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क्या है रोमियो-जूलियट कानून जो सहमति से बने यौन संबंधों में किशोरों को सजा से बचाता है?

सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करते हुए रोमियो-जूलियट कानून को लागू करने की मांग की गई. अदालत ने अब इसपर केंद्र से राय मांगी है. ये कानून बन जाए तो नाबालिगों के बीच यौन संबंध अपराध की श्रेणी से हट जाएंगे, अगर वे सहमति से बने हों और लड़का, लड़की से 4 साल से बड़ा न हो. कई देश पहले ही ये मॉडल अपना चुके हैं.

टीन एजर्स में सहमति से यौन संबंधों पर नए कानून की बात होती रही. सांकेतिक फोटो (Unsplash) टीन एजर्स में सहमति से यौन संबंधों पर नए कानून की बात होती रही. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 21 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 5:50 PM IST

लगातार काफी सारे ऐसे मामले आते रहते हैं जिसमें टीन एजर लड़की सहमति से बने संबंधों में प्रेग्नेंट हो जाए. इसके बाद उसके परिजन लड़के पर अपनी बच्ची को बहलाने का आरोप लगाते हैं. कोर्ट केस होते हैं और कई बार किशोर जेल चला जाता है. अक्सर इसपर बात होती रही कि अगर लड़का-लड़की दोनों हमउम्र हैं और आपसी रजामंदी से रिश्ता बने तो इसमें एक पक्ष को दुष्कर्म की सजा मिलना गलत है. हाल में सुप्रीम कोर्ट में रोमियो जूलियट कानून से जुड़ी अर्जी दायर हुई, जिसमें किशोरों को इम्युनिटी देने की मांग की गई. 

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फिलहाल क्या है कानून

आमतौर पर 18 साल से कम उम्र के किशोर अपनी मर्जी से शारीरिक संबंध बनाएं और लड़की गर्भवती हो जाए तो लड़के पर दुष्कर्म का अपराध दर्ज होता है. फिलहाल बच्चों को यौन अपराध से बचाने के लिए पॉक्सो एक्ट यानी यानी द प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफंसेंस एक्ट लागू है. इसमें सहमति का कोई मतलब नहीं, अगर किशोर के साथ यौन संबंध बने तो वो क्राइम ही कहलाएगा. इसी तरह से धारा 375 के तहत 16 साल से कम उम्र की लड़की संबंध के रजामंदी दे तो भी इसका कोई मतलब नहीं होता और पेरेंट्स की शिकायत पर लड़के पर रेप केस लगता है.  

क्या है रोमियो-जूलियट लॉ

रोमियो-जूलियट कानून रजामंदी वाले मामलों में लड़के के लिए प्रोटेक्शन मांगता है. इसमें मांग की गई कि कोर्ट कम से कम 16 से 18 साल के टीन एजर्स के बीच स्वेच्छा से बने संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दे. इससे छोटी उम्र पर सजा का प्रावधान लागू रहे. याचिका में तर्क किया गया कि आजकल के टीन एजर्स के पास इतना दिमाग है कि वे सोच-समझ.कर ही काम करते हैं. ऐसे में एक पक्ष को परेशान करने का कोई मतलब नहीं.

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रोमियो-जूलियट कानून हालांकि लड़के को कुछ खास स्थितियों में ही इम्युनिटी देता है. अगर दोनों पक्षों की उम्र में ज्यादा फासला हो, जैसे लड़की 13 और लड़का 18 का हो, यानी उम्र में 4 साल से ज्यादा का अंतर हो तो लड़के पर हर हाल में रेप केस बनेगा. 

क्यों जरूरत महसूस हो रही है

ये पहली बार नहीं. याचिका दायर होने से पहले खुद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस बारे में बात की थी. उन्होंने कहा था कि पॉक्सो जैसे कानून की वजह से सहमति से बने संबंधों में भी एक पक्ष काफी परेशानी झेलता है, जबकि एक उम्र के बाद बच्चे अपने मन और शरीर का जोखिम समझते हुए फैसला ले पाते हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के नतीजों से भी इस बात को बल मिला, जिसमें करीब 39 फीसदा लड़कियों ने माना कि उन्होंने जब पहली बार यौन संबंध बनाए तो वे 18 साल से कम उम्र की थीं. 

विदेशों में काफी पहले ही ये कानून अपनाया जा चुका

बहुत से देश रोमियो-जूलियट कानून के तहत नाबालिगों को यौन संबंध में इम्युनिटी देते हैं, अगर वो सहमति से हो. हर देश में कंसेंट की एज अलग-अलग है. इसे एज ऑफ कंसेंट रिफॉर्म भी कहा जाता है. वैसे इसपर भी काफी बवाल होता रहा. मसलन, जापान में सहमति की उम्र 13 साल है. इसपर बहुत सी लड़कियों के पेरेंट्स का मानना था कि ये इतनी कच्ची उम्र है, जिसमें बहलाना-फुसलाना आसान है. इस समय लड़कियां अपने सही-गलत का फैसला करने लायक नहीं होतीं और गर्भवती होने पर जोखिम में आ जाती हैं. हो-हल्ले के बाद कुछ समय पहले ही उम्र बढ़ाकर 16 की गई. 

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क्या खतरे हैं रोमियो-जूलियट कानून के

कई दक्षिण अफ्रीकी देशों में सहमति की उम्र और भी कम है. इसपर लगातार सवाल उठता रहा कि अगर लड़की प्रेग्नेंट हो जाए या किसी यौन बीमारी का शिकार हो जाए तो उसे बचानेवाला कोई नहीं रहता. रिफॉर्म लाने की बात उठा रही मानवाधिकार संस्थाओं का ये भी कहना है कि कंसेंट की कम उम्र के चलते टीनएज प्रेग्नेंसी तेजी से बढ़ रही है, जिसके बाद अक्सर लड़की की पढ़ाई छूट जाती है और वो छोटी-मोटी नौकरी करने पर मजबूर रहती है. इस बात के हवाले से सहमति की आयु में बदलाव की बात होती रही, लेकिन फिलहाल सबकुछ वैसा ही चल रहा है.

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