
दुनियाभर में तलाक की दर तेजी से बढ़ी है. अमेरिका को ही देखें तो पता लगता है कि वहां सालाना लगभग साढ़े 4 मिलियन शादियां होती हैं, जिनमें से 50 प्रतिशत रिश्ते तलाक पर खत्म होते हैं. डिवोर्स की ये प्रक्रिया बहुत लंबी होती है. अक्सर एक-दूसरे पर आरोप लगाकर ही तलाक मिल पाता है. इसी छीछालेदर को रोकने के लिए कई देश 'नो-फॉल्ट डिवोर्स' को मंजूरी दे रहे हैं. इसमें कोई भी पार्टी, दूसरे में कोई कमी बताकर अलग नहीं होगी, बल्कि बस अलग हो जाएगी.
सोवियत संघ यानी रूस से शुरुआत
नो-फॉल्ट डिवोर्स दुनिया के लिए भले नया हो, रूस में इसे 100 साल से भी ज्यादा हो चुके. साल 1917 में बोल्शेविक क्रांति हुई. व्लादिमीर लेनिन इसके नेता थे, जिन्होंने देश (तब यूएसएसआर) को आधुनिक बनाने का जिम्मा लिया. इससे पहले रशियन ऑर्थोडॉक्स चर्च ही शादी और अलगाव को देखता. उसका कहना था कि डिवोर्स जैसी कोई चीज नहीं होती. जोड़े बेहद नाखुश रहकर भी शादियों में बने रहते थे. सिर्फ एक्सट्रीम हालातों में ही तलाक मिलता था, जैसे मारपीट, धोखा.
बोल्शेविक क्रांति के तुरंत बाद शादी का धार्मिक चोला हटा दिया गया. शादियां पवित्र तब भी मानी जाती थीं, लेकिन किसी को उसमें बने रहने की जबर्दस्ती नहीं थी. रशियन रजिस्ट्री ऑफिस में जाकर जोड़े अलग होने के लिए अर्जी डालने लगे. तीन दिन के भीतर दूसरी पार्टी को नोटिस जाता और तुरत-फुरत फैसला भी होने लगा.
बच्चों की जिम्मेदारी मां पर आने लगी
इसमें आपस में आरोप-प्रत्यारोप, लड़ाई-भिड़ाई की गुंजाइश कम से कम होती थी. हां, एक ही मुश्किल थी. जोड़े की अगर संतानें हों तो उनकी देखभाल का जिम्मा अक्सर मां के पास आ जाता. पिता चाहे तो सपोर्ट करे, चाहे न करे, कोर्ट इसमें कोई दखल नहीं देता था. शादियां तेजी से खत्म होने लगीं. जोसेफ स्टालिन ने सत्ता में आने के बाद तलाक के मॉर्डन सिस्टम को परिवार तोड़ने वाला बताते हुए उसपर रोक लगा दी. अब यहां भी तलाक की प्रोसेस बाकी देशों की तरह है.
क्या है नो-फॉल्ट डिवोर्स
हर देश में तलाक लेने के लिए कोई न कोई वजह देनी होती है. अदालत उस वजह को ठोकता-बजाता है. सुलह कराने की कोशिश करता है. फैमिली कोर्ट दखल देता है. इसके बाद भी बात न बने, तब जाकर तलाक मिलता है. लेकिन नो-फॉल्ट डिवोर्स में ये सारे पचड़े नहीं. इसमें पति या पत्नी किसी को भी ये साबित करने की जरूरत नहीं कि पार्टनर ने उसे धोखा दिया है, या मारपीट की, या फिर किसी तरह की मानसिक प्रताड़ना दी है. उसका सिर्फ इतना कहना काफी है कि रिश्ता अब मर चुका है.
क्यों अपना रहे डिवोर्स का ये तरीका
ज्यादातर देशों में तलाक 'फॉल्ट थ्योरी' पर आधारित है. जब तक कि एक पक्ष, दूसरे की गलतियां नहीं गिनाएगा, तब तक तलाक नहीं मिल सकेगा. इस प्रोसेस के चलते कई बार एक पार्टी, झूठे सबूत खोजती है ताकि अलग हुआ जा सके. ऐसे में दोनों पक्षों को ज्यादा तकलीफ होती है. बच्चे भी इसमें घसीटे जाते हैं. कई देश इसी फॉल्ट थ्योरी को नो-फॉल्ट में बदल रहे हैं ताकि ये सारी मुश्किलें न आएं.
ब्रिटेन सबसे ताजा उदाहरण है, जहां साल 2022 में ही नो-फॉल्ट डिवोर्स कानून में आया. डिवोर्स, डिजॉल्यूशन एंड सेपरेशन एक्ट में ब्लेम गेम की कोई जगह नहीं. इसमें एक पार्टी, या दोनों ही मिलकर डिवोर्स के लिए आवेदन करेंगे. कपल को 20 हफ्तों का समय दिया जाता है, अगर वे आपस में सुलह करना चाहें. इसके बाद तलाक हो जाता है.
क्यों जरूरत महसूस हुई
ब्रिटिश महिला टिनी ओवेन्स ने शादी के 40 साल बाद तलाक का आवेदन दिया. कोर्ट में उसने कहा कि पति उसके साथ न क्रूरता करते हैं, न धोखा दिया, लेकिन उसे तलाक चाहिए. मामला आगे बढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. साल 2018 में यहां से भी उसका आवेदन खारिज हो गया. इसके बाद इस महिला ने कैंपेन चलाया, जिसमें कहा गया कि खुश न रहना भी रिश्ता खत्म होने की वजह हो सकता है.
क्या हो सकता है खतरा
ब्लेम गेम रोकने के लिए हो रहा ये बदलाव मुसीबत भी ला सकता है, खासकर महिलाओं के लिए. इसपर फिलहाल कोई स्टडी तो नहीं है कि जिन देशों में नो-फॉल्ट डिवोर्स आ चुका, वहां क्या तलाक बढ़ा है, लेकिन सोशल साइंटिस्ट मानते हैं कि पुरुष, महिलाओं से ज्यादा तलाक लेंगे. इसके बाद वे बच्चों के लिए अपनी मामूली जिम्मेदारी ही उठाएंगे और मां पर दोहरा बोझ पड़ेगा. हार्वर्ड जर्नल ऑफ लॉ एंड पब्लिक पॉलिसी के समाजशास्त्री डगलस डब्ल्यू एलन मानते हैं कि इससे मौकापरस्त लोग ज्यादा डिवोर्स लेंगे और महिलाएं ज्यादा अकेली पड़ती जाएंगी.
फिलहाल किन देशों में है मंजूरी
यूनाइटेड किंगडम के अलावा अमेरिका के ज्यादातर राज्य, चीन, माल्टा, स्वीडन, स्पेन और मैक्सिको में नो-फॉल्ट डिवोर्स को मंजूरी मिली हुई है. स्वीडन में हालांकि इसमें थोड़ा ट्विस्ट है. एक पार्टी अलगाव चाहे, और दूसरी न चाहे, या फिर उनके बच्चे 16 साल के कम उम्र के हों, तब उन्हें 6 से 12 महीने का टाइम दिया जाता है. इतने समय के लिए वे एक ही घर में रहते हैं. इसके बाद भी अगर एक पक्ष डिवोर्स चाहे तो उसे मंजूरी मिल जाती है.
कैसे है भारत के म्युचुअल तलाक से अलग
आपसी सहमति से तलाक के लिए दोनों पक्षों का राजी होना जरूरी है. इसके बाद भी कोर्ट दोनों को थोड़ा समय देती है ताकि वे आपस में मिलकर सुलह कर सकें. ऐसा न होने, या पहले ही लंबे समय तक सेपरेट रह चुकने के बाद म्युचुअल डिवोर्स हो जाता है. ये प्रोसेस स्लो है और दोनों का राजीनामा चाहिए, जबकि नो-फॉल्ट डिवोर्स में लगभग 3 महीनों के भीतर निपटारा हो जाता है, वो भी एक पक्ष की मर्जी से ही.