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क्या दोनों बड़ी पार्टियों को किनारे लगाने की तैयारी हो रही है बांग्लादेश में, पहले भी आया था माइनस 2 फॉर्मूला?

लगभग 20 साल पहले जब बांग्लादेश में सेना के सपोर्ट वाली सरकार आई, तब उसने तुरत-फुरत अपने सारे राजनैतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया. इनमें शेख हसीना और खालिदा जिया भी थे. इसे माइनस 2 फॉर्मूला कहा गया. अब दोबारा वही माहौल और वही इरादा दिख रहा है.

बांग्लादेश में राजनैतिक अस्थिरता अब भी जारी है. (Photo- AFP) बांग्लादेश में राजनैतिक अस्थिरता अब भी जारी है. (Photo- AFP)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 24 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 12:42 PM IST

अगस्त में बांग्लादेश में राजनैतिक भूचाल आया, जिसमें शेख हसीना की सरकार गिर गई. तब से वहां अंतरिम सरकार आई हुई है, जिसके नेता मोहम्मद यूनुस हैं. उनकी फॉरेन पॉलिसी में भारत के लिए ठंडापन है, जबकि पुराने दुश्मन पाकिस्तान से गलबहियां हो रही हैं. इस बीच देश में आम चुनाव हो सकते हैं. माना जा रहा है कि इलेक्शन में एक बार फिर माइनस 2 फॉर्मूला अपनाया जा सकता है, यानी दो मुख्य दलों के नेताओं को आउट करके, केवल एक पार्टी का कब्जा. 

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फिलहाल क्या चल रहा है ढाका में 

अगस्त में आरक्षण के विरोध में चल रहे प्रोटेस्ट ने ऐसा हिंसक रूप लिया कि तत्कालीन अवामी लीग सरकार का तख्तापलट हो गया और उसकी लीडर शेख हसीना को देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी. लीग के कई और नेता भी देश से चले गए, वहीं कई नेता जेल में डाल दिए गए. 

दूसरा प्रमुख दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) भी कमजोर पड़ा हुआ है. उसकी नेता खालिदा जिया इलाज के लिए लंदन जा चुकी हैं. इसे एक तरह से स्व-निर्वासन ही माना जा रहा है. पार्टी के कुछ नेता देश में हैं और वक्त-बेवक्त कुछ न कुछ हलचल भी कर रहे हैं, लेकिन ये समंदर में मछली के मूवमेंट से ज्यादा नहीं. इस बीच देश में जनरल इलेक्शन्स की बात चल रही है. अनुमान है कि इस बार भी लगभग दो दशक पुराना फॉर्मूला जिंदा हो सकता है, जिसे माइनस टू पैटर्न कहा गया था. 

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क्या हुआ था 20 साल पहले

साल 2007 ढाका की राजनीति में नए चैप्टर की शुरुआत का वक्त था. राजनैतिक उथल-पुथल एक्सट्रीम पर थी, और इसके केंद्र में था एक विवादित फॉर्मूला- माइनस टू. इसका मकसद बांग्लादेश की दो सबसे मजबूत नेताओं, शेख हसीना और खालिदा जिया को सत्ता के आसपास से भी हटाना था. दरअसल इससे ठीक पहले जिया की सरकार थी. अक्टूबर 2006 में उनका कार्यकाल खत्म होकर चुनाव होने को थे. इससे ठीक पहले विपक्ष यानी अवामी लीग ने आरोप लगाया कि जिया सरकार आने वाले चुनाव में धांधली की योजना बना रही है. इसी बात को तूल देते हुए बांग्लादेश में प्रोटेस्ट होने लगे. 

संभालने के लिए अंतरिम सरकार बनी, लेकिन उसपर भी इतना दबाव बना कि उसे भी सत्ता से हटना पड़ा. आखिरकार फखरुद्दीन अहमद के नेतृत्व में एक सैन्य समर्थित सरकार बनी. इस सैन्य सरकार का कहना था कि वो चुनाव से बाद सत्ता से हट जाएगी. हालांकि उसने दोनों मुख्य नेताओं और उनके दलों को राजनीति से बाहर करने की कोशिश की. इसके लिए हसीना और जिया, दोनों को जेल में डाल दिया गया. यही माइनस टू फॉर्मूला था. जेल में रहते हुए ही सरकार ने इनपर दबाव डाला कि वे राजनीति से संन्यास ले लें लेकिन दोनों ने ही इनकार कर दिया. 

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इस बीच दोनों दलों के समर्थक सड़कों पर उतर आए. यहां तक कि ढाका के रवैए की आलोचना इंटरनेशनल मंचों पर भी होने लगी. आखिरकार दोनों की रिहाई हुई और हसीना की पार्टी अवामी लीग ने आम चुनावों में जीत हासिल की, जबकि जिया की पार्टी बीएनपी विपक्ष में चली गई. यह स्थिति हाल-हाल तक रही. 

अब देश में एक बार फिर अंतरिम सरकार है. मोहम्मद यूनुस मुख्य सलाहकार हैं, जो बार-बार संविधान और चुनावी व्यवस्था में सुधार लाने की बात करते हैं. यूनुस का कहना है कि इन सुधारों के बाद ही देश में आम चुनाव कराए जाएंगे. अनुमान लगाया जा रहा है कि इन सुधारों से यूनुस का मतलब यही है. ये आशंका बीएनपी के महासचिव फखरुल इस्लाम आलमगीर ने भी जाहिर की थी. उन्होंने साल 2007 के दौर को याद करते हुए कहा था कि अंतरिम सरकार ने दोनों बड़ी पार्टियों को किनारे लगाने की कोशिश की थी, यही प्रयास अब दिख रहे हैं. बीएनपी को डर है कि अगर जल्द चुनाव न हुए तो कम से कम उनकी पार्टी का यही अंजाम हो सकता है. 

क्या कहना है अंतरिम सरकार का

दोनों बड़ी पार्टियों के लीडर बाहर हैं. ऐसे में यूनुस सरकार पर कई आरोप लग रहे हैं. इसे खारिज करते हुए अंतरिम सरकार के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने कहा कि माइनस टू फॉर्मूला पर चिंता बेतुकी है. देश में चुनावी व्यवस्था खराब पड़ी हुई है, जिसे ठीक करने में समय लगेगा. 

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क्या कोई नई पार्टी आ सकती है 

बीते सालभर में लगातार छात्र आंदोलन हुए. यहां तक कि बगैर सेना के ही तख्तापलट हो गया. इससे ये अनुमान भी लगा कि आने वाले समय में छात्रों की पार्टी भी मेनस्ट्रीम राजनीति में आ सकती है. फिलहाल नेशनल सिटिजन्स कमेटी (एनसीसी) के बैनर तले छात्र काम कर रहे हैं. ये कमेटी भी सुधारों की बात करती है. हो सकता है कि अंतरिम सरकार आम चुनावों को इसलिए ही टाल रही हो ताकि स्टूडेंट्स को अपना दल तैयार करने का पूरा मौका मिल जाए, और माइनस टू फॉर्मूला लागू हो सके. 

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