प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में इस बात से इनकार किया था कि भारत में कोई डिटेंशन कैंप है. तभी से इस दावे के पक्ष में और विपक्ष में तमाम पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही हैं. इसी तरह दिल को छूने वाली एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिसमें एक महिला बाड़ के इस पार खड़ी है और बाड़ के बाहर मौजूद बच्चे को दूध पिला रही है, जिसे एक आदमी पकड़कर खड़ा है. इस तस्वीर के साथ दावा किया जा रहा है कि यह भारत के डिटेंशन कैंप की तस्वीर है.
फेसबुक यूजर Chotu Khan ने यह तस्वीर पोस्ट की है जिसके ऊपर लिखा है, "अब और डिटेंशन कैंप नहीं!" बांग्ला भाषा में उन्होंने कैप्शन लिखा है जिसका हिंदी अनुवाद होगा, "पति पत्नी दोनों बांग्लादेशी हैं. पत्नी मुस्लिम है और इसलिए वह एनआरसी के चलते डिटेंशन कैंप में रह रही है. पति हिंदू है इसलिए CAB के चलते बाहर है. लेकिन माता पिता मिलकर सुनिश्चित करते हैं कि बच्चे को समय पर दूध मिलता रहे. एक छोटी कहानी का अंत. आने वाले दिनों में मोदी के अच्छे दिनों के ऐसे और उदाहरण देखने को मिलेंगे."
स्टोरी लिखे जाने तक यह पोस्ट 200 से ज्यादा बार शेयर की जा चुकी है. पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है.
इसी तरह फेसबुक यूजर All India Muslim Bedari Karwan ने भी एनआरसी के संदर्भ में इसी तस्वीर को पोस्ट किया है और हिंदी में कैप्शन लिखा है, "हम यह लड़ाई लड़ रहे है ताके जब आप डिटेंशन केम्प के अंदर हो और आपका बच्चा बाहर हो तब ऐसा नोबत न आए इसलिए लड़ रहे हैं। हम नही रुकेंगे, #reject_CAA_boycott_NRC".
स्टोरी लिखे जाने तक इस पोस्ट को 5000 से ज्यादा बार शेयर किया जा चुका है. पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है.
इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने अपनी पड़ताल में पाया कि वायरल हो रही यह तस्वीर भारत की नहीं है. यह तस्वीर अर्जेंटीना में किसी जगह खींची गई है.
AFWA की पड़ताल
हमने तस्वीर की सच्चाई जानने के लिए इसे रिवर्स सर्च किया तो हमने पाया कि यह फोटो अर्जेंटीना में खींची गई थी और पिछले छह सालों से सोशल मीडिया पर वायरल होती रही है.
यह तस्वीर "controappuntoblog.org " नाम के एक ब्लॉग पर 13 जनवरी, 2013 को अपलोड की गई थी. टूटी फूटी अंग्रेजी में लिखी गई ब्लॉग की यह पोस्ट कहती है कि अर्जेंटीना में किसी जगह पुलिस ने कुछ परेशानियों के चलते लोगों को बगल के इलाके में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है. पोस्ट में यह नहीं बताया गया है कि यह घटना कहां की है. ब्लॉग में लिखा गया है, "मां को वापस नहीं लाया जा सका और पिता व बच्चे को घेरे से बाहर नहीं जाने दिया जाता."
आर्टिकल के साथ ब्लॉग पर एक वीडियो क्लिप भी अपलोड की गई है जिसमें कुछ लोगों को पुर्तगाली भाषा में बात करते हुए सुना जा सकता है. वीडियो में एक बैनर दिखाई देता है जिसमें पुर्तगाली भाषा में नारा लिखा हुआ है. बैनर पर लिखे टेक्स्ट का हमने गूगल की मदद से अनुवाद किया, जिसका अर्थ हुआ, "यह हमारी असलियत है".
एक "Pinterest " यूजर ने यही तस्वीर इस ब्लॉग का संदर्भ देकर अपलोड की है. 11 मार्च, 2013 को "IndymediaArgentina " नाम की वेबसाइट पर भी अपलोड की गई है. तस्वीर पर पड़ी तारीख से पता चलता है कि यह तस्वीर 12 जनवरी, 2013 को अर्जेंटीना में ली गई है. यही तस्वीर पांच साल पहले एक "Reddit " यूजर ने अपलोड की और लिखा कि अर्जेंटीना सरकार ने कम आय वर्ग के लोगों के लिए एक आवासीय परिसर का निर्माण किया था, लेकिन निर्माण पूरा होने से पहले लोगों ने इमारतों पर कब्जा कर लिया. इस यूजर ने यह भी लिखा कि जब निर्माण कार्य चल रहा था, तब आस-पास की झुग्गी बस्ती के लोगों ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया और वहां अवैध रूप से रहने लगे. इसके बाद पुलिस ने आस पड़ोस के इलाके को सील कर दिया.
इस तरह विभिन्न सोर्स से यह पता चलता है कि यह तस्वीर अर्जेंटीना की है और पुरानी है. इस तरह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस तस्वीर का भारत में डिटेंशन कैंप से कोई लेना देना नहीं है. अगर हमें यह सूचना मिलती है कि यह तस्वीर वास्तव में किस जगह पर खींची गई तो इस लेख को अपडेट कर दिया जाएगा.