सोशल मीडिया पर इन दिनों मोहम्मद रफी का एक गाना "बेगुनाहों का लहू है ये रंग लाएगा" तेजी से वायरल हो रहा है. दावा किया जा रहा है कि पचास साल पहले सेंसर बोर्ड ने इस गाने को फिल्म से कटवा दिया था. ये गाना साल 1966 में रिलीज हुई फिल्म "जोहर इन कश्मीर" का है.
वायरल पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है.
इंडिया टुडे एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पड़ताल में पाया कि वायरल हो रही पोस्ट के साथ किया गया दावा भ्रामक है. इस गाने में सेंसर बोर्ड ने बैन नहीं किया था, लेकिन कुछ शब्दों को हटाने के लिए कहा था.
फेसबुक पेज "Azamgarh Express" ने ये गाना अपलोड करते हुए कैप्शन में लिखा: "सुनें मोहम्मद रफी की आवाज में ये गीत जो कभी रिलीज नहीं हो पाया. पचास साल पहले इस गाने को सेंसर ने कटवा दिया था! लेकिन क्यों?"
खबर लिखे जाने तक इस पोस्ट को 2600 से ज्यादा बार शेयर किया जा चुका था जबकि 50 हजार लोगों ने इसे देखा है.
फेसबुक यूजर "Shanif Malik" और "Zafar Shaikh" जैसे बहुत से लोगों ने भी इसी दावे के साथ इस गाने को अपलोड किया है. ये पोस्ट ट्विटर पर भी शेयर की जा रही है.
वायरल पोस्ट के दावे की पड़ताल में हमने पाया कि "जोहर इन कशमीर" फिल्म के इस गाने को कभी सेंसर बोर्ड ने बैन नहीं किया, हालांकि बोर्ड ने गाने के कुछ शब्दों को बदलने के लिए जरूर कहा था. वर्ष 1966 के "भारत का राजपत्र" में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सेंसर का आधिकारिक ऑर्डर शामिल है. इस आदेश के अनुसार गाना "बेगुनाहों का लहू है ये रंग लाएगा" में "हश हुस्सैन का इंसाफ किया जाएगा" लाइन को हटाने के आदेश दिए गए थे.
यह गाना ऑनलाइन मौजूद है और पूरे गाने में "हश हुस्सैन का इंसाफ किया जाएगा" लाइन कहीं सुनाई नहीं देती. इसकी जगह "हर एक जुल्म का इंसाफ किया जाएगा" सुना जा सकता है. इससे यह अनुमाना लगाया जा सकता है कि सेंसर बोर्ड के इस आदेश के बाद गाने से उस लाइन को बदला गया था.
कुछ दिनों पहले इसी फिल्म के गाने "जन्नत की है तस्वीर ये कशमीर न देंगे" पर पचास साल पहले बैन लगने के दावे सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे. हालांकि इस गाने को भी सेंसर बोर्ड ने कभी बैन नहीं किया था, गाने में से केवल "हाजी पीर" शब्द को हटाने के लिए कहा था. यह शब्द हटाने के बाद इस गाने को रिलीज किया गया था. यह गाना भी ऑनलाइन मौजूद है.