
महाराष्ट्र और हरियाणा, दोनों ही जगह मौजूदा सरकार की वापसी हो गई है. महाराष्ट्र में फिर महायुति की सरकार बनने जा रही है. वहीं, झारखंड में भी हेमंत सोरेन एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं.
हाल ही में विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र की 288 सीटों में से महायुति ने 231 सीटें जीत ली हैं. बीजेपी को 132, शिवसेना को 57 और एनसीपी को 41 सीटों पर जीत मिली है. झारखंड में भी 81 विधानसभा सीटों में से इंडिया ब्लॉक को 56 सीटें मिली हैं. हेमंत सोरेन की जेएमएम ने 34 तो कांग्रेस ने 16 सीटें जीती हैं.
दोनों ही राज्यों में रूलिंग पार्टी की वापसी की सबसे बड़ी वजह महिलाओं को माना जा रहा है. दोनों ही राज्यों में महिलाओं को सरकार की तरफ से आर्थिक मदद मिलती है. हार के बाद शरद पवार ने भी माना कि लाडकी बहिण योजना गेमचेंजर साबित हुई.
कैसे हुआ फायदा?
महाराष्ट्र में चुनाव से पहले 'लाडकी बहिण योजना' शुरू की थी. इस योजना के तहत, 21 से 65 साल की उन महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये की मदद दी जाएगी, जिनकी सालाना कमाई 2.5 लाख से कम होगी. इस योजना के तहत राज्य की एक करोड़ महिलाओं को फायदा मिलता है. बीजेपी ने वादा किया था कि सरकार में वापसी हुई तो 2,100 रुपये दिए जाएंगे.
महाराष्ट्र में इस बार 65 फीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई. ये आंकड़ा 2019 की तुलना में 4 फीसदी ज्यादा था. महिलाओं और पुरुषों के वोटिंग प्रतिशत में भी अंतर कम रहा है. इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में पुरुषों और महिलाओं के वोटिंग प्रतिशत में 4 फीसदी का अंतर था. जबकि, विधानसभा चुनाव में 2 फीसदी से भी कम अंतर रहा.
विधानसभा चुनाव में 66.84 फीसदी पुरुष वोटरों ने वोट डाला. जबकि, 65.22 फीसदी महिला वोटरों ने वोटिंग की. इसका असर नतीजों पर दिखा. माना जा रहा है कि ज्यादातर महिलाओं ने महायुति को वोट दिया.
इसी तरह झारखंड में भी सोरेन सरकार 'मंईयां योजना' चलाती है. इसके तहत 21 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को हर महीने 1 हजार रुपये की मदद मिलती है. हालांकि, ये मदद उन्हीं महिलाओं को मिलती है, जिनकी सालाना कमाई 3 लाख रुपये से कम है. इस योजना से 48 लाख महिलाओं को फायदा होता है.
चुनाव से पहले सोरेन सरकार ने मंईयां योजना की राशि 1 हजार रुपये से बढ़ाकर 2,500 करने का ऐलान किया. आंकड़ों के मुताबिक, कुल महिला वोटरों में से 70.46 फीसदी ने वोट डाला. महिलाओं की ये जबरदस्त वोटिंग सोरेन सरकार के लिए निर्णायक साबित हुई.
राजनीति में भी अब भी बहुत पीछे महिलाएं
पिछले कुछ सालों में चुनावों में महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ी है. कई राज्यों के चुनावों में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर वोटिंग में हिस्सा लिया. कई सरकारों को बनाने और गिराने में महिलाओं का बड़ा हाथ रहा है. मगर यही महिलाएं राजनीति में अब भी काफी पीछे हैं.
महाराष्ट्र में इस बार 21 और झारखंड में 12 महिला विधायक जीतकर आई हैं. यानी, महाराष्ट्र के 288 विधायकों में सिर्फ 7 फीसदी ही महिलाएं हैं. जबकि पिछली बार 24 महिला विधायक चुनकर आई थीं. महाराष्ट्र में 363 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था.
इसी तरह, झारखंड में 98 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था, जिनमें से 12 ही जीत सकीं. ये पहली बार है, जब झारखंड में इतनी महिलाएं विधायक बनी हैं. 2019 में झारखंड में 10 महिला विधायक चुनी गई थीं. झारखंड विधानसभा में अब 15 फीसदी महिलाएं हैं.
संसद से विधानसभाओं तक... कितनी महिलाएं?
मोदी सरकार ने पिछले साल ही संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए 33 फीसदी आरक्षण देने के मकसद से 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' पास किया है.
महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने वाला ये बिल पास हो चुका है. हालांकि, अभी ये लागू नहीं हुआ है. ये तब लागू होगा, जब जनगणना के बाद परिसीमन का काम हो जाएगा. परिसीमन के बाद नए सिरे से लोकसभा और विधानसभा सीटों का गठन होगा. इसके बाद हर राज्य की विधानसभा और लोकसभा में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी.
ये इसलिए जरूरी है, क्योंकि अभी लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं का बहुत ज्यादा प्रतिनिधित्व नहीं है. इस साल हुए लोकसभा चुनाव में सिर्फ 74 महिलाएं ही जीत सकीं. जबकि, 2019 में 78 महिलाओं ने चुनाव जीता था. राज्यसभा में सिर्फ 31 सांसद ही महिलाएं हैं. इस तरह से लोकसभा में 14 फीसदी और राज्यसभा में 13 फीसदी से भी कम महिला सांसद हैं.
विधानसभाओं में भी कमोबेश यही हाल हैं. 31 राज्यों की विधानसभाओं में से सिर्फ छत्तीसगढ़ विधानसभा ही ऐसी है, जहां 20 फीसदी से ज्यादा महिला विधायक हैं. छत्तीसगढ़ में 19 महिला विधायक हैं.
आंकड़े बताते हैं देश की 18 विधानसभाएं ऐसी हैं, जहां 10 फीसदी से कम महिला विधायक हैं. जिन विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से अधिक है. उनमें बिहार (11%), छत्तीसगढ़ (21%), हरियाणा (14%), झारखंड (15%), पंजाब (11%), उत्तराखंड (11%), उत्तर प्रदेश (12%), पश्चिम बंगाल (14%) और दिल्ली (12%) है.
गुजरात विधानसभा में 8 फीसदी महिला विधायक हैं जबकि हिमाचल प्रदेश विधानसभा में सिर्फ एक ही महिला विधायक है.
सिर्फ दो राज्य में महिला मुख्यमंत्री
आजादी से अब तक सिर्फ 16 महिलाएं ही मुख्यमंत्री बन सकीं हैं. सुचेता कृपलानी देश की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं. स्वतंत्रता सेनानी रहीं सुचेता कृपलानी 1963 से 1967 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं हैं.
इस समय देश के सिर्फ दो राज्यों में ही महिला मुख्यमंत्री हैं. दिल्ली में आतिशी और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी. आतिशी इसी साल सितंबर में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी हैं. ममता बनर्जी 2011 से ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं.
शीला दीक्षित (दिल्ली), जयललिता (तमिलनाडु) और ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल) ही सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहीं हैं.
देश के 18 राज्य ऐसे हैं जहां आजतक कोई भी महिला मुख्यमंत्री नहीं बन सकी है. सिर्फ दिल्ली और उत्तर प्रदेश ही ऐसे राज्य हैं जहां अब तक दो बार महिलाएं मुख्यमंत्री रहीं हैं.
वीएन जानकी रामचंद्रन महज 23 दिन तक मुख्यमंत्री रही थीं. जानकी 7 जनवरी 1988 से 30 जनवरी 1988 तक ही तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थीं. उनके बाद सबसे छोटा कार्यकाल सुषमा स्वराज का है, जो 12 अक्टूबर 1998 से 3 दिसंबर 1998 तक 52 दिनों के लिए दिल्ली की सीएम थीं.
महिलाओं के प्रतिनिधित्व में हम बहुत पीछे
राजनीति में महिलाओं को प्रतिनिधत्व देने के मामले में भारत अपने पड़ोसियों पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी पीछे है. दुनिया की सभी सांसदों में सिर्फ 25% ही महिलाएं हैं. रवांडा, क्यूबा, बोलीविया और यूएई ही ऐसे देश हैं, जहां 50% से ज्यादा महिला सांसद हैं.
स्वीडन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस (आईडीईए) के अनुसार, लगभग 40 देशों में या तो संवैधानिक संशोधन या कानूनों में बदलाव कर संसद में महिलाओं के लिए कोटा निर्धारित किया गया.
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में महिलाओं के लिए 60 सीटें आरक्षित हैं. बांग्लादेश की संसद में महिलाओं के लिए 50 सीटें आरक्षित हैं. नेपाल की संसद में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित हैं.
तालिबान के शासन से पहले अफगानिस्तान की संसद में महिलाओं के लिए 27 फीसदी सीटें आरक्षित थीं. यूएई की फेडरल नेशनल काउंसिल (एफएनसी) में महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित हैं. इंडोनेशिया में उम्मीदवारों में कम से कम 30 फीसदी महिलाओं का प्रतिनिधित्व होना चाहिए.