
भारत और कनाडा में डिप्लोमेटिक वॉर जारी है. दोनों एक-दूसरे के राजनयिकों को निकाल रहे हैं. इसी कड़ी में भारत ने 41 कनाडियन डिप्लोमेट्स को देश छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया, ये कहते हुए कि उनकी संख्या जरूरत से ज्यादा है. ये तो हुई तनावपूर्ण हालातों की बात. आमतौर पर हर देश में लगभग सभी मुल्कों के दूतावास होते हैं, जहां डिप्लोमेट्स दोनों देशों के बीच पुल का काम करते हैं. वहीं रिपब्लिक ऑफ सोमालीलैंड वो देश है, जहां कोई भी दूतावास नहीं.
यूनाइटेड नेशन्स और अमेरिका से लेकर अफ्रीकन यूनियन तक ने इसमें अपने डिप्लोमेट तैनात नहीं किए. साल 2017 में हुए चुनावों को देखने के लिए यूएन ने अपनी टीम जरूर भेजी थी, लेकिन इसके अलावा इस देश का दुनिया से कोई नाता नहीं.
कब अस्तित्व में आया सोमालीलैंड
अस्सी के दशक में सोमालिया का एक हिस्सा खुद को अलग देश बनाने की मांग करने लगा, और आखिरकार टूटकर अलग हो ही गया. जैसा कि होता है, इस डिमांड के बीच हजारों लोग मारे गए और शहर के शहर बर्बाद हो गए. आखिरकार साल 1991 सोमालीलैंड बन ही गया. ये बात अलग है कि उसे दुनिया के किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है. खुद अफ्रीकी संघ उसे सोमालिया का बागी हो चुका हिस्सा मानता है.
कहां बसा है ये देश
सोमालीलैंड अफ्रीका के हॉर्न में स्थित है, जिसकी सीमा उत्तर में अदन की खाड़ी और उत्तर पश्चिम में जिबूती और इथियोपिया से लगती है. फिलहाल अपनी राजनैतिक स्थिति के चलते इसे लिंबो स्टेट भी कहते हैं, मतलब ये खुद को देश मानकर उसकी तरह एक्ट कर रहा है, और उम्मीद में है कि एक दिन दुनिया उसे मान्यता दे देगी.
क्यों नहीं मिल रही मान्यता
इसके पीछे सबसे बड़ी वजह खुद अफ्रीकन यूनियन है. उसका कहना है कि ऐसे ही देशों से देश बनते रहे तो एक दिन सबकुछ टूट जाएगा. इसके बाद कमजोर देश पर बाहरी ताकतें हावी हो जाएंगी, और अफ्रीका खत्म हो जाएगा. यही वजह है कि सोमालिया से टूटकर सोमालीलैंड बनने का किसी अफ्रीकी देश ने समर्थन नहीं किया. पश्चिमी देशों के लिए अफ्रीका सोने और कच्चे माल की खान है तो उसकी ये बात सबने मान भी ली.
क्या कोई भी बना सकता है अपना देश?
अलग मुल्क बना पाने के लिए अहम शर्त है देश की सीमाओं का तय होना. कोई देश कहां से शुरू और किस जगह खत्म होता है, ये पक्का होना चाहिए. इसके बाद करेंसी, झंडा, पार्टियां जैसी कई बातें आती हैं. ये सब ठीक रहा तो यूनाइटेड नेशन्स की मान्यता मिल जाती है, जिसके बाद लगभग सारे देश देर-सबेर उसे मान्यता दे ही देते हैं.
हालांकि जितना लग रहा है, ये उतना आसान नहीं. खुद को आजाद मान रहे कई देशों की गाड़ी यूएन में अटक जाती है.
विवादित स्थिति में फंस जाते हैं कई मुल्क
कई देश खुद को आजाद घोषित कर देते हैं. दुनिया के कुछ देश उन्हें बतौर कंट्री मान भी लेते हैं, लेकिन कुछ देश अपनाने से इनकार कर देते हैं. ऐसे में वो देश विवादित टुकड़ा हो जाता है. तब मान्यता देने वाले देश भी उससे व्यापार करने से बचते हैं. जैसे ताइवान, फिलीस्तीन और उत्तरी साइप्रेस इसी श्रेणी में आते हैं. वे कुछ के लिए देश हैं, कुछ के लिए नहीं. ऐसा इसलिए है कि कोई न कोई देश उनपर अपना दावा ठोकता है. तब बेकार में उलझने की बजाए ज्यादातर देश उनसे किनारा कर लेते हैं.
सोमालीलैंड को मान्यता न मिलने के पीछे एक कारण ये भी है कि अगर उसकी मांग मान ली जाए तो अफ्रीका में और भी कई देश लाइन में आ जाएंगे. मसलन, नाइजीरिया और मोरक्को में कई अलगाववादी गुट बन चुके, जो अपने देश की डिमांड कर रहे हैं.
कैसी है इकनॉमिक स्थिति
मान्यता न मिलने का असर सोमालीलैंड पर दिख रहा है. वहां शिलिंग नाम की करेंसी चलती है, जिसकी ग्लोबल मार्केट में कोई वैल्यू नहीं. अगर आपको एक अमरीकी डॉलर चाहिए तो इसके लिए 9 हजार शिलिंग देने होंगे. हफ्तेभर की सब्जी के लिए कम से कम थैलाभर शिलिंग चाहिए. यही वजह है कि करीब 40 लाख की आबादी वाले देश में नोट अब रद्दी के भाव बिकते हैं. ज्यादातर आबादी ने खुद को डिजिटल तरीके में ढाल लिया. वो कैशलेस लेनदेन करते हैं. इस देश में बैंक तो हैं, लेकिन कोई भी इंटरनेशनल बैंक नहीं.
कहां से आ रहे हैं गुजारे लायक पैसे
सोमालीलैंड वैसे तो रेतीला इलाका है, लेकिन यही इसकी इकनॉमी को ताकत दिए हुए है. पश्चिमी देशों में एडवेंचर के शौकीन इस देश में खूब आते हैं. यहां कई गुफाएं और अनदेखे जंगल भी सैलानियों को खींचते रहे हैं. कथित तौर पर नशे और ह्यूमन तस्करी से भी यहां पैसे बनाए जा रहे हैं.