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पौराणिक युग से आधुनिक पॉलिटिक्स के केमिकल काल तक... यमुना की बेबसी की हिस्ट्री और केमिस्ट्री!

दिल्ली में चुनाव है और चुनाव की इस गहमा-गहमी के बीच यमुना भी बड़ा चुनावी मुद्दा बनकर उभरी है. दावा किया जा रहा है कि यमुना में जहर है. आरोप लग रहे हैं कि यमुना का जल पीने तो क्या आचमन के लायक भी नहीं है. दिल्ली की बड़ी रिहायश आज भी पानी की कमी से जूझ रही है. यमुना, जो दिल्ली में नालों का संगम बन गई है, जिसमें केमिकल के झाग जब-तब बहते नजर आते हैं.

यमुना नदी गंगा की ही तरह पौराणिक महत्व की नदी रही है, लेकिन दिल्ली में यह नदी काफी प्रदूषित हो गई है यमुना नदी गंगा की ही तरह पौराणिक महत्व की नदी रही है, लेकिन दिल्ली में यह नदी काफी प्रदूषित हो गई है
विकास पोरवाल
  • नई दिल्ली,
  • 31 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 9:19 AM IST

एक राजा था. नाम था ढिल्लू... इतिहास वाले बताते हैं कि शायद नाम था दिल्लू, या ढिल्लों... नाम जो भी रहा हो, लेकिन 8वीं सदी के इस राजा के नाम पर अरावली की पहाड़ियों की गोद में बसे एक लंबे-चौड़े और दूर तक फैले ऊबड़-खाबड़ वाले खाली जगह को ढिल्ली कहा जाने लगा. फिर तो तोमर आए, चौहान आए, तुगलक, खिलजी, लोदी, मुगल और आखिरी में आए अंग्रेज, तब तक ये ढिल्ली, ढिल्लिका, ढेलिका, ढेली से होते-होते दिल्ली में बदल गई. 

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दिल्ली में क्या है यमुना का वजूद?
कहते हैं कि दिल्ली सात बार बसी, सात बार उजड़ी और उजड़ कर फिर बसी. इसका इतिहास लिखा गया, भूगोल बदलता गया, निजाम और इंतजाम सब बदलते गए लेकिन किसी को नहीं ध्यान रही तो बस यमुना. वो यमुना जो गंगा की ही तरह पहाड़ के दूसरे छोर से निकल कर आई, पुराणों में उसकी ही तरह पूजी गई है. उसकी ही तरह शहरों को बसाया, कला और कल्चर को पनाह दी, प्यासे की प्यास बुझाई और बंजर जमीनों को हरा किया... लेकिन अपने किनारे बसे दुनिया के बड़े और जाने-माने शहर दिल्ली के बावजूद आज यमुना का वजूद क्या है?

यमुना में केमिकल और जहर की सियासत!
दिल्ली में चुनाव है और चुनाव की इस गहमा-गहमी के बीच यमुना भी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनकर उभरी है. दावा किया जा रहा है कि यमुना में जहर है. आरोप लग रहे हैं कि यमुना का जल पीने तो क्या आचमन के लायक भी नहीं है. दिल्ली की एक बड़ी रिहायश आज भी पानी की कमी से जूझ रही है. यमुना, जो दिल्ली में नालों का संगम बन गई है, जिसमें केमिकल के झाग जब-तब बहते नजर आते हैं. 

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ये यमुना हमेशा से ऐसी नहीं थी. इस यमुना ने भी अपनी शीतल-निर्मल लहरे देखीं हैं और खुद को सत्ता के उस केंद्र में देखा है, जहां नदियां सभ्यता को जिलाए रखने वाली अमृत की तरह माने गए हैं. यमुना और दिल्ली ने ऐसे सुनहरे और खूबसूरत इतिहास वाले लंबे दौर भी देखे हैं. इसकी तस्दीक इतिहास और इतिहास को बताने वाले खुले दिल से करते हैं.

यमुना का सांस्कृतिक विस्तार हमेशा अनदेखा रहा
इतिहासकार और लेखक पुष्पेश पंत जब यमुना के बारे में बात करते हैं तो कहते हैं, हमें यमुना सिर्फ दिल्ली और आगरा में याद आती है या फिर यह नदी सिर्फ मथुरा-वृंदावन के पास याद आती है. हम बाकी यमुनाजी को भूल जाते हैं. हम भूल जाते हैं कि यमुनाजी का असली विस्तार बहुत बड़ा है. यह यमुनोत्री से शुरू होता है टौंस नदी के किनारे-किनारे फैली टौंस घाटी की संस्कृति को समृद्ध करते हुए उनका बहाव आगे बढ़ता है. 

यमुना के किनारे ही बिखरी है पहाड़ी कलम शैली की रंगत
यहां टौंस और यमुना के बीच शिल्प कला पनपती है, पहाड़ी चित्रकला (पहाड़ी कलम शैली) उभरती है, जिसकी कूची के रंग से हमारी पुराण कथाएं, लोककथाएं जीवंत होकर अमर हो गई हैं. दिल्ली आने से पहले यमुना पावंटा साहब से होकर गुजरती हैं, जिसका सिखों के लिए बहुत महत्व है. क्योंकि यही वह स्थान है, जहां गुरु गोविंद सिंह थोड़े लंबे समय तक ठहरे रहे थे. 

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महाभारत काल से दिल्ली की जीवन रेखा रही है यमुना
पुष्पेश पंत बताते हैं कि 'यमुना महाभारत के काल से दिल्ली की जीवन रेखा रही है. आप याद कीजिए कि श्रीकृष्ण जब हस्तिनापुर में शांति संदेश लेकर जाते हैं और आखिरी प्रस्ताव पांच गांवों का देते हैं. ये पांच गांव पानीपत, सोनीपत, बागपत, तिलपत और इंद्रपत थे. ये गांव छोटे-मोटे नहीं थे. ये उद्योग के लिए अच्छे थे, खेती के लिए सबसे बेहतर थे. सुरक्षा की दृष्टि से बढ़िया थे और ये सब इसलिए था क्योंकि यमुना के पानी का बड़ा हिस्सा इन भूखंडों से होकर आता था. सुई की नोंक के बराबर भूमि न देने का ऐलान भी इसलिए किया गया था. '

तुगलक ने बनवाई नहरें

दिल्ली में मुगलों से पहले फिरोज शाह तुगलक ने नहरों का काम कराया था. उसने ही पहले सतलज और यमुना पर बांध बनाकर, उनसे नहरें निकालकर दिल्ली के बड़े हिस्से को पानी से लबरेज किया था. हुआ ऐसा था कि, साल 1321 में दिल्ली सल्तनत तुगलक वंश के हाथों में आ गई थी. गयासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद नाम से नई राजधानी बनाई, लेकिन तुगलकाबाद में पानी की कमी थी और ऐसे में तुगलक अपनी राजधानी को फिर से कुतुब मीनार के पास सिरी ही ले गया. 

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1354 में मोहम्मद बिन तुगलक के उत्तराधिकारी फिरोज शाह तुगलक ने दौलताबाद को छोड़कर एक बार फिर दिल्ली को अपनी राजधानी बना लिया और इस बार फिरोज शाह तुगलक ने अपनी राजधानी पुराने इंद्रप्रस्थ के पास यमुना किनारे बसाई. इस तरह एक बार फिर यमुना सत्ता के समीप आ गई थी.

वाटर ट्रांसपोर्ट का भी जरिया रही है यमुना
मुगलों के समय की बात करें तो यमुना वाटर ट्रांसपोर्ट का भी बेहतर जरिया रही है. बादशाह अकबर को कुल्फी का शौक था और ये कुल्फी हिमालय से बर्फ लाकर जमाई जाती थी. इसके लिए बकायदे यमुना के प्रवाह मार्ग का प्रयोग किया जाता था. यमुना दिल्ली की सुरक्षा के लिहाज से भी एक प्रहरी की भूमिका निभाती रही है. लालकिला के पीछे की ओर से सीधा हमला तो मुश्किल ही था. इसके अलावा चारों ओर की गहरी खाइयों में भी यमुना का ही पानी भरा होता था. इस तरह यमुना लालकिले की सुरक्षा की भूमिका भी निभाती थी. शाहजहां ने जब दिल्ली को मुगलिया सल्तनत की राजधानी बनाया तो यही सब देख कर बनाया. 

जब शाहजहां को पसंद आई दिल्ली की जलवायु 
इस पर इतिहास तारीखवार बहुत डिटेल में बात करता है. इतिहास में दर्ज है कि, 1639 में शाहजहां ने आगरा और लाहौर के बीच ऐसी जगह खोजने की इच्छा जताई, जहां की आबोहवा अच्छी हो. मौसम खुशदिली वाला हो और बहुत शुष्क न हो. आगरा के मौसम पर रेगिस्तानी असर ज्यादा था, लेकिन उसी अरावली की पहाड़ियों वाली दिल्ली में मौसम अलग था. ये भी दिलचस्प है कि जिस दिल्ली में शाहजहां अच्छे मौसम की वजह से आया था, वही दिल्ली आज प्रदूषण के दुखड़े से परेशान है. 

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ऐसे यमुना किनारे बसाया गया शाहजहानाबाद
शाहजहां ने यमुना किनारे अपनी राजधानी बसानी शुरू की और 1648 में शाहजहां अपनी नई राजधानी शाहजहानाबाद में शिफ्ट हुए. आज उसी शाहजहानाबाद को पुरानी दिल्ली के नाम से जाना जाता है. किसी भी नए नगर को बनाने और वहां बसावट के लिए जो सबसे पहली जरूरत है, वो है पानी. शाहजहां से पहले फिरोजशाह तुगलक ने इस बात को ठीक से समझा था. फिरोजशाह तुगलक ने खिज्राबाद से सफीदों (करनाल से हिसार) तक नहर बनवाई थी.

शाहजहां ने दिल्ली को दिल से अपनाया
अकबर और जहांगीर के बाद शाहजहां वो शासक हुआ जिसने आगरा के बाद दिल्ली को दिल से अपनाया. उसने न सिर्फ यहां किला और राजधानी बनवाई, बल्कि उसने यमुना के पानी का भरपूर इस्तेमाल किया और उसे जनता तक पहुंचाने के लिए काम कराए. उसने अपने किले, अपनी फौज और आम लोगों की जरूरतों के लिए पानी उपलब्ध कराने की जरूरतों का इंतजाम भी किया. 

यमुना के पानी ने दिल्ली को ऐसे सींचा
इतिहास के इस हिस्से को पर्यावरण और जल मुद्दे पर काम करने वाले अनिल अग्रवाल और सुनीता नारायण ने अपनी किताब (बूंदों की संस्कृति) में दर्ज किया है. किताब बताती है कि, शाहजहां ने लाल किला बनाने के साथ शाहजहानाबाद शहर की भी नींव रखी थी. तब उन्होंने एक आर्किटेक्ट, अली मर्दन खां को खासतौर पर सिर्फ इस काम के लिए लगाया कि वह यमुना का पानी शहर से होते हुए किले तक पहुंचाए. 

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अली मर्दन खां ने यमुना को नहर के जरिए महल के अंदर तक पहुंचाया, इस नहर का नाम अली मर्दन ही रखा गया, जिसे फैज नहर के नाम से भी जानते थे. इसके साथ ही अली मर्दन ने तुगलक की बनवाई नहर की भी मरम्मत कराई थी. यह नहर अभी दिल्ली की सीमा पर स्थित नजफगढ़ के पास है. दिल्ली शहर में प्रवेश करने के पहले अली मर्दन नहर 20 किमी. इलाके के बगीचों को सींचती थी. इस नहर पर चद्दरवाला पुल, पुलबंगश और भोलू शाह पुल जैसे अनेक छोटे-छोटे पुल बने हुए थे. नहर भोलू शाह पुल के पास शहर में प्रवेश करती थी और तीन हिस्सों में बंट जाती थी. यहां से ये जलराशि ओखला, मौजूदा कुतुब रोड और निजामुद्दीन इलाके में जलापूर्ति करती थी. इस शाखा को इतिहास में सितारे वाली नहर का नाम मिला था. 

दूसरी शाखा चांदनी चौक तक आती थी. लाल किले के पास पहुंचकर यह दाहिने मुड़कर फैज बाजार होते हुए दिल्ली गेट के आगे जाकर यमुना नदी में गिरती थी. इसकी एक और उपशाखा पुरानी दिल्ली गेट के आगे जाकर यमुना नदी में गिरती थी. एक उपशाखा पुरानी दिल्ली स्टेशन रोड वाली सीध में चलकर लाल किले के अंदर प्रवेश करती थी. 

किले को ठंडा रखता था यमुना की नहर से निकला हुआ पानी
नहर का पानी किले के भीतर बने कई हौजों को भरता था और किले को ठंडा रखता था इस नहर को चांदनी चौक में नहर-ए-फैज और महल के अंदर नहर-ए-बहिश्त कहा जाता था. हालांकि चांदनी चौक की नहर 1740 से 1820 के बीच यह कई बार सूखी थी, पर इसे बीच-बीच में ठीक कराया गया. 1843 में भी शाहजहानाबाद में 607 कुएं थे जिनमें 52 में मीठा पानी आता था. बाद में बहुत से कुएं बंद कर दिए गए, क्योंकि इनमें गंदी नालियों का पानी भर जाता था.  1890 में चारदीवारी वाले शहर के अंदर इसका पानी आना बंद हुआ. आज भी इस नहर के अवशेष चांदनी चौक इलाके में कहीं-कहीं दिख जाते हैं. 

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ये दिल्ली में यमुना का वो इतिहास है, वो कहानी है, जब पानी के पंप, बिजली और क्लोरीन-अमोनिया जैसे केमिकल से दूर भी दिल्ली एक शहर था. लोग घड़ों से पानी पीते थे. उन घड़ों में कुओं और सीढ़िदार बावड़ियों-दीघियों से पानी आता था. इन कुओं में नहरों से जलस्तर बढ़ता था. ये नहरें यमुना से निकलती थीं और घूम फिर कर यमुना में मिल जाती थीं. वही यमुना जो आज सिर्फ मलबा, कचरा और नालों का पानी बहाने का जरिया भर रह गई है. 
 

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