
साल 2013 में चीन ने BRI लॉन्च किया तो उसका सपना बहुत बड़ा था. वो मध्य एशिया के जरिए चीन को यूरोप से जोड़ने के साथ अफ्रीका को भी जोड़ना चाहता था. कुल मिलाकर, पूरी दुनिया सड़क या समुद्री रास्ते से कनेक्ट हो जाती. इसपर भारी पैसे लगाए गए. लेकिन अब एक दशक बाद चीन से करार कर चुके देश इससे बचना चाह रहे हैं. हाल में इटली ने इससे निकलते हुए कहा कि जैसा सोचा गया था, प्रोजेक्ट में उतना दम नहीं दिखा.
कौन से यूरोपियन देश हैं शामिल
ज्यादातर विकसित यूरोपियन मुल्क इससे दूरी रखे हुए हैं, जबकि कई देश समय के साथ इससे जुड़ते चले गए. ये हैं- ऑस्ट्रिया, बल्गेरिया, क्रोशिया, साइप्रस, चेक गणराज्य, ग्रीस, हंगरी और इटली. कई और देश भी हैं, लेकिन इटली को सबसे दमदार माना जा रहा था.
कोविड से पहले इतने देश थे हिस्सा
शुरुआत के दो सालों में इस प्रोजेक्ट से केवल 10 देश ही जुड़े. लेकिन 2015 से ये तेजी से फैलने लगा और 150 से ज्यादा देश चीन के इस सपने का हिस्सा बन चुके थे. चीन तेजी से उन देशों में जमीनी और समुद्री कनेक्टिविटी फैलाने की कोशिश करने लगा. इसके लिए रेल, सड़क और जल मार्ग बनाए जाने लगे. कोविड से सालभर पहले तक ये योजना काफी आगे जा चुकी थी.
क्यों हो रहे थे शामिल?
चीन ने इसके बदले उनके यहां इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने या फिर कर्ज देने का वादा किया. थिंक टैंक काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स के मुताबिक, 155 देशों में सबसे ज्यादा देश सब-सहारन अफ्रीका से हैं. अफ्रीका में चीन ने सबसे ज्यादा निवेश किया क्योंकि ये जगह कच्चे माल के लिए सबसे ज्यादा समृद्ध मानी जा रही है. चीन समेत ये सारे BRI देशों की जीडीपी दुनिया का 40 प्रतिशत से ज्यादा है. वहीं 60 फीसदी आबादी इन्हीं देशों में बसती है.
क्या भारत भी BRI से जुड़ा?
नहीं, देश ने शुरू से इस प्रोजेक्ट से दूरी बनाए रखी, जबकि हमारे पड़ोस के लगभग सारे देश इससे जुड़ चुके हैं. भारत के दूरी रखने के पीछे 2 कारण हैं. एक- चीन से इस प्रोजेक्ट से भारत को खास फायदा नहीं होगा. दूसरा- चीन और पाकिस्तान का इकनॉमिक कॉरिडोर पीओके से गुजरेगा. इससे देश की सुरक्षा को खतरा भी हो सकता है.
अब क्यों एग्जिट चाह रहे हैं देश?
इटली ने कुछ वक्त पहले ही BRI को बिना काम का बताते हुए उससे एग्जिट करने का एलान कर दिया था. वहीं फिलीपींस भी इससे निकल चुका. इसके अलावा कई देश अब खुद को BRI के जरिए कर्ज के जाल में फंसा पा रहे हैं. कथित तौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए चीन उन्हें कर्ज तो दे रहा है, लेकिन उसे चुकाने के लिए कड़ी शर्तें भी रख रहा है. अधिकतर देश ऐसे हैं, जो पहले से ही चाइनीज कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं.
वर्ल्ड बैंक और हार्वर्ड केनेडी स्कूल के एक्सपर्ट्स की मार्च में जारी रिपोर्ट के अनुसार, बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव के लिए चीन ने विकासशील देशों को काफी लोन दिया था. अब ये कर्ज करीब ढाई सौ अरब डॉलर तक जा चुका, और चीन उनपर कर्ज वापसी या फिर किसी न किसी बंदरगाह को लीज पर देने जैसी शर्त रख रहा है.
किन देशों पर ज्यादा कर्ज?
नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, तुर्की, अर्जेंटीना, बेलारूस, एक्वाडोर, मिस्र, लाओस, मंगोलिया, सूरीनाम और वेनेजुएला जैसे करीब 22 देश हैं, जो चीन के कर्ज में डूबे हुए हैं. हालांकि ये डेटा पक्का नहीं है क्योंकि चीन से कर्ज लेने पर अक्सर पारदर्शिता की कमी रहती है. कई बार देश दूसरों से संबंध खराब होने के डर से भी ये बात जाहिर नहीं कर पाते. वैसे चीन हमेशा ही कहता रहा कि वो लोन देते हुए बाजार के नियमों को मानता है, लेकिन उसपर पारदर्शिता को लेकर सवाल भी खड़े होते रहे.
क्यों नहीं चुका पा रहे उधार?
चीन कर्ज पर करीब 5 फीसदी ब्याज लेता है, जबकि आईएमएफ करीब 2 फीसदी ही ब्याज वसूलता है. इस तरह से चीन से उधार लेना दोगुने से ज्यादा महंगा है. लेकिन देश फिर भी चीन की तरफ जाते हैं क्योंकि वो इमरजेंसी लोन भी जल्दी दे देता है, जबकि इंटरनेशनल संस्थाएं औपचारिकता पूरी करने में थोड़ा समय लेती हैं.
छवि भी हुई कमजोर
चीन की कर्ज नीति तो सवालों में है ही, लेकिन कोविड के बाद चीन की आर्थिक ताकत और राजनैतिक रसूख भी कम दिख रहा है. चीन ने जब प्रोजेक्ट की शुरुआत की तो वो अमेरिका को टक्कर देता हुआ लग रहा था लेकिन एक दशक में ये इमेज गड़बड़ाई. साथ ही चीन सीमा विवादों में भी उलझा हुआ है. जैसे फिलीपींस के साथ उसका दक्षिण सागर को लेकर विवाद है. ऐसे में फिलीपींस ने चीन के प्रोजेक्ट से भी बाहर निकलना ठीक समझा. कुछ यही हाल इटली का भी है. हालांकि इटली ने प्रोजेक्ट को कम फायदेमंद बताते हुए उससे कन्नी काट ली.
क्या अमेरिका भी है एक कारण?
अमेरिका और चीन के रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे. BRI की शुरुआत के बाद ये और बिगड़े. असल में चीन जिन भी देशों से जमीनी या समुद्री रास्तों से जुड़ रहा है, वहां अपना बाजार भी फैला रहा है. ये अमेरिकी मार्केट को कमजोर कर देगा. यही वजह है कि अमेरिका के सारे मित्र देश भी भरसक इससे दूर रहे.
चीन का क्या है दावा?
वो इसे दुनिया का सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बता रहा है, जिससे सारे देश किसी न किसी तरह जुड़ जाएंगे. इससे व्यापार भी आसान होगा और कल्चरल एक्सचेंज भी. चीन का ये भी दावा है कि BRI की शुरुआत से लेकर अब तक सवा 4 लाख से ज्यादा नौकरियां पैदा हुईं, जिसके कारण 40 मिलियन लोग गरीबी से निकल सके.