
इजराइली सेना ने गाजा से एक यजीदी युवती को रेस्क्यू किया, जिसका लगभग 10 साल पहले इस्लामिक स्टेट (ISIS) ने इराक से अपहरण किया था. बाद में वो आतंकियों से गुजरती हुई गाजा पहुंच गई. इजरायल और इराक दोनों ने ही रेस्क्यू पर वीडियो जारी किया. इसके बाद से यजीदी समुदाय चर्चा में है. इराक और सीरिया की इस कम्युनिटी पर इस्लामिक स्टेट ने साल 2014 में इस्लाम कुबूल करने का दबाव बनाया और न मानने वालों की हत्या कर दी.
क्या कहता है यूएन का डेटा
संयुक्त राष्ट्र (UN) समेत अलग-अलग आंकड़े कहते हैं कि उस दौरान पांच हजार से भी ज्यादा यजीदी मारे गए, वहीं हजारों महिलाओं-बच्चों को अगवा कर लिया गया. जानिए, कौन हैं यजीदी, और क्यों इस्लामिक स्टेट उनसे बैर रखता रहा.
साल 2014 में जब आईएसआईएस का आतंक अपने चरम पर था, तभी उसने यजीदी समुदाय पर निशाना साधा. ये इराक के सिंजर इलाके में बसे हुए थे. इस्लामिक लड़ाकों ने पहले उनसे धर्म बदलने की बात की और न मानने वालों की हत्या कर दी. यूनाइटेड नेशन्स के आंकड़ों के मुताबिक अकेले अगस्त की शुरुआत में 5 हजार यजीदी मार दिए गए. लेकिन उनकी महिलाओं और बच्चियों की हालत और बदतर हुई.
यूएन की ही रिपोर्ट कहती है कि तब 6 हजार से ज्यादा यजीदी महिलाएं उठा ली गईं और उन्हें सेक्स स्लेव बना दिया गया. यहां तक कि बच्चियों से भी इस्लामिक स्टेट के मिलिटेंट्स ने रेप किया.
आत्मघाती बम की तरह इस्तेमाल
यूनाइटेड नेशंस ह्यूमन राइट्स काउंसिल (यूएनएचआरसी) का कहना है कि इन औरतों को मिलिटेंट अलग तरह से भी इस्तेमाल करते थे. वे उन्हें जिहादी स्लेव बना चुके थे, जिनका काम बच्चों को जन्म देना था, जिन्हें इस्लामिक स्टेट के काम में लगाया जा सके. साथ ही बहुत सी बड़ी उम्र की महिलाओं को आत्मघाती बम बना दिया गया. इस दौरान कइयों का ब्रेन वॉश भी हुआ और वे खुद ही आईएसआईएस के लिए काम करने लगीं.
साल 2014 के बीच में ही 2 लाख से ज्यादा यजीदी इस्लामिक स्टेट के हमलों के बीच इराक में पहाड़ियों पर छिप गए. वहां कई दिनों खाना-पानी न मिलने की वजह से भी काफी मौतें हुईं. संयुक्त राष्ट्र समेत तमाम इंटरनेशनल संगठनों ने इसे यजीदी कौम का नरसंहार माना, जो इस्लामिक स्टेट ने किया था.
आईएसआईएस क्यों रहता आया यजीदियों के खिलाफ
इस्लामिक स्टेट एक चरमपंथी विचारधारा रही, जिसके मिलिटेंट पूरी दुनिया में इस्लामिक हुकूमत लाने की कोशिश में रहे. साल 2013 में जब इस्लामिक स्टेट बना, तो उसका एजेंडा बिल्कुल साफ था. वो ऐसी संस्थाओं और लोगों को टारगेट करना, जो उसके मुताबिक मजहब का पालन ढंग से नहीं कर रहे थे. पहले उन्हें समझाया जाता, और न मानने पर हत्या कर दी जाती. यजीदियों के साथ भी यही हुआ.
अलग धर्म और तौर-तरीकों से हुए नाराज
उनकी धार्मिक मान्यताएं इस्लाम से अलग थीं. इस वजह से आईएसआईएस उन्हें काफिर और शैतान को पूजने वाला मानने लगा. चरमपंथी चाहते थे कि पहाड़ों पर बसने वाले ये लोग इस्लाम अपना लें. विरोध पर उनकी हत्या की जाने लगी. साथ ही उनकी महिलाओं को जिहाद अल-निकाह के तहत अपने मिलिटेंट्स में बांट दिया.
रणनीतिक फायदे के लिए भी हत्याएं
एक वजह और भी रही. यजीदियों का केवल मजहब ही नहीं, वे जिस इलाके में बसे थे, उसपर भी इस्लामिक स्टेट अपना कब्जा चाहता था. इराक और सीरिया के बीच सिंजर क्षेत्र रणनीतिक तौर पर काफी अहम था. ये ऊंची पहाड़ियों वाला इलाका था, जहां रहते हुए उन्हें अपना आतंकी नेटवर्क बढ़ाने का मौका मिलता. चूंकि वहां दूसरे धर्म के लोग बसे हुए थे तो इस्लामिक स्टेट ने इस रोड़े को ही खत्म करना चाहा.
कैसे बाकी धर्मों से अलग हैं यजीदी
यजीदी वैसे तो एक ईश्वर को मानते हैं लेकिन उनकी मान्यता इस्लामिक, यहूदी, ईसाई इन सबसे अलग रही. वे प्रकृति और सूर्य की पूजा करते हैं. वे सूरज की तरफ चेहरा करते उसके उगते और अस्त होते समय प्रार्थना करते. इस कम्युनिटी में गीत-संगीत का भी काफी महत्व रहा, जो कि इस्लाम में वर्जित है. वे न हज करते हैं, न ही नमाज. उनकी पूजा पद्धति इस्लाम और बाकी धर्मों से एकदम अलग रही. यहां तक कि वे पुनर्जन्म को मानते हैं, जो कि अब्राहमिक रिलीजन का हिस्सा नहीं.
ईसाई, इस्लाम और यहूदियों में जहां सबके पास लिखित धर्म ग्रंथ हैं, वहीं यजीदियों के पास ये नहीं. वे सिर्फ मौखिक परंपरा से चलते आए. माना जाता है कि ये धर्म हजारों साल पुराना है. लेकिन यही अनोखापन आईएसआई को खटकने लगा और उसने इराक में भारी कत्लेआम मचाया.
कहां बसे हुए हैं
साल 2014 में हुए नरसंहार के बीच ज्यादातर यजीदी विस्थापित होकर अलग-अलग देशों में चले गए. जैसे इनकी बड़ी आबादी यूरोप, कनाडा, और बाकी पश्चिमी देशों में है, खासकर जर्मनी और अमेरिका में. बहुत से लोग भागकर कुर्दिस्तान पहुंच गए. यहां वे आज भी रिफ्यूजी कैंप में रह रहे हैं. बता दें कि कुर्दिस्तान इराक का ही एक हिस्सा है, जिसे ऑटोनॉमी मिली हुई है. वे बचकर भाग तो गए लेकिन अब भी लगभग तमाम देशों में इनकी हालत खस्ता ही है.
कुर्द और इराक में वे शिविरों में रह रहे हैं और मुख्यधारा से अलग ही हैं. शरण देने वाले कई देशों को भी शक है कि चूंकि वे कैपों से बचकर आए और लंबे समय इस्लामिक स्टेट के साये में रहे तो उनकी सोच भी अलग हो सकती है. इस डर से भी उन्हें बाकियों से अलग रखा गया.