देश के कई हिस्सों में लोग मॉनसून का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. इंतजार की इन घड़ियों के बीच अभिनेता अमिताभ बच्चन सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो के झांसे में आ गए. इस वीडियो में दावा किया जा रहा है कि NASA ने बारिश वाले बादल बनाने की मशीन विकसित की है जिसकी मदद से बारिश करवाई जा सकती है.
इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने अपनी पड़ताल में पाया कि वायरल हो रहा वीडियो भ्रामक है. इसे दो अलग-अलग रॉकेट इंजन के परीक्षण के वीडियो को जोड़कर तैयार किया गया है. नासा ने कृत्रिम बारिश करवाने वाली कोई मशीन तैयार नहीं की है.
ट्वीट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है.
वायरल वीडियो के शुरुआत में कुछ सेकंड तक एक विशालकाय मशीन बादलों जैसा दिखने वाला सफेद रंग का धुआं छोड़ती हुई दिखाई देती है. वहीं आगे चल कर इस वीडियो में एक एंकर नजर आता है जो इन कथित बादलों के बारे में बात करता है. 59 सेकंड के इस वीडियो के अंत में इन्हीं 'बादलों' से बारिश होती हुई भी दिखती है. AFWA ने पाया कि वायरल वीडियो में नकली बादल बनाती यह मशीन असल में स्पेस शटल इंजन है. नासा ने इसका परीक्षण अमेरिका के मिसिसिपी में किया था.
दरअसल वायरल हो रहा यह वीडियो दो अलग-अलग रॉकेट इंजन के परीक्षण के वीडियो को जोड़कर तैयार किया गया है. वीडियो के शुरुआती कुछ सेकंड में RS-25 इंजन के परीक्षण की क्लिप है जबकि बाकी का वीडियो बीबीसी की टीवी सीरीज "स्पीड" का है. 2001 में प्रसारित हुए इस शो को इंग्लिश ब्रॉडकास्टर जेरेमी क्लार्कसन ने होस्ट किया था. फुटेज में RS-68 इंजन का परीक्षण देखा जा सकता है.
नासा ने इन दोनों ही इंजन का परीक्षण अलग-अलग समय पर मिसिसिपी में स्थित अपने स्टेनिस स्पेस सेंटर में किया था. यह वीडियो इससे पहले भी वायरल हो चुका है. उस समय The Verge ने इसका फैक्ट चेक किया था.
यहां देखें बीबीसी के शो "स्पीड" की क्लिपिंग जहां से वायरल वीडियो का हिस्सा लिया गया है-
अमिताभ बच्चन के ट्वीट के साथ कमेंट बॉक्स में कुछ यूजर्स Forbes के फैक्ट-चेक आर्टिकल का लिंक भी पोस्ट कर रहे हैं.
क्या है RS-25 और RS-68 इंजन?
RS-25 इंजन लिक्विड-फ्यूल क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन है. नासा ने इसका इस्तेमाल स्पेस शटल में किया था. अब इसका इस्तेमाल नासा के अगले बड़े रॉकेट द स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) में किया जाएगा.
द एरोजेट रॉकेटडाइन RS-68 लिक्विड-फ्यूल रॉकेट इंजन है. यह विश्व का सबसे ताकतवर हाइड्रोजन-फ्यूल्ड रॉकेट इंजन है. इसका इस्तेमाल Delta IV रॉकेट्स में किया गया था. यह दोनों ही इंजन बारिश लाने वाले बादल बनाने की मशीनें नहीं हैं.
क्या इन मशीनों से सच में बारिश करवाई जा सकती है?
हां, क्योंकि इन इंजनों से जो धुआं निकलता है उसमें भारी मात्रा में जलवाष्प होता है. जैसे ही यह जलवाष्प हवा में ठंडा होता है, यह आसपास के इलाकों में बारिश बनकर बरस जाता है, जैसा कि इस वायरल वीडियो वाले केस में हुआ. असल में एक तरह से यह इंजन के परीक्षण का साइड इफैक्ट है.
क्या कृत्रिम रूप से कराई जा सकती है बारिश?
क्लाउड-सीडिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी मदद से सीमित इलाके में कृत्रिम बारिश करवाई जा सकती है. इसके तहत ड्राय आइस जैसे केमिकल्स का छिड़काव पानी वाले बादलों पर किया जाता है, जिससे बारिश होती है. इस प्रक्रिया ने काफी हद तक सफलता प्राप्त की है, लेकिन बारिश करवाने का यह तरीका काफी महंगा है.
भारत सहित कई देशों में क्लाउड सीडिंग तकनीक को आजमाया जा रहा है. वर्ष 2017 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटेरोलॉजी ने कर्नाटक में क्लाउड-सीडिंग की थी. इसे "वर्षाधारे" नाम दिया गया था. शोध के अनुसार क्लाउड सीडिंग की मदद से केवल तब ही बारिश करवाई जा सकती है जब मौसम इसके अनुकूल हो.
हालांकि अब तक किसी भी देश ने ऐसी मशीन विकसित नहीं की है जिसकी मदद से कृत्रिम बादल बनाए जा सकें.