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क्या चांद या अंतरिक्ष की किसी भी चीज पर देशों का मालिकाना हक हो सकता है? कैसे खरीदी-बेची जा रही है चंद्रमा पर जमीन?

आज इसरो का मून मिशन चंद्रयान 3 चांद के दक्षिण ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला है. इस बीच चांद पर जमीन की रजिस्ट्री भी चर्चा में है. बहुत से लोग यहां जमीन खरीदने के दावे करते रहे. तो क्या चांद पर किसी देश का मालिकाना हक है? क्या स्पेस में मौजूद किसी भी प्लानेट को कोई देश खरीद सकता है? अगर नहीं, तो क्या खरीदी जा रही जमीनें नकली हैं!

चांद पर बीते 50 सालों से कोई नहीं गया. सांकेतिक फोटो (Unsplash) चांद पर बीते 50 सालों से कोई नहीं गया. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 3:13 PM IST

स्पेस के लिए बने कानून किसी भी देश को अंतरिक्ष की कोई भी चीज खरीदने-बेचने पर रोक लगाते हैं, फिर चाहे वो चांद हो या मंगल. लेकिन कुछ प्राइवेट कंपनियों का कहना है कि कानून देशों को जमीन खरीदने से रोकता है. अगर व्यक्तिगत तौर पर लोग अपना फ्यूचर सिक्योर करने के लिए जमीन लेना चाहें तो इसपर रोक के लिए कोई संधि नहीं. यही वजह है कि एलन मस्क मंगल पर तो बाकी देश चांद पर कॉलोनी की बात करते रहे हैं. 

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फिलहाल इंटरनेशनल ल्यूनर लैंड्स रजिस्ट्री और ल्यूना सोसायटी इंटरनेशनल, दो ऐसी कंपनियां हैं, जो चांद पर प्लॉट बेचने की बात करती हैं. दूसरे देशों के अलावा भारत में भी कई लोग चांद पर जमीन का टुकड़ा खरीद चुके हैं. इसके एक एकड़ की कीमत करीब 3 हजार रुपए है. धरती के हिसाब से ये काफी कम है. ऐसे में चांद पर प्लॉट बस फैशन या इमोशन्स जाहिर करने के लिए खरीदा जा रहा है. बेचने वालों से लेकर खरीदने वाले भी जानते हैं कि ये मुमकिन नहीं. 

चांद पर सबसे पहले 1969 में इंसान ने कदम रखा. अपोलो 11 की लैंडिंग के बाद चंद्रमा की सतह पर अमेरिका का झंडा लहराया गया. लेकिन ये सिर्फ सांकेतिक था. ऐसा नहीं है कि चूंकि अमेरिका चांद पर पहले पहुंचा तो उसपर उसका दावा हो गया. 

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फिलहाल स्पेस को लेकर हमारे पास 5 संधियां हैं. एक है- आउटर स्पेस ट्रीटी (1967). इसके मुताबिक, चांद या किसी भी तरह के खगोलीय पिंड पर किसी देश का हक नहीं. वो इसे व्यावसायिक तरीके से भी इस्तेमाल नहीं कर सकता है. 

एक ट्रीटी मून एग्रीमेंट (1979) के नाम से जानी जाती है. इसमें चांद पर खोज के अलावा किसी भी तरह की एक्टिविटी पर रोक लगाने की बात है. 

इनके अलावा 3 और संधियां हैं, जो एस्ट्रोनॉट्स की सुरक्षा, आउटर स्पेस में जाने वाले ऑब्जेक्ट के रजिस्ट्रेशन और स्पेस में अगर किसी मिशन की वजह से दिक्कत हो, तो संबंधित देश को उसकी जिम्मेदारी लेने को कहती है. 

वैसे तो अंतरिक्ष में मौजूद किसी भी चीज पर किसी एक देश का अधिकार नहीं, इसके बाद भी शोध के लिए देशों को कई तरह की छूट मिली हुई है. मसलन, अगर कोई देश चांद या किसी एस्टेरॉइड पर माइनिंग करता है, तो उससे निकली हर चीज उसकी होगी. अंतरिक्ष में कई तरह की बेशकीमती धातुएं हैं, जैसे प्लेटिनम और हीलियम-3. अमेरिका, चीन और यूएई जैसे कई देश अब खुदाई करके इन चीजों पर कब्जा चाहते हैं. हालांकि ये उतना आसान नहीं. दूसरे ग्रहों पर माइनिंग बेहद खर्चीली और जोखिम से भरी प्रक्रिया होगी. 

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अंतरिक्ष में खनन के लिए सबसे ज्यादा जरूरत है तो बेशुमार फंडिग की, जो पृथ्वी के बाहर खुदाई के लिए जरूरी उपकरण, मशीनें, रॉकेट, तकनीक, ऊर्जा के स्रोत पर शोध करने में मदद कर सके. इस उद्देश्य की सबसे बड़ी जरूरत ही इसकी सबसे बड़ी चुनौती है. ज्यादातर बैंक, कंपनियां या दौलतमंद लोग इस मिशन पर पैसा फूंकने में हिचकिचाते रहे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि स्पेस माइनिंग में पैसा लगाना दुनिया का सबसे महंगा सौदा साबित होने के बाद भी मुनाफे की गारंटी नहीं देता. साथ ही ये दलील भी दी जाती है कि अगर स्पेस में खनन से भारी मात्रा में बहुमूल्य चीजें मिलने लगें तो उनकी कीमत ही खत्म हो जाएगी. 

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