Advertisement

Israel समेत ये देश भी लगा चुके यूएन अधिकारियों पर पाबंदी, क्या कानूनी तौर पर ये संभव है?

एक साथ कई मोर्चों पर लड़ रहे इजरायल ने यूनाइटेड नेशन्स (UN) के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को पर्सोना नॉन ग्रेटा घोषित कर दिया, यानी अन-वेलकम. यूएन चीफ अब इजरायल में प्रवेश तक नहीं कर सकते. इजरायली विदेश मंत्री काट्ज ने हफ्तेभर पहले एक्स पर ये एलान किया. लेकिन सवाल ये है कि क्या संयुक्त राष्ट्र के चीफ को कानूनी तौर पर बैन किया जा सकता है?

इजरायल ने यूएन चीफ को पर्सोना नॉन ग्रेटा घोषित किया हुआ है. (Photo- Getty Images) इजरायल ने यूएन चीफ को पर्सोना नॉन ग्रेटा घोषित किया हुआ है. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 5:53 PM IST

अक्टूबर की शुरुआत में इजरायल की तरफ से कई बड़े कदम उठाए गए. वो हिजबुल्लाह पर तो आक्रामक हुआ ही, साथ ही साथ यूनाइटेड नेशन्स के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को भी पर्सोना नॉन ग्रेटा कहते हुए अपने देश में उनकी एंट्री पर पाबंदी लगा दी. लेकिन क्या ऐसा करना मुमकिन है, वो भी तब जबकि इजरायल खुद यूएन का सदस्य है?

Advertisement

इजरायल को आखिर इतना गुस्सा क्यों आया

तेल अवीव के विदेश मंत्री इजरायल काट्ज ने यूएन महासचिव पर आरोप लगाया कि वो इजरायल से नफरत करते हैं. उन्होंने पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास के तेल अवीव पर हमले और नरसंहार की कभी निंदा नहीं की और न ही उसे आतंकी घोषित किया. काट्स के मुताबिक, गुटेरेस हमास, हिज्बुल्लाह, हूती और अब ईरान के आतंकियों, बलात्कारियों और हत्यारों का समर्थन करते हैं. यही दलील देते हुए देश ने उन्हें पर्सोना नॉन ग्रेटा घोषित कर दिया. 

एक्स पर हुए इस जबानी अटैक के मायने काफी बड़े हैं 

पर्सोना नॉन ग्रेटा एक लैटिन टर्म है, जिसका मतलब है अवांछित या अनचाहा व्यक्ति. ये टर्म डिप्लोमेसी में इस्तेमाल होती है. अगर कोई देश किसी दूसरे देश के प्रतिनिधि को ये कह दे तो इसका मतलब दोनों के बीच तनाव कूटनीतिक स्तर पर आ पहुंचा. दो देशों के बीच टेंशन गहराने पर अक्सर होस्ट कंट्री दूसरे देशों के डिप्लोमेट्स या नेताओं को यही कह देती है ताकि वे बिना किसी कानूनी प्रोसेस के चुपचाप देश से चले जाएं. इसके बाद उस डिप्लोमेट की इम्युनिटी खत्म हो जाती है और सारी सुविधाएं भी ले ली जाती हैं. यानी होस्ट अब गेस्ट को बोरिया-बिस्तर बांधने कह चुका. 

Advertisement

तो क्या मेंबरशिप चली जाएगी

अब ये तो साफ हो चुका कि इजरायल ने यूएन प्रतिनिधि को यू आर नॉट वेलकम कह दिया, लेकिन क्या ये वाकई मुमकिन है. असल में तेल अवीव खुद ही संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है. अगर वो संगठन के चीफ को ही अस्वीकार कर रहा है तो क्या यूएन इजरायल को स्वीकार करेगा! क्या कोई मेंबर देश यूएन अधिकारियों को पर्सोना नॉन ग्रेटा कह सकता है!

क्या है संयुक्त राष्ट्र का कहना

लंबे समय से इसपर यूएन और सदस्य देशों के बीच बहस चली आ रही है. यूएन का कहना है कि होस्ट देश उनके अधिकारियों पर ऐसी पाबंदी नहीं लगा सकते क्योंकि वे किसी देश के डिप्लोमेट नहीं, बल्कि यूएन के अधिकारी हैं. वे एक तरह के ग्लोबल सिविल सर्वेंट हैं, जिनकी जवाबदेही संयुक्त राष्ट्र के लिए है, न कि किसी देश के लिए. यूएन का एक तर्क ये है कि उसके सदस्यों को पर्सोना नॉन ग्रेटा घोषित कर दिया जाए तो संगठन का काम बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है और ये सीधे-सीधे यूएन चीफ को चुनौती देने जैसा है. 

मेंबर देशों की अलग दलील है. वे मानते हैं कि जैसे एक देश दूसरे देश के नेताओं को पर्सोना् नॉन ग्रेटा कह सकता है, वही नियम यूएन ऑफिशियल्स पर भी लागू होना चाहिए. कई अफ्रीकी देशों ने अपने यहां संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों की एंट्री पर बैन लगा रखा है. 

Advertisement

ये देश लगा चुके कई अधिकारियों पर पाबंदी

इथियोपिया की सरकार ने देश में चल रहे टिग्रे कन्फ्लिक्ट के दौरान यूएन की संदिग्ध भूमिका को देखते हुए उसके सात टॉप लेवल अधिकारियों को पर्सोना नॉन ग्रेटा घोषित कर दिया. इथियोपियन सरकार का आरोप था कि इन लोगों ने उनके देश के अंदरुनी मामलों में दखल दिया, साथ ही मानवीय मदद देने में भी पक्षपात किया. यूएन इसपर काफी नाराज रहा लेकिन सरकार अपनी बात पर अड़ी रही. 

माली ने तीन साल पहले यूएन के एक बड़े अधिकारी की एंट्री बैन कर दी. वहां की सरकार का आरोप था कि अधिकारी माली को लेकर गलत रिपोर्ट बना रहे थे और देश के मामलों में हस्तक्षेप कर रहे थे. 

अफ्रीकी देश सूडान ने यूएन के एक अधिकारी को निकाल-बाहर किया. उसका भी यही आरोप था कि अधिकारी दारफुर इलाके में हो रहे तनाव पर गलत रिपोर्ट बना रहे और बयानबाजियां कर रहे थे, जो देश के खिलाफ था. 

अस्सी के दौर में अमेरिका ने कुर्ट वाल्डहाइम पर पाबंदी लगा दी थी, जो कुछ साल पहले ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव रह चुके थे. आरोप था कि दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान वाल्डहाइम ने भी वॉर क्राइम किए थे. 

चीन और रूस ने लगाया था प्रतिबंध

Advertisement

पचास के दशक में चीन और रूस (तब सोवियत संघ) ने भी पहले यूएन महासचिव ट्रिग्वे ली को पर्सोना नॉन ग्रेटा घोषित कर दिया था. उनके आरोप कोल्ड वॉर से जुड़े हुए थे. कथित तौर पर महासचिव कम्युनिस्ट देशों के खिलाफ माहौल बना रहे थे. इसी समय इजरायल ने भी ट्रिग्वे पर पाबंदी लगाई थी. ये पहली बार था. 

पिछले साल दूसरी बार इजरायल ने यूएन के एक टॉप अधिकारी को पर्सोना नॉन ग्रेटा माना था. तेल अवीव ने सरकार ने यह कदम तब उठाया, जब यूएन प्रतिनिधि ने फिलिस्तीन में इजराइली पॉलिसी और कार्रवाई को गलत बताया, जबकि इजरायल खुद हमास के हमले का शिकार हुआ था. 

क्या कानूनी तौर पर ऐसा मुमकिन है 

इसपर कोई लिखापढ़ी नहीं है, न ही कोई करार यूएन और बाकी सदस्यों के बीच है. हालांकि जितने भी दस्तावेज हैं, वे देशों के कदम को सही ठहराते हैं. साल 1961 की वियना संधि के के अनुच्छेद 9 के अनुसार, कोई भी देश किसी भी समय अपने राजनयिक स्टाफ को पर्सोना नॉन ग्रेटा घोषित कर सकता है, वो भी बगैर कारण बताए. देशों ने अपने पक्ष में इसी अनुच्छेद का सहारा लिया.

वहीं यूएन का कहना है कि इस तरह से पाबंदी लगाने पर किसी देश और यूएन के बीच संबंध खराब हो सकते हैं, जिसका गलत असर उन देशों की स्थिति पर पड़ेगा, खासकर अगर वे युद्ध या किसी भी दूसरी वजह से मानवीय आपदा झेल रहे हों. 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement