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फैक्ट चेक: लखनऊ के दर्जी के जनाजे की इस मनगढ़ंत कहानी पर न करें यकीन

सोशल मीडिया पर एक कहानी वायरल हो रही है जिसमें भारी भीड़ वाले जनाजे की कुछ फोटो का भी हवाला दिया जा रहा है और कहा जा रहा है कि एक दर्जी के जनाजे में इतनी भीड़ उमड़ी थी. यह तस्वीर झूठी है. दर्जी के जनाजे में उमड़ी भीड़ की कहानी मनगढ़ंत है. इस कहानी में दी गईं जनाजे की तस्वीरें अलग-अलग शहरों से ली गईं हैं.

आजतक फैक्ट चेक

दावा
साल 1902 में लखनऊ में एक गरीब दर्जी के जनाजे में लाखों लोगों का हुजूम शामिल हुआ था.
सच्चाई
दर्जी के जनाजे में उमड़ी भीड़ की कहानी मनगढ़ंत है. इस कहानी में दी गईं जनाजे की तस्वीरें अलग-अलग शहरों से ली गईं हैं.
सुमित कुमार दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 13 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:36 PM IST

क्या लखनऊ में 120 साल पहले एक ऐसा शख्स हुआ था जो पेशे से तो साधारण दर्जी था, लेकिन जब उसकी मौत हुई तो उसके जनाजे में लाखों लोगों की भीड़ जुटी? सोशल मीडिया पर एक ऐसी ही कहानी वायरल हो रही है जिसमें सबूत के तौर पर भारी भीड़ वाले जनाजे की कुछ फोटो का भी हवाला दिया जा रहा है.  

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न्यूज रिपोर्ट के फॉर्मेट में लिखी गई इस कहानी की हेडिंग है, 'लखनऊ में गरीब दर्जी का ऐसा जनाजा, जो हर ईमान वाले को जरूर पढ़ना चाहिए, कैसे सबसे बड़ा...'  इसके नीचे खबर में लिखा है कि लखनऊ का एक दर्जी किसी भी जनाजे को देखकर अपनी दुकान बंद कर लिया करता था. साल 1902 में जब मौलाना अब्दुल हय्य लखनवी का इंतकाल हुआ और ये खबर रेडियो के जरिए फैली तो उनके जनाजे में लाखों लोगों की भीड़ जमा हो गई. बहुत लोग उनके जनाजे की नमाज नहीं पढ़ सके. उसी वक्त उस दर्जी का जनाजा भी कब्रिस्तान पहुंचा और उस भीड़ ने उस दर्जी के जनाजे की नमाज अदा की. 

एक फेसबुक यूजर ने इस पोस्ट को शेयर करते हुए लिखा, 'ऐसी कौन सी बात और खासियत थी उस गरीब दर्जी में..'  

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इंडिया टुडे फैक्ट चेक ने पाया कि एक लखनऊ के किसी दर्जी के जनाजे में लाखों लोगों के शामिल होने की बात पुख्ता नहीं है. कहानी के साथ जिन तस्वीरों को इस्तेमाल किया गया है वो किन्हीं और लोगों के जनाजे के वक्त ली गईं थीं.  

कैसे पता लगाई सच्चाई?  

वायरल कहानी के साथ साल 1902 में जिन मौलाना अब्दुल हय्य लखनवी की मौत और जनाजे की बात कही गई है उनकी मौत साल 1886 में हुई थी

खोजने पर हमें लखनऊ के किसी ऐसे दर्जी के बारे में कोई प्रमाणिक रिपोर्ट भी नहीं मिली जिसकी मौत भी 1886 में हुई हो और उसके जनाजे में लाखों लोगों की भीड़ शामिल हुई हो. 

इस पूरी कहानी में कहीं भी उस दर्जी के नाम का जिक्र नहीं है जिसके चलते इसकी प्रमाणिकता पता कर पाना और भी ज्यादा मुश्किल है. दर्जी के जनाजे में लाखों लोगों के शामिल होने की कहानी के साथ जनाजे की तीन तस्वीरें भी लगाई गई हैं जिनमें लोगों की भारी भीड़ दिख रही है. जब हमने इन तस्वीरों को रिवर्स सर्च किया तो पता चला कि ये तस्वीरों का दर्जी की कहानी से कोई लेना-देना नहीं है 

हापुड़ की है पहली तस्वीर  

पहली तस्वीर में भीड़ के बीच किसी शख्स के जनाजे की नमाज पढ़ी जा रही है. हमें ‘हिंदुस्तान’ की वेबसाइट पर एक न्यूज रिपोर्ट के साथ यही फोटो मिली. इस खबर के मुताबिक ये यूपी के हापुड़ में, मौलाना रियाज अहमद कासमी के जनाजे की तस्वीर है. साल 2019 में उनका इंतकाल हुआ था और जनाजे की नमाज जमीयत उलमा–ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अशरद मदनी ने अदा की थी.   

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हमने अशरद मदनी के प्रेस सेक्रेटरी मौलाना फजलउर्रहमान से संपर्क किया तो उन्होंने इस तस्वीर की तस्दीक करते हुए बताया कि ये हापुड़ के मौलाना रियाज अहमद कासमी के अंतिम संस्कार के वक्त की ही तस्वीर है.  

पाकिस्तान की है दूसरी तस्वीर  

इस कहानी की दूसरी तस्वीर हमें फोटोग्राफी की वेबसाइट ‘alamy.com’ पर मिली. इसके साथ लिखी जानकारी के मुताबिक ये तस्वीर पाकिस्तान के शहर कराची में 02 सितंबर, 2021 की ली गई थी. तस्वीर में दिख रहे ज्यादातर लोग जमीयत-ए-इस्लामी के चीफ हाफिज नईमउर्रहमान के साथ आए थे. मौका था, कराची यूनिवर्सिटी रोड पर कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी के नमाज-ए-जनाजा का. 

मुरादाबाद की है तीसरी तस्वीर  

दर्जी के जनाजे की वायरल कहानी की तीसरी तस्वीर हमें ‘अमृत विचार’ वेबसाइट पर मिली. इस खबर मुताबिक ये तस्वीर मुरादाबाद जिले के अलासतपुरा में एक ही परिवार के पांच लोगों के जनाजे की है. हमें 26 अगस्त, 2022 की ‘अमर उजाला’ की एक रिपोर्ट मिली. इसके मुताबिक मुरादाबाद जिले के अलातसपुरा में एक अग्निकांड में एक ही परिवार के पांच लोगों की मौत हो गई थी और उनके जनाजे में काफी लोगों की भीड़ शामिल हुई थी.  

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