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मुस्लिम समुदाय की फर्टिलिटी रेट क्यों बनती है मुद्दा, क्यों ये दुनिया में सबसे ज्यादा है?

पीएम नरेंद्र मोदी ने रविवार को एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि कांग्रेस सत्ता में आई तो वो देश की दौलत घुसपैठियों और ज्यादा बच्चे वाले परिवारों को बांट सकती है. माना जा रहा है कि ज्यादा बच्चों वाली बात मुस्लिमों पर आरोप थी. लेकिन क्या वाकई वे ज्यादा बच्चों को जन्म देते हैं. अगर हां तो क्या ऐसा भारत में ही है, या दुनिया में भी यही पैटर्न है.

मुस्लिम परिवारों के ज्यादा संतानें पैदा करने पर हमेशा ही विवाद रहा (Photo- Getty Images) मुस्लिम परिवारों के ज्यादा संतानें पैदा करने पर हमेशा ही विवाद रहा (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 1:46 PM IST

मुस्लिम परिवारों के ज्यादा संतानें पैदा करने पर हमेशा ही विवाद रहा. कम से कम भारत के मामले में हम ये देख पाते हैं. अक्सर आरोप लगता रहा कि ये धार्मिक आबादी कई हथकंडे अपना रही है ताकि उनकी संख्या सबसे ज्यादा हो जाए. ये बात ग्लोबल लीडर भी कह रहे हैं. लेकिन क्या वाकई ये आरोप सच है, या फिर केवल एक भ्रम है. जानिए, किस धर्म की फर्टिलिटी रेट कितनी है और इसका क्या असर होगा. 

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प्रजनन दर या फर्टिलिटी रेट यानी किसी खास आबादी में 15-49 साल के बीच की महिला, औसतन कितने बच्चों को जन्म दे सकती है. 

दुनिया में सबसे ज्यादा अनुयायी इस्लाम से होंगे

साल 1900 में मुस्लिमों की आबादी दुनिया की कुल आबादी का 12% थी. लेकिन अगली सदी के दौरान ये पॉपुलेशन तेजी से बढ़ी. अब प्यू रिसर्च सेंटर दावा कर रहा है कि साल 2050 तक ये धार्मिक पॉपुलेशन 30 फीसदी हो जाएगी. बता दें कि साल 2010 में ही इस्लाम 1.6 बिलियन अनुयायियों के साथ दुनिया का दूसरा बड़ा धार्मिक मजहब बन गया. प्यू रिसर्च में साल-दर-साल आंकड़े देते हुए बताया गया कि इनकी धार्मिक आबादी तेजी से बढ़ रही है, जो साल 2050 तक क्रिश्चियेनिटी को हटाकर दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक आबादी होगी. 

मुस्लिमों में प्रजनन दर अधिक

फ्यूचर ऑफ वर्ल्ड रिलीजन प्रोजेक्ट के तहत हुए शोध में बताया गया कि किसी धार्मिक आबादी का बढ़ना-घटना काफी हद तक इससे भी प्रभावित होता है कि उसकी महिलाएं कितनी संतानों को जन्म दे रही हैं. ये फर्टिलिटी रेट है. मौजूदा फर्टिलिटी रेट की बात करें तो मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर सबसे ज्यादा मानी जा रही है. ये बात ग्लोबल और लोकल दोनों ही मामलों में दिखती है. 

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भारत में क्या है हिसाब-किताब

साल 2019 से 2021 के बीच इस्लाम को मानने वाले परिवारों की जन्मदर 2.3 थी. ये बाकी समुदायों की तुलना में काफी ज्यादा है. लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का डेटा ये भी कहता है कि इससे पहले ये दर और ज्यादा थी. यहां तक कि साल 2015 में फर्टिलिटी रेट 2.6 प्रतिशत रिकॉर्ड की गई. नब्बे के दशक में ये 4.4 प्रतिशत रहा. इसका मतलब औसत मुस्लिम महिला 4 से 5 बच्चों को जन्म दे रही थी. 

हिंदू और बाकी समुदाय कहां खड़े

अगर हिंदुओं की बात करें तो ये घटकर 1.94 प्रतिशत रह गई है. इसके बाद 1.88 प्रतिशत के साथ ईसाई धर्म को मानने वाले आते हैं. वैसे फिलहाल धार्मिक समूहों के बारे में विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. साल 2011 में आखिरी सेंसस हुआ था, तब भारत में 17.22 करोड़ मुस्लिम थे, जो देश की कुल आबादी का 14.2 फीसदी था. 

इस्लामिक देशों में फर्टिलिटी सबसे ज्यादा

भारत के अलावा दुनिया में भी मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी. अगर केवल मुस्लिम बहुल देशों की बात करें तो कई आंकड़े साफ दिखते हैं. जैसे मुस्लिम देश नाइजर में एक महिला औसतन 7 संतानों को जन्म देती है. इसके बाद टॉप 10 में जितने भी देश हैं, उनमें फर्टिलिटी रेट दुनिया में सबसे ज्यादा है. इसमें कांगो, माली, चड, युगांडा, सोमालिया, साउथ सूडान, बुरुंडी और गिनी हैं. इनमें से अधिकतर अफ्रीकी देश हैं, जहां इस्लाम फैल चुका. अगर अरब देशों को देखें तो वहां औसत फर्टिलिटी रेट 3.1 है. 

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क्या ईसाई धर्म को मानने वाले टॉप से दूसरे स्थान पर आ जाएंगे?

इसे समझने के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ फैमिली स्टडीज ने एक रिसर्च की. इसमें दिखा कि औसत अमेरिकी महिला 1.9 बच्चों को जन्म दे रही है. इसकी तुलना रिप्लेसमेंट रेट से की गई. ये बच्चों की वो संख्या है, जो किसी कपल को अपने रिप्रोडक्टिव समय के दौरान पैदा करना होगा. जितनी मौतें हुई, उनकी जगह कम से कम उतने ही जन्म हो जाते हैं. इससे बैलेंस बना रहता है. लेकिन अमेरिकी ईसाई कम्युनिटी के मामले में रिप्लेसमेंट दर महिला के बच्चों को जन्म देने की दर से कहीं ज्यादा है. ऐसे में ईसाई आबादी कम होती जाएगी. 

क्यों है ज्यादा जन्मदर

फ्यूचर ऑफ रिलीजन के मुताबिक इसकी सबसे बड़ी वजह है- महिलाओं की कम उम्र में शादी. विकसित देशों में जहां ये औसत 26.2 साल है, वहीं मुस्लिम-बहुल देशों में ये एवरेज घटकर 20 हो जाता है. ये सिर्फ एक डेटा है. ज्यादातर इस्लामिक देशों में प्यूबर्टी आते ही लड़कियों की शादी कर दी जाती है. वे कमउम्र के साथ कम पढ़ी-लिखी होती हैं. फैमिली प्लानिंग की खास जानकारी नहीं होती. न ही उनके पास इतनी ताकत होती है कि वे जल्दी या ज्यादा बच्चे पैदा करने का विरोध कर सकें. 

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दूसरी तरफ बाकी धर्मों में देर से शादियों के चलते बच्चों को जन्म देने के साल अपने-आप ही घट जाते हैं. इसका भी असर पड़ता है. 

पढ़ाई-लिखाई से कितना है फर्टिलिटी रेट का वास्ता

NFHS का सर्वे भी ये बात मानता है. इसके मुताबिक, 12वीं पास महिला की तुलना में, उनके बच्चे ज़्यादा होंगे, जो महिलाएं स्कूल नहीं जा पाती हैं. आखिरी जनगणना के अनुसार, देश में मुस्लिम साक्षरता दर सबसे कम लगभग 68 फीसदी थी. इससे भी आबादी में बढ़त वाली बात कनेक्ट होती है. वैसे बहुत से परिवार अबॉर्शन को धार्मिक नजरिए से भी देखते और उसका विरोध करते हैं. इस वजह से भी प्रोडक्टिव उम्र में हुई शादियों में ज्यादा बच्चों का जन्म हो जाता है.

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