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क्यों महाराष्ट्र सरकार चाहकर भी औरंगजेब पर नहीं ले सकती कोई बड़ा फैसला, ऐसा क्या दर्जा मिला हुआ है मकबरे को?

औरंगजेब के मकबरे पर देश में भारी सियासत हो रही है. कई संगठन चाहते हैं कि कथित तौर पर हिंदुओं पर अत्याचार कर चुके मुगल बादशाह की कोई यादगार नहीं रखी जानी चाहिए. महाराष्ट्र के संभाजीनगर स्थित इस कब्र को सरकारी संरक्षण मिला हुआ है, और राज्य सरकार चाहकर भी मकबरे से सुरक्षा नहीं हटा सकती.

औरंगजेब के मकबरे पर सियासत गरमाई हुई है. (Photo- India Today) औरंगजेब के मकबरे पर सियासत गरमाई हुई है. (Photo- India Today)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 19 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 10:58 AM IST

बीते कुछ हफ्तों से मुगल बादशाह औरंगजेब के नाम पर लगातार बवाल हो रहा है. यहां तक कि नागपुर में इसे लेकर हिंसा भी हो गई. कई धार्मिक संगठनों के अलावा राजनीतिक दल भी इसे लेकर दो फाड़ दिखते हैं. हालांकि औरंगजेब के मकबरे को मॉन्युमेंट ऑफ नेशनल इंपॉर्टेंस माना गया है और खुद सरकार के पास इसकी सुरक्षा का जिम्मा है. राज्य सरकार इसे डिनोटिफाई नहीं कर सकती, जब तक कि केंद्र से कोई फैसला न आ जाए. 

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अभी क्या हो रहा है

नागपुर में हिंसक प्रदर्शनों के बाद कर्फ्यू लगाया जा चुका है. प्रोटेस्टर लगातार मांग कर रहे हैं कि संभाजीनगर स्थित औरंगजेब का मकबरा गिरा दिया जाए. खुद राज्य के सीएम देवेंद्र फडणवीस बयान दे चुके कि मुगल बादशाह की विचारधारा का बखान करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. हालांकि इस सारे बवाल और बयानबाजियों के बीच भी एक सच ये है कि राज्य की सरकार चाहे भी तो मकबरे के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकती. 

इस तरह हुई शुरुआत

ये सारा बखेड़ा तब शुरू हुआ, जब सपा के सांसद अबू आजमी ने मुगल शासक की तारीफ की. इसके बाद इसी महीने की शुरुआत में छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और सतारा से सांसद उदयनराजे भोसले ने औरंगजेब के मकबरे को गिराने की मांग की. इसके बाद से मामला तूल पकड़ता ही गया और अब देश के कई हिस्सों में कब्र को नष्ट करने की मांग हो रही है. लेकिन राज्य इसपर तब तक कोई एक्शन नहीं ले सकता, जब तक कि सेंटर कोई सलाह न दे क्योंकि मकबरे को केंद्र से ही राष्ट्रीय महत्व का स्मारक माना गया है, और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) इसे प्रोटेक्ट करता है. 

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क्या है राष्ट्रीय महत्व का स्मारक होने का मतलब

ASI यूनियन मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर के तहत काम करता है. ये पुरातात्विक महत्व के स्थलों और स्मारकों को राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर सकता है. जो जगहें इसमें शामिल हो जाती हैं, उनके मेंटेनेंस की पूरी-पूरी जिम्मेदारी सेंटर की होती है. यहां तक कि अगर कोई किसी भी तरह से इन जगहों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे, तो उसपर बाकायदा कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है. ASI की संरक्षित साइट या उसके आसपास, जितने में उसके संरक्षण को खतरा हो, कोई कंस्ट्रक्शन नहीं किया जा सकता.

ASI किसे देता है संरक्षण

प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम (AMASR अधिनियम) 1958 के तहत, राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों और पुरातात्विक जगहों की देखरेख का काम आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया करता है. यह संस्था केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के साथ काम करती है. 

एएसआई कुछ खास जगहों को प्रोटेक्शन देता है. मसलन ऐसी जगहें, जहां इंसानी गतिविधि के पहले प्रमाण मिले हों, जैसे गुफाएं और पुराने औजार. में पुराने समय में चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाएं जिनपर कोई तस्वीर या कलाकृतियां बनी हों, जैसे अजंता-एलोरा की केव्स. स्तूप, प्राचीन मंदिर, किले-महल, चर्च, मस्जिद और मकबरों समेत ऐतिहासिक महत्व की कई चीजों को एएसआई सुरक्षा देता है. 

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कब संरक्षित स्मारक माना गया औरंगजेब के मकबरे को

इस बारे में कोई सीधी जानकारी नहीं मिलती. हालांकि, इसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का माना गया  और प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 (AMASR Act) के तहत संरक्षण मिला हुआ है. 

क्यों मिली सुरक्षा

18वीं सदी की शुरुआत में मुगल बादशाह की मौत महाराष्ट्र के अहमदनगर में हुई थी. वसीयत के मुताबिक, उन्हें खुल्दाबाद में उनके स्पिरिचुअल गुरु की दरगाह के पास दफनाया गया. ASI ने मकबरे को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के चलते संरक्षित स्मारक घोषित किया. इसके अलावा यह मकबरा मकबरा खुल्दाबाद के ऐतिहासिक स्थलों के बड़े कंपाउंड का हिस्सा है, जिसमें कई सूफी संतों के मकबरे भी शामिल हैं. 

क्या राज्य सरकार इस मकबरे को डिनोटिफाई कर सकती है

नहीं, ये अधिकार केंद्र के पास है क्योंकि खुद ASI ने इसे राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया हुआ है. AMASR अधिनियम 1958 के तहत ऐसे किसी भी स्मारक को लिस्ट से हटाने का अधिकार सेंटर को ही है. यहां बता दें कि डिनोटिफाई करने का मतलब किसी जगह, चीज, या पॉलिसी को पहले दिया हुआ खास दर्जा वापस ले लेना होता है. अगर केंद्र इसे डिनोटिफाई कर दे तो मकबरे को कानूनी सुरक्षा नहीं मिलेगी और उसके रखरखाव की जिम्मेदारी भी सेंटर की नहीं होगी. ऐसे में राज्य उसपर फैसला ले सकता है. इस प्रोसेस को डीलिस्टिंग भी कहते हैं. 

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कैसे कोई जगह अपना महत्व खो देती है

एंशिएंट मॉन्यूमेंट्स एंड आर्कियोलॉजिकल साइट्स एंड रिमेन्स एक्ट 1958 में इसका प्रावधान है. इसके सेक्शन 35 के मुताबिक, ये तय करने का जिम्मा पूरी तरह से केंद्र के पास होता है. कई बार कोई स्मारक पुरातात्विक महत्व का न होने के बाद भी उसे दर्जा मिल जाता है. अगर सेंटर की राय में कोई स्मारक राष्ट्रीय महत्व का न रहे, तो वो इसपर आधिकारिक गजेट में नोटिफिकेशन देती है. इसके बाद दो महीने का वक्त मिलता है, जिसमें कोई केंद्र के फैसले पर एतराज जता सकता है, या सुझाव भी दे सकता है.

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