हाल ही में इंडोनेशिया के बाली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन को भारत के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है. इस दो-दिवसीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की साल 2020 के बाद पहली बार बातचीत हुई. इसके अलावा, 16 नवंबर को इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने भारत को जी-20 समूह की अध्यक्षता भी सौंपी.
इसी बीच सम्मेलन की एक तस्वीर के जरिए सोशल मीडिया पर कुछ लोग प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कस रहे हैं. ये तस्वीर एक बैठक की है जिसमें फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक समेत अन्य नेता साथ बैठे नजर आ रहे हैं. लेकिन पीएम मोदी इस तस्वीर से गायब हैं. इस बैठक में मोदी की गैरमौजूदगी को लेकर सोशल मीडिया पर काफी हंगामा मचा हुआ है.
एक ट्विटर यूजर ने तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा, "बाइडेन ने G20 में बुलाई emergency meeting - लेकिन तथाकथित विश्वगुरु Modi को बैठक में नहीं बुलाया" वहीं कुछ लोगों ने तंज कसते हुए इस तस्वीर के साथ लिखा, "लगता है विश्वगुरु फोटो खींच रहा है."
इसी तरह के कुछ पोस्ट्स का आर्काइव्ड वर्जन यहां, और यहां देखा जा सकता है.
इंडिया टुडे फैक्ट चेक ने पाया कि जिस मीटिंग की फोटो वायरल है, उसमें नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) और जी-7 देशों के सदस्य देश शामिल हुए थे. भारत न तो नाटो का हिस्सा है और न ही जी-7 का. यही वजह है कि पीएम मोदी इस बैठक में मौजूद नहीं थे. इसलिए इसमें उनकी गैर-मौजूदगी को भारत के लिए अपमान के तौर पर देखना सरासर गलत है.
किस बारे में हुई थी ये बैठक?
हमनें जी-20 सम्मेलन के दौरान हुई इस बैठक के बारे में मीडिया रिपोर्ट पढ़ीं. दरअसल नाटो देश पोलैंड के Przewodow गांव में 15 नवंबर को एक मिसाइल हमला हुआ. ये घटना यूक्रेन के शहरों पर चल रहे रूसी हमलों के बीच हुई थी. गौर करने वाली बात ये है कि पोलिश गांव Przewodow यूक्रेन की सीमा के पास ही है. इसलिए मीटिंग के समय तक ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि रूस ने ही पोलैंड पर हमला किया था.
हमले के बाद नाटो और जी-7 देशों ने मिलकर एक आपातकालीन बैठक बुलाई. इस बैठक में उन सभी देशों की मौजूदगी रही जो इन दोनों गुटों में कम-से-कम किसी एक का हिस्सा हैं और जी-20 सम्मेलन के दौरान बाली में मौजूद थे.
बाली में इस आपातकालीन बैठक के बाद, व्हाइट हाउस और यूरोपीय संघ ने कनाडा, यूरोपियन कमीशन, यूरोपियन काउंसिल, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलैंड, स्पेन, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका के नेताओं की तरफ से एक संयुक्त बयान जारी किया था.
इस बयान में बताया गया है कि आपातकालीन बैठक में पोलैंड के पूर्वी हिस्से में हुए विस्फोट पर चर्चा की गई है और इस मामले की जांच के लिए सभी देश पूरा समर्थन देंगे. साथ ही इस बैठक के दौरान मौजूद नेताओं ने यूक्रेन पर हो रहे हमलों के लिए रूस को जिम्मेदार भी ठहराया है.
गौर करने वाली बात ये है कि रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव जी-20 सम्मेलन में आए थे लेकिन इस बैठक से पहले ही वो बाली से रवाना हो गए. दरअसल यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने समिट के पहले दिन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर हमला बोलते हुए जी-20 को बार-बार जी-19 के नाम से संबोधित किया. इस अपमान के कुछ घंटों बाद ही लावरोव रूस लौट गए.
बैठक में कौन-कौन शामिल हुआ?
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन, इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी, जर्मनी की चांसलर ओलाफ स्कोल्ज, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज, नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रूट, जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा, अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल इस बैठक में शामिल हुए थे.
मोदी बैठक में क्यों नहीं थे?
ये नाटो और जी7 देशों की एक आपातकालीन बैठक थी जिसमें बाली में मौजूद देशों ने हिस्सा लिया था. भारत न तो नाटो का हिस्सा है और न ही जी-7 का. तभी मोदी इस बैठक में मौजूद नहीं थे.
जी-7 के सदस्य देशों में जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, जापान, कनाडा, अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल हैं. यही कारण है कि जापान, जो नाटो का हिस्सा नहीं है, वो बैठक में मौजूद था. वहीं दूसरी तरफ, नाटो के 30 सदस्यों में से कई देश जी-20 का हिस्सा ना होने के कारण इस बैठक में शामिल नहीं हो पाए.
रूस और यूक्रेन पर भारत की स्थिति क्या है?
भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले के मसले पर खुद को विवाद से दूर रखा है और मॉस्को के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों से भी दूर रहा है. हाल ही में 14 नवंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पेश किया था. इसमें
अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने के लिए रूस को जवाबदेह ठहराने की मांग की गई थी. 73 देशों ने इस प्रस्ताव पर वोटिंग करने से दूरी बनाई थी जिनमें भारत भी शामिल था.