
करीब 90% बौद्ध आबादी वाले म्यांमार में लोगों की आदतों को लेकर गैलप ने एक सर्वे किया. चैरिटीज एड फाउंडेशन ने इसी के आधार पर एक रिपोर्ट जारी की. इसमें माना गया कि म्यांमार के रहने वाले लोग आमतौर पर दान-धान में भरोसा करते हैं. उनसे कुछ मांगा जाए, और अगर वो उनके बस में हो, तो बर्मीज लोग बिना टालमटोल वो चीज डोनेट कर देते हैं. ये तब है जबकि साल 2022 में वर्ल्ड बैंक ने उसे क्रिटिकली वीक इकनॉमी वाले देश में रखा था. यहां बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जी रही है.
क्या कहता है डेटा
म्यांमार के बाद इंडोनेशिया और फिर यूके का नंबर था. चौथे नंबर पर यूक्रेनियन थे, जिनमें से 71 प्रतिशत लोग अक्सर दान करते रहे. पहले 10 की लिस्ट में न अमेरिका है, न ही चीन. यमन इसमें सबसे आखिर में रहा, जहां केवल 4 प्रतिशत दोनों ने दान-पुण्य किया. वहीं भारत की रैंकिंग अक्सर उस देश के तौर पर रही, जहां सबसे ज्यादा लोग पैसों का डोनेशन देते हैं. टाइम देने के मामले में वे कंजूस रहे.
क्यों म्यांमार के लोग ज्यादा दान करते हैं
इसकी बड़ी वजह है उनकी धार्मिक प्रैक्टिस. म्यांमार की 90 फीसदी से कुछ ज्यादा आबादी बौद्ध धर्म के थेरवाद को मानती है. इसमें लोग पुनर्जन्म पर यकीन करते हैं. वे मानते हैं कि अगर हम दान करें या भले काम करें तो अगले जन्म में हमें सुख मिलेगा. वहीं गलत करने या पैसे होते हुए भी दान न करने वाले दुख पाएंगे. थेरवाद का यही सीधा सा फलसफा लोगों को दानवीर की श्रेणी में ला रहा है.
बौद्ध धर्म का थेरवाद बना रहा ज्यादा उदार
थेरवाद प्राचीन बौद्ध धर्म के पाली सिद्धांत को मानने वाले हैं. ये प्रैक्टिस म्यांमार के अलावा श्रीलंका, कंबोडिया, थाइलैंड और लाओस में काफी प्रचलित है. सिंगापुर में भी करीब 35 प्रतिशत लोग थेरवाद को मानने वाले हैं. यहां बता दें कि बौद्ध धर्म की कई शाखाएं हैं. थेरवादियों का कहना है कि वे मूल रूप के सबसे करीब यानी सबसे शुद्ध हैं. थेरवाद का मतलब ही है, संतों की बात.
बुद्ध की पूजा कम ही होती है
म्यांमार में रहते हुए थेरवाद का पालन करने वाले लोग बुद्ध को महान तो मानते हैं, लेकिन भगवान नहीं. न ही उनके किसी धार्मिक आयोजन या शादी-ब्याह में भगवान बुद्ध की पूजी की जाती है. ये बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय से एकदम अलग है, जिसमें देवी-देवताओं, अवतारों पर यकीन और पूजा-पाठ का खूब चलन है.
बर्मीज लोग कम उम्र में ही भिक्षुक बन जाते हैं, और थोड़े समय बाद गृहस्थ जीवन में आ जाते हैं. थेरवाद के तहत इसे काफी अच्छा माना जाता है. मान्यता है कि इससे दुख, मोह कम रहता है, और जीवन शांति से गुजरता है. साथ ही रीबर्थ भी आसान होती है.
मेडिटेशन का मुख्य अंग
भिक्षुक बनने के बाद और यहां तक कि गृहस्थ होते हुए भी ये लोग विपश्यना पर जोर देते हैं. ये एक तरह का मेडिटेशन है. मान्यता है कि बुद्ध ने इसी के जरिए बुद्धत्व पाया था. इसमें सांस पर ध्यान स्थिर किया जाता है. वैसे इस मेडिटेशन को मानने वालों को कुछ बातों पर ध्यान देना होता है, जैसे हिंसा न करना, चोरी की मनाही, बह्मचर्य का पालन और नशे से दूरी. मेडिटेशन के लिए यहां के हर गांव में एक सेंटर होता है, जहां लोग लगभग रोज आते हैं.
इन मानकों पर जांचा गया
- सिर्फ पैसों के दान नहीं, बल्कि सर्वे में ये भी देखा गया कि लोग एक-दूसरे की कितनी मदद करते हैं.
- क्या वे अजनबियों को रास्ता दिखाने के लिए रुकते हैं.
- क्या वे किसी की भलाई के लिए अपना समय देते हैं, जरूरत में उन्हें सुनते हैं.
नास्तिक होते हैं ज्यादा दयालु!
एक तरफ तो ये बात मानी जा रही है कि म्यांमार के लोग धार्मिक वजहों से उदार हैं, वहीं एक शोध ये भी कहता है कि नास्तिक लोग, धार्मिक लोगों से ज्यादा दयालु और दान करने वाले होते हैं. हालांकि ये स्टडी लगभग एक दशक पुरानी है, लेकिन सैंपल साइज के आधार पर इसे सबसे भरोसेमंद माना जाता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया ने 14 सौ अमेरिकी एडल्ट पर सर्वे किया. इसमें पाया गया कि धर्म को न मानने वालों का दिल दया से जल्दी भर जाता था, और वे तुरंत मदद करना चाहते थे. दूसरा प्रयोग 101 वयस्कों पर हुआ. उन्हें फेक इमोशनल वीडियो दिखाते हुए पीड़ितों को डॉलर देने के लिए कहा गया. इसमें भी यही पैटर्न दिखा. धर्म से दूर रहने वालों ने फटाफट सारे पैसे दान कर देने चाहे.