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तुर्की विरोध में तो पुतिन ने किया वेलकम... जानिए क्या है इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर प्रोजेक्ट

G-20 समिट से इतर भारत-अमेरिका-यूरोपीय यूनियन और सऊदी अरब के बीच एक अहम कॉरिडोर को लेकर सहमति बनी है. इसे इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोपीय इकोनॉमिक कॉरिडोर नाम दिया गया है. ये भारत को खाड़ी देशों और फिर यूरोप तक जोड़ेगा. इस कॉरिडोर में क्या होगा खास? इसे क्यों चीन की काट कहा जा रहा है? समझिए...

भारत की मेजबानी में हुई G-20 समिट से इतर इस प्रोजेक्ट पर सहमति बनी है. (फाइल फोटो-PTI) भारत की मेजबानी में हुई G-20 समिट से इतर इस प्रोजेक्ट पर सहमति बनी है. (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 9:53 AM IST

भारत, यूरोपियन यूनियन, अमेरिका और सऊदी अरब... ये चार देश मिलकर एक मेगा प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. इसका नाम है- इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर यानी IMEC. इसे ऐतिहासिक समझौता बताया जा रहा है.

इस समझौते पर भारत में हुई G-20 समिट से इतर सहमति बनी है. 9 सितंबर को इस प्रोजेक्ट के एमओयू पर दस्तखत हो चुके हैं. दस्तखत करने वाले देशों में भारत के अलावा अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यूरोपियन यूनियन, इटली, फ्रांस और जर्मनी हैं.

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इस कॉरिडोर को लेकर प्रधानमंत्री ने X पर ट्वीट किया, 'साझा उम्मीदों और सपनों का खाका तैयार करते हुए इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर, इनोवेशन और विकास का प्रतीक के रूप में उभरेगा, ये हमारा वादा है. उम्मीद है कि ये कॉरिडोर दुनियाभर में मानव प्रयास और एकता का गवाह बन सकता है.'

इस कॉरिडोर के बनने के बाद रेल और जहाज से ही भारत से यूरोप तक पहुंचा जा सकेगा. इस कॉरिडोर को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का जवाब माना जा रहा है. 

विरोध में तुर्की, पुतिन ने किया वेलकम

तुर्की ने इस कॉरिडोर का विरोध किया है. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने कहा कि उन्हें पता है कि कई देश ट्रेड कॉरिडोर बनाकर अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि तुर्की के बिना कोई कॉरिडोर नहीं है.

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हालांकि, इस कॉरिडोर पर भारत को रूस का साथ मिला है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर फैसले का स्वागत किया है और इसके लॉजिस्टिक फायदों पर जोर दिया

क्या है IMEC?

भारत, मिडिल ईस्ट और यूरोपीय देशों के बीच हुआ ये समझौता असल में एक इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है. इस प्रोजेक्ट पर कितना खर्च आएगा, अभी इसका कोई आंकड़ा तो सामने नहीं आया है. लेकिन अनुमान है कि इस पर 20 अरब डॉलर खर्च हो सकते हैं.

इस प्रोजेक्ट के तहत, बंदरगाहों से लेकर रेल नेटवर्क तक तैयार किया जाएगा. अभी देखा जाए तो मिडिल ईस्ट के देशों में रेल नेटवर्क उतना मजबूत नहीं है, जितना भारत और यूरोपीय देशों में है. 

ऐसा होगा ये कॉरिडोर

इस कॉरिडोर के दो हिस्से होंगे. पहला- ईस्टर्न कॉरिडोर, जो भारत को खाड़ी देशों से जोड़ेगा. दूसरा- नॉर्दर्न कॉरिडोर, जो खाड़ी देशों को यूरोप से जोड़ेगा.

इस कॉरिडोर में रेलवे लाइन के साथ-साथ इलेक्ट्रिसिटी केबल, हाइड्रोजन पाइपलाइन और एक हाई-स्पीड डेटा केबल भी होगी.

कहां से कहां तक होगा कॉरिडोर?

इस कॉरिडोर में रेल नेटवर्क ही नहीं होगा, बल्कि रेलवे के साथ-साथ शिपिंग नेटवर्क भी होगा. भारत के मुंबई से लेकर संयुक्त अरब अमीरात तक समुद्री रास्ता होगा. 

उसके बाद पूरे मिडिल ईस्ट के देशों में रेल नेटवर्क तैयार होगा. ये रेल नेटवर्क संयुक्त अरब अमीरात से लेकर सऊदी अरब, जॉर्डन और इजरायल तक होगा. 

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इसके बाद फिर समुद्री रास्ता होगा. इसके दो रास्ते होंगे. पहला रास्ता इजरायल के बंदरगाह से इटली तक जाएगा. दूसरा रास्ता इजरायल से फ्रांस तक जाएगा. 

बताया जा रहा है कि पूरा कॉरिडोर छह हजार किलोमीटर लंबा होगा. इसमें साढ़े तीन हजार किमी का समुद्री रास्ता होगा.

पर इसकी जरूरत क्यों?

अमेरिकी डिप्टी एनएसए जॉन फाइनर ने इस कॉरिडोर को बनाने के तीन कारण बताए हैंः-

- पहलाः एनर्जी और डिजिटल कम्युनिकेशन के जरिए इसमें शामिल देशों में समृद्धि बढ़ेगी.
- दूसराः ये प्रोजेक्ट लोअर और मिडिल-इनकम वाले देशों में विकास के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करेगा.
- तीसराः मिडिल ईस्ट के देशों में अक्सर अस्थिरता बनी रहती है, जो इस कॉरिडोर के कारण कम होने की उम्मीद है.

इससे फायदा क्या होगा?

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस कॉरिडोर को 'सबसे बड़ी डील' बताया है. उन्होंने कहा, 'ये बड़ी डील है. ये वाकई बहुत बड़ी डील है.'

इस कॉरिडोर के जरिए भारत से लेकर मिडिल ईस्ट और फिर यूरोप तक न सिर्फ कारोबार करना आसान होगा, बल्कि एनर्जी रिसोर्सेस का ट्रांसपोर्ट और डिजिटल कनेक्टिविटी बढ़ाने में भी मदद मिलेगी.

ऐसी उम्मीद है कि इस कॉरिडोर के बन जाने के बाद भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में 40% समय की बचत होगी. अभी भारत से समुद्री रास्ते से जर्मनी तक सामान पहुंचने में महीनेभर से ज्यादा लग जाता है. माना जा रहा है कि कॉरिडोर बनने के बाद दो हफ्ते में सामान पहुंच जाएगा.

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एक फायदा ये भी

अभी जो कंटनेर सामान लेकर मुंबई से निकलते हैं, वो स्वेज नहर के रास्ते यूरोप तक पहुंचते हैं. कॉरिडोर बनने के बाद ये कंटेनर दुबई से इजरायल के हाइफा पोर्ट तक ट्रेन से जा सकते हैं. इससे समय और पैसा, दोनों बचेगा.

स्वेज नहर एशिया को यूरोप से और यूरोप को एशिया से जोड़ती है. दुनियाभर में तेल का जितना कारोबार होता है, उसका 7% इसी नहर के जरिए किया जाता है. वहीं, वैश्विक कारोबार का 10% कारोबार भी स्वेज नहर से ही होता है.

मार्च 2021 में स्वेज नहर में एक बड़ा सा जहाज फंस गया था. ये जहाज छह दिन तक यहां फंसा रहा था. इससे हर दिन 9 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा था. अनुमान है कि स्वेज नहर से हर दिन 50 से ज्यादा जहाज गुजरते हैं.

ऐसे में अगर भविष्य में फिर कोई जहाज स्वेज नहर में फंसता है या कोई और दूसरी परेशानी आती है तो हमारे पास एक कॉरिडोर होगा और उससे अंतरराष्ट्रीय कारोबार प्रभावित नहीं होगा.

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन. (फाइल फोटो)

भारत को क्या होगा फायदा?

सबसे बड़ा फायदा तो यही होगा कि भारत का एक्सपोर्ट बढ़ेगा. प्राचीन काल में सिल्क रूट और स्पाइस रूट के जरिए भारत कपड़ों और मसालों का कारोबार करता था. यही वजह थी क कि उस समय भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हुआ करता था. 

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ऐसा माना जा रहा है कि इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर बनने से भारत का एक्सपोर्ट कई गुना तक बढ़ सकता है. इसलिए इस डील को ऐतिहासिक बताया जा रहा है.

वित्त वर्ष 2023-24 में अप्रैल से जुलाई के बीच भारत का एक्सपोर्ट 11.38 लाख करोड़ रुपये का रहा है. जबकि, 2022-23 में इन्हीं चार महीनों में भारत ने 12.39 लाख करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट किया था. ये दिखाता है कि भारत का एक्सपोर्ट कम हुआ है.

चीन को कैसे मिलेगा जवाब?

साल 2013 में चीन ने वन बेल्ट, वन रोड प्रोजेक्ट शुरू किया था. इसे अब बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव कहा जाता है. 

इस प्रोजेक्ट के तहत, चीन पूरी दुनिया में सड़कों, रेलवे लाइनों और समुद्री रास्तों का जाल बनाना चाहता है, ताकि वो कारोबार कर सके. 

इसलिए इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर को चीन के बीआरआई का जवाब माना जा रहा है. क्योंकि, IMEC के जरिए रेलवे लाइन और समुद्री रास्तों का जाल बनाया जाएगा, ताकि एशिया से यूरोप तक आसानी से और कम समय में कारोबार किया जा सके.

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