
अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने डिपोर्टेशन की कड़ी में एक और फैसला लेते हुए एलियन एनीमीज एक्ट लागू कर दिया. इसके साथ ही वेनेजुएला से आए नागरिक वापस लौटाए जा रहे हैं. फेडरल कोर्ट ने हालांकि ट्रंप के इस फैसले पर दो हफ्तों या अगले निर्णय तक के लिए रोक लगाई हुई थी लेकिन राष्ट्रपति ने इसे अनदेखा कर दिया. अब चर्चा हो रही है कि क्या राष्ट्रपति के पास इतनी शक्ति है कि वो कोर्ट को भी अनसुना कर दे, या फिर ट्रंप पर कोई एक्शन भी लिया जा सकता है.
अभी क्या हुआ
ट्रंप प्रशासन ने कथित तौर पर अमेरिका में रह रहे क्रिमिनल गैंग्स को तोड़ने के लिए एलियन एनीमीज एक्ट लागू कर दिया. लगभग सवा दो साल पुराने इस एक्ट को अब तक युद्ध के दौरान ही लागू किया गया था. ऐसे में शांति काल में इसका आना अदालतों को परेशान कर रहा है. उन्होंने ट्रंप के इस फैसले पर कुछ समय के लिए रोक भी लगा दी लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ.
क्या कोर्ट के हाथ बंधे हुए हैं
अमेरिका में वैसे तो वाइट हाउस से पूरा देश चलता है लेकिन कोर्ट के पास हक है कि वो राष्ट्रपति के भी फैसलों को बदल सके, या उनपर रोक लगा सके. ऐसे कई वाकये होते रहे हैं. इसके पीछे भी वजह है. दरअसल जब अमेरिकी संविधान बन रहा था, तब सुप्रीम पावर देते हुए फाउंडर्स को डर हुआ कि कहीं प्रेसिडेंट राजा की तरह मनमानियां न करने लगे. इसलिए सत्ता को तीन हिस्सों में बांट दिया गया.
- एग्जीक्यूटिव ब्रांच में राष्ट्रपति और उसका एडमिनिस्ट्रेशन आता है.
- लेजिस्लेटिव के तहत सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स काम करते हैं.
- ज्यूडिशियल ब्रांच में अदालतें, खासकर सुप्रीम कोर्ट आती है.
कब कोर्ट ने जताया अपना अधिकार
अदालतों को यह अधिकार मिला कि वे संविधान की रक्षा करें और किसी भी कानून या सरकारी आदेश को रद्द कर सकें, अगर वह संविधान के खिलाफ जाता दिखे. इसकी शुरुआत 19वीं सदी में हुई, जब कोर्ट ने पहली बार राष्ट्रपति को चैलेंज किया.
बात अमेरिका के चौथे राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन के वक्त की है. उनसे ठीक पहले तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एडम्स ने अपने टर्म के आखिरी दिनों में कुछ जजों की नियुक्तियां कीं, जिनमें से एक थे विलियम मार्बरी. जेफरसन ने यह नियुक्तियां रद्द करनी चाहीं लेकिन उनमें से एक जज विलियम मार्बरी गुस्से में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. अदालत अगर जज के पक्ष में रहती तो राष्ट्रपति जेफरसन आदेश मानने से इनकार कर सकते थे. इससे कोर्ट की साख कमजोर होती. वहीं अगर अदालत सरकार के पक्ष में होती तो लोग उसे कमजोर मान सकते थे.
हासिल की ज्यूडिशियल रिव्यू पावर
ऐसे में एससी के तत्कालीन जजों ने एक बड़ा फैसला लेते हुए कहा कि अदालत के पास यह अधिकार है कि वह तय करे कि कोई कानून संविधान के खिलाफ है या नहीं. और अगर कोई कानून या फैसला असंवैधानिक है, तो अदालत उसे अमान्य कर सकती है. कोर्ट ने उस कानून को ही अमान्य कर दिया, जिसके तहत मार्बरी ने उसके दरवाजे खटखटाए थे. इसके साथ ही कोर्ट के पास ज्यूडिशियल रिव्यू की ताकत आ गई. यानी वो राष्ट्रपति तक के निर्णय को तौल सकती है. इसके बाद से कई बार अदालतों ने राष्ट्रपति के फैसलों को पलट दिया.
पहले कार्यकाल में ट्रंप भी झेल चुके झटका
पहला टर्म खत्म होने से ठीक पहले ट्रंप ने देश में ड्रीमर प्रोग्राम को खत्म करने के आदेश दिए थे, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया. ड्रीमर उन लाखों बच्चों को कहा जाता है, जिनके पेरेंट्स उन्हें गैरकानूनी ढंग से अमेरिका ले लाए थे. ये बच्चे अमेरिका में ही पले-बढ़े लेकिन कानूनी नागरिकता के बगैर.
बराक ओबामा ने इन बच्चों के लिए एक योजना शुरू की ताकि उन्हें डिपोर्टेशन में छूट मिल सके और वे पढ़ाई-काम कर सकें. लेकिन ट्रंप ने प्रोग्राम को अवैध कहते हुए उसपर रोक लगाने की कोशिश की. ट्रंप के आदेश को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति ने प्रोग्राम को रोकने के लिए चूंकि नियमों का पालन नहीं किया, इसलिए उसे रद्द भी नहीं किया जा सकता.
अदालत या राष्ट्रपति- कौन ज्यादा ताकतवर
- राष्ट्रपति आदेश जारी तो कर सकता है लेकिन असंवैधानिक होने पर कोर्ट उसे पलट सकती है.
- राष्ट्रपति अदालत के फैसले को चुनौती दे सकता है, लेकिन आखिरकार उसे कोर्ट की बात माननी होगी.
- अगर राष्ट्रपति कोर्ट के फैसले को न माने तो उसपर महाभियोग भी लग सकता है.
ट्रंप पर क्या कोई कार्रवाई हो सकती है
अमेरिका में राष्ट्रपति को भी कोर्ट की बात माननी होती है. अगर ट्रंप अदालत की अनसुनी करें, जैसा हालिया केस में हुआ, तो उनके खिलाफ एक्शन भी हो सकता है. इसमें सीधे-सीधे उनकी एग्जीक्यूटिव पावर तो नहीं छीनी जाएगी लेकिन अगर वे बार-बार कानून तोड़ें तो कांग्रेस उनकी शक्तियां सीमित कर सकती है. एक और एक्शन भी है, जो ज्यादा सख्त है. अगर राष्ट्रपति अदालत के आदेशों को बार-बार नजरअंदाज करें तो उनपर महाभियोग चल सकता है, यानी आधिकारिक मुकदमा. अगर साबित हो जाए कि उन्होंने जानबूझकर कानून तोड़ा है, तो उन्हें पद से हटाया भी जा सकता है. लेकिन ये एक्सट्रीम एक्शन है, जो बेहद दुर्लभ मामले में ही लिया जा सकता है.