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फैक्ट चेक: बेबुनियाद है कांग्रेस के चुनाव निशान ‘हाथ के पंजे’ के इस्लामिक कनेक्शन की बात

सोशल मीडिया पर एक तस्वीर तेजी से वायरल हो रही है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस का चुनाव चिन्ह ‘हाथ का पंजा’ इस्लामिक शिया समुदाय के एक प्रतीक से प्रेरित है. इस दावे से जुड़ी पोस्ट सामने आने के बाद आजतक की फैक्ट चेक टीम ने इसकी पड़ताल की. पड़ताल में कुछ और ही निकलकर सामने आया.

आजतक फैक्ट चेक

दावा
कांग्रेस का चुनाव चिन्ह ‘हाथ का पंजा’ इस्लामिक शिया समुदाय के एक प्रतीक से प्रेरित है.
सच्चाई
साल 1978 में कांग्रेस मे हुई टूट के बाद उसका चुनाव चिन्ह ‘गाय-बछड़ा’ जब्त हो गया था. हाथ का पंजे का विकल्प चुनाव आयोग ने कांग्रेस को दिया था.
सुमित कुमार दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 19 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 9:27 PM IST

19 अक्टूबर को मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष चुन लिए गए. 24 साल बाद नेहरू-गांधी परिवार से बाहर का कोई शख्स कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बना है. नए अध्यक्ष के तौर पर खड़गे के सामने चुनौती होगी कि पार्टी के नारे 'कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ” को कामयाब बना कर दिखाएं और पार्टी में नई जान फूंकें.

लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए इस ऐतिहासिक मौके पर कुछ लोग सोशल मीडिया पर उसके चुनाव निशान हाथ या पंजे को लेकर एक ऐसा सवाल उठा रहे हैं जिससे लोग भ्रम में पड़ गए हैं. कुछ लोग कह रहे हैं कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा इस्लाम धर्म के एक प्रतीक से प्रेरित है.

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वायरल हो रही तस्वीर इस्लाम के शिया समुदाय से जुड़े प्रतीक हाथ के पंजे की है जिस पर उर्दू में ‘अब्बास अलहे सलाम’ लिखा है. इसे नीचे कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा बना है. साथ में एक संदेश लिखा है जिसके मुताबिक 'इस्लाम के इसी प्रतीक चिन्ह को कांग्रेस ने अपना चुनाव चिन्ह बनाया है. मुस्लिमों को ये बात पता है लेकिन कहीं हिंदू कांग्रेस को वोट देना बंद न कर दें इसलिए हिंदुओं से ये बात छुपाई गई है.' 

एक फेसबुक यूजर ने इस पोस्ट को शेयर करते हुए लिखा, 'अब इसे ध्यान से पढ़िए और उन निर्लज्ज हिंदुओ को भी जगाइए.' 

इंडिया टुडे फैक्ट चेक ने पाया कि कांग्रेस के चुनाव चिन्ह को इस्लाम के प्रतीक से जोड़ने की बात बेबुनियाद है. कांग्रेस ने हाथ के पंजे को साल 1978 में अपना चुनाव चिन्ह बनाया था. पार्टी में टूट के चलते उसका पुराना चुनाव चिन्ह जब्त हो गया था और उसे चुनाव आयोग ने पार्टी के निशान के तौर पर तीन विकल्प चुनने को दिए था जिसमें पंजा एक था.

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कैसे पता लगाई सच्चाई? 

कांग्रेस के चुनाव चिन्ह में बदलाव के इतिहास को खोजते हुए ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट मिली. इसके मुताबिक 1952 से लेकर 1969 तक कांग्रेस का चुनाव चिन्ह ‘दो बैलों की जोड़ी’ हुआ करती था. 1969 में पार्टी में टूट हुई और इंदिरा गांधी ने इंडियन नेशनल कांग्रेस (आर) बनाई और पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘गाय-बछड़ा’ हो गया. 

दरअसल किसी भी पार्टी में टूट की स्थिति में चुनाव आयोग अक्सर पार्टी के चुनाव चिन्ह को जब्त कर लेता है और दावेदारों को नए चुनाव चिन्ह आवंटित किए जाते हैं.   

साल 1978 में कांग्रेस में फिर से एक

और विभाजन हुआ. इमरजेंसी के बाद, 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के हाथों कांग्रेस की हार हुई थी. सत्ता गंवाने के बाद कांग्रेस के जो 153 सांसद जीते उनमें 76 सांसदों ने इंदिरा का साथ छोड़ दिया. तब 1978 में इंदिरा गांधी ने अपने गुट को कांग्रेस (आई) नाम दिया और अपनी अगल पार्टी बना ली. 

चुनाव चिन्ह को लेकर दोनों गुटों में खींच-तान मची तो मामला एक बार फिर से चुनाव आयोग तक जा पहुंचा. सीनियर जर्नलिस्ट रशीद किदवई ने कांग्रेस में हुई इस टूट और उसके नए चुनाव चिन्ह यानी हाथ के पंजे के बारे अपनी किताब ‘Ballot -- Ten Episodes That Have Shaped India's Democracy' में दिलचस्प चर्चा की है. 

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किताब के मुताबिक, जब कांग्रेस का चुनाव चिन्ह ‘गाय और बछड़ा’ छिन गया तो इंदिरा  दुखी होने के बजाय राहत महसूस कर रही थीं. कारण ये कि उस वक्त गाय और बछड़े के चिन्ह को इंदिरा और उनके बेटे संजय गांधी से जोड़कर मजाक बनाया जा रहा था. 

कैसे मिला कांग्रेस को हाथ का पंजा?

इंदिरा, कांग्रेस का सबसे पुराना चिन्ह ‘दो बैलों की जोड़ी’ फिर से  वापस चाहती थीं. लेकिन उसे चुनाव आयोग ने फ्रीज कर दिया था. 

नए चुनाव चिन्ह के लिए कांग्रेस (आई) के महासचिव बूटा सिंह ने चुनाव आयोग में अर्जी दी. उन्हें चुनाव निशान के तौर पर हाथी, साइकिल और हाथ के पंजे में से किसी एक को चुनने का विकल्प मिला. 

जाहिर है ये फैसला बूटा सिंह नहीं कर सकते थे लिहाजा उन्होंने दिल्ली से दूर विजयवाड़ा में मौजूदा इंदिरा गांधी को फोन लगाया. इंदिरा गांधी से साथ उस वक्त पीवी नरसिम्हा राव भी मौजूद थे.  

रशीद किदवई के मुताबिक, फोन पर बूटा सिंह जब इंदिरा गांधी को तीसरे विकल्प ‘हाथ’ के बारे में बता रहे थे तो उन्हें  हाथ की जगह ‘हाथी’ सुनाई दिया. वो इसके लिए लगातार इनकार करती रहीं और फिर उन्होंने फोन का रिसीवर नरसिम्हा राव को दे दिया. 

कई भाषाओं के जानकार नरसिम्हा राव समझ गए कि बूटा सिंह क्या कहना चाहते हैं. इंदिरा ने तब हाथ के पंजे को लेकर हामी भरी और कांग्रेस के नए चुनाव चिन्ह का फैसला हो गया.

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तब से लेकर अब तक हाथ का पंजा ही कांग्रेस का चुनाव चिन्ह है.

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