया टर्म आया. यानी यूरोप का अरबीकरण. इस थ्योरी पर यकीन करने वाले मानते हैं कि मुस्लिम किसी छिपे हुए एजेंडा के तहत उनके यहां पहुंचे हैं. वे आबादी बढ़ाती जाएंगे और फिर उनके देश पर कब्जा कर लेंगे. 

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लोग इस आशंका में जी रहे हैं 

साल 2008 में एक किताब आई- स्टील्थ जेहाद. इसके लेखक रॉबर्ट स्पेंसर ने माना कि इस्लाम हर देश का इस्लामीकरण कर देगा, अगर वक्त रहते रोक न लगाई गई तो. किताबों का असर था या आसपास माइनोरिटी के बढ़ने का, कि यूरोप और स्कैंडिनेवाई देश भी यही मानने लगे. नॉर्वेजियन सेंटर फॉर होलोकास्ट एंड माइनोरिटी स्टडीज ने एक पोल में पाया कि 31% नॉर्वेजियन आबादी मानती है कि आज नहीं तो कल, मुस्लिम उनके देश को हड़प लेंगे. 

मुस्लिम आबादी युवा होने की वजह से फर्टाइल है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

फ्रांस में होने लगा बदलाव

साल 2021 में फ्रांस की नेशनल असेंबली ने एक विवादित बिल पास किया, जिसका नाम था- इस्लामिस्ट सेपरेटिज्म. इसके तहत कट्टरपंथ को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए. जैसे, इसके तहत उन स्कूल और शिक्षण संस्थानों को बंद करवाया जा सकेगा, जो शिक्षा के बहाने ब्रेनवॉश करते हैं. फ्रांस में फ्रेंच इमाम ही होंगे और विदेश से सीखकर आने वाले या विदेशी लोगों को इमाम नहीं बनाया जाएगा. दूसरे देशों से धार्मिक संगठनों के लिए आने वाले फंड पर नजर भी रखी जाएगी ताकि ये समझा जा सके कि पैसे कहां से आते हैं और उनका क्या हो रहा है. 

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क्या हो रहा है इटली में?

इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की सरकार ने एक ड्राफ्ट तैयार किया है, जो मस्जिदों से बाहर प्रेयर करने पर रोक लगाएगा. साथी ही वहां किसी और भाषा की बजाए इतालवी भाषा में प्रेयर करनी होगी ताकि स्थानीय लोग भी उसे समझ सकें कि क्या कहा जा रहा है. 

यूरोप में मस्जिदों को लेकर सख्ती शुरू हो चुकी है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

डेनिश लोग कैंपेन चला रहे

डेनमार्क में तो मुहिम ही चल पड़ी- Stop Islamiseringen af Danmark, मतलब डेनमार्क का इस्लामीकरण बंद करो. कई पार्टियों ने नेता चुनाव का अपना एजेंडा ही यही बताते हैं कि वे मुस्लिम शरणार्थियों के लिए देश की सीमाएं बिल्कुल बंद कर देंगे.

अब बात करें, उत्तरी यूरोप के देश स्वीडन की, तो यहां हालात काफी अलग हैं. अलग-अलग थिंक टैंक दावा कर रहे हैं कि शरणार्थियों की तरह आए मुस्लिम कुछ ही सालों में स्वीडन की सबसे बड़ी आबादी बन जाएंगे. इसके बाद राजनीति से लेकर बिजनेस पर उनका कब्जा होगा, और फिर स्वीडन वैसा देश नहीं रह जाएगा, जैसा अब तक रहा. 

स्वीडन से काफी लोग ISIS में शामिल होने गए थे

उनका ये डर इस बात से भी बढ़ा कि ISIS के दौरान अकेले स्वीडन से 300 से ज्यादा लोग आतंकी बनने इराक और सीरिया चले गए. पर कैपिटा के हिसाब से यूरोप से सबसे अधिक जेहादी भेजने वाले देशों में स्वीडन का नाम आता है. ये बात भी स्वीडिश लोगों को परेशान करने लगी. इसके साथ ही एक एक्सट्रीम को खत्म करने के लिए वहां दूसरा एक्सट्रीम अपनाया जाने लगा. कुरान जलाने की घटनाएं वहां पहले भी हो चुकी हैं.

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