Advertisement

बच्चों पर दिखने लगा है जलवायु परिवर्तन का असर, ऐसे करते हैं अपनी भावनाओं को एक्सप्रेस

जलवायु परिवर्तन पर हुई इस स्टडी में दुनियाभर से 10,000 लोगों ने हिस्सा लिया. इनकी उम्र 16 से 25 वर्ष के बीच थी. स्टडी में सामने आए आकड़े बेहद चौंकाने वाले थे. करीब 59% युवाओं और युवा वयस्कों (18 साल से अधिक उम्र वाले युवा) ने बताया कि वो जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के बारे में बहुत या अत्यधिक चिंतित हैं. वहीं 45% से अधिक का कहना था कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के बारे में उनकी भावनाओं ने उनके रोजमर्रा के जीवन और कामकाज को नकारात्मक (-vely) रूप से प्रभावित किया है.

प्रतीकात्मक फोटो. प्रतीकात्मक फोटो.
aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 08 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 1:10 PM IST

जलवायु परिवर्तन पिछले लंबे समय से दुनियाभर के लिए गंभीर मुद्दा बना हुआ है. इसको लेकर दुनियाभर के देशों के बीच तमाम बैठकें हो चुकी हैं और आगे भी जारी रहेंगी. इस बीच 'द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ' में प्रकाशित एक रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात सामने आई है. कारण, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव वातावरण पर ही नहीं, बल्कि युवा पीढ़ी पर भी पड़ता दिख रहा है. इतना ही नहीं, इसके चलते युवाओं के मानसिक सेहत पर भी इसका असर हो रहा है.

Advertisement

दरअसल, हाल ही में हुए कई रिसर्च पर आधारित एक रिपोर्ट 'द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ' में प्रकाशित हुई है. इसके मुताबिक बच्चे और 18 साल से अधिक उम्र के युवा जलवायु परिवर्तन और इससे उनके आसपास होने वालों प्रभावों को लेकर काफी चिंतित हैं. इसके कारण जो घटना देखी जा रही है उसे 'जलवायु चिंता' (climate anxiety) कहा जा रहा है. ऐसे यंग लोग, जो इससे प्रभावित हो रहे हैं या फिर जूझ कर रहे हैं, उन्हें ऐसा लगने लगा है कि उनका कोई भविष्य नहीं है और मानवता (humanity) बर्बाद हो रही है. 

जलवायु परिवर्तन पर हुई इस स्टडी में दुनियाभर से 10,000 लोगों ने हिस्सा लिया. इनकी उम्र 16 से 25 वर्ष के बीच थी. स्टडी में सामने आए आकड़े बेहद चौंकाने वाले थे. करीब 59% युवाओं और युवा वयस्कों (18 साल से अधिक उम्र वाले युवा) ने बताया कि वो जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के बारे में बहुत या अत्यधिक चिंतित हैं. वहीं 45% से अधिक का कहना था कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के बारे में उनकी भावनाओं ने उनके रोजमर्रा के जीवन और कामकाज को नकारात्मक (-vely) रूप से प्रभावित किया है.

Advertisement

स्लैम आउट लाउड (Slam Out Loud) नाम का एक NGO ऐसे ही वंचित तबके के बच्चों के साथ काम करता है, जो जलवायु परिवर्तन का खामियाजा सबसे अधिक भुगतते हैं. साथ ही वो बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त करना भी जानते हैं. स्लैम आउट लाउड की सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिज्ञासा लाब्रू, सीनीयर मैनेजर- मॉनिटरिंग एंड इवैलयूशन रकिश्मा एम और NGO में मैनेजर श्रिया वैद्य जो ने इस बारे में बताया कि वो यहां क्रिएटिविटी के जरिए बच्चों को अपनी बात कहने में मदद करते हैं. इसके लिए वो कविता, कहानी, थिएटर आदि का सहारा लेते हैं. इसका उद्देश्य एक ऐसा पाठ्यक्रम तैयार करना है जो प्रासंगिक तो हो ही साथ ही जिसमें क्लायमेंट एक्शन के लिए सामाजिक और लैंगिक न्याय भी निहित हो.

आजतक के पूछे गए सवाल कि अगर कोई बच्चा जलवायु संबंधित चिंताओं से गुजर रहा है तो इसे माता-पिता या शिक्षक कैसे पहचान सकते हैं? इसके जबाव में उन्होंने बताया कि बच्चे जलवायु संबंधी अपनी चिंता को बोलकर या फिर बिना बोले, दोनों तरीके से व्यक्त करते हैं. जैसे कि कभी-कभी उनके रोजमर्रा के कार्यों में गिल्ट के रूप में बहुत अधिक पानी का उपयोग करना, पसंद न आने वाली चीजों से दूर भागना, यहां तक कि बिजली का भी उपयोग न करना या फिर कार से सफर न करना आदि जैसे बदलाव देखे जा सकते हैं. 

Advertisement

उन्होंने बताया कि ऐसे बच्चे, जो उन इलाकों में रहते हैं जहां जयवायु परिवर्तन के असर का खतरा बना रहता है, जैसे कि बाढ़ आना, उनमें बरसात के समय डर को देखा या फिर महसूस किया जा सकता है. ऐसे बच्चों में कभी-कभार नींद संबंधित समस्या या फिर रोजाना के कार्यों को करने में परेशानी जैसे लक्षण भी देखे जा सकते हैं. ऐसी स्थिति में माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों के डर को समझना और सुनना चाहिए. क्योंकि जलवायु परिवर्तन को लेकर उनकी चिंताएं वास्तविक और व्यावहारिक हैं. ऐसे समय में उन्हें आशा भारी कहानियां या फिर क्लायमेट एक्शन से जुड़े ग्रुप्स में जोड़ा जा सकता है. इनमें से बहुत कुछ यूट्यूब और इंटरनेट पर उपलब्ध है. लेकिन अगर कोई अधिक चिंता वाली बात हो तो एक्सपर्ट्स की मदद लेनी चाहिए.

जब उनसे ये पूछा गया कि क्या ऐसे ऐज रिलेटेड संसाधन या गतिविधियां हैं जो बच्चों को पृथ्वी के बदलाव से जुड़ी उनकी चिंताओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकती है? इसके जवाब में उन्होंने बताया कि ऐसी बहुत सारी गतिविधियां हैं जिनका उपयोग हम स्लैम आउट लाउड में करते हैं. कला का उपयोग करके बातचीत शुरू करने के लिए अपने बच्चे के साथ बैठें और वे दृश्य बनाएं जो हम सभी बच्चों के रूप में बनाते थे. अपने चारों ओर देखें और वास्तविक दुनिया के पेड़ों और जल निकायों एवं दृश्यों में अंतर पर चर्चा करें. 

Advertisement

उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन को अधिक प्रासंगिक बनाएं. अपने पौधे को पहचानें और पता लगाएं कि मनुष्य और जानवर किस प्रकार भावनाओं को समान रूप से व्यक्त करते हैं. इस तरह के कई उपायों से बच्चों को जलवायु परिवर्तन को समझाने, खुद को अभिव्यक्त करने और प्रकृति के साथ उनके संबंध का पता लगाने में मदद मिलती है. जैसे-जैसे बच्चे जलवायु परिवर्तन से संबंधित बातचीत में शामिल होना शुरू करते हैं, उन्हें कई तरह की भावनाओं का अनुभव हो सकता है. इस पर उन्हें काम करना होगा. उन्हें ऐसे युवाओं की कहानियाँ सुनाएं जो जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर मुखर हो. 

क्या ऐसे सफल उदाहरण या केस स्टडी हैं जहां पर्यावरण से जुड़ी पहलों में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले बच्चों ने अपनी emotional well-being में सकारात्मक बदलाव का अनुभव किया हो? इस सवाल के जबाव में उन्होंने बताया कि सामाजिक रूप से भावनात्मक और संज्ञानात्मक कौशल को आपस में जोड़ने को लेकर उनका फोकस कलाइमेट कंटेट पर होता है. वो इसे एक संभावित मार्ग के रूप में देखते हैं जिससे कि हाशिए पर रहने वाले समुदायों से परिवर्तनकारी नेताओं की पहचान करने में मदद मिल सके. 

उदाहरण के लिए हमारे राज्य स्तर के कार्यक्रम में हम बच्चों के साथ जो प्रोग्राम करते हैं, उनमें पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों पर नियंत्रण पाने जैसी चीजें शामिल हैं. इसमें छात्र पंजाब में पराली जलाने से लेकर महाराष्ट्र में डंपिंग ग्राउंड जैसी जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों पर गहराई से विचार करते हैं. जिसके बाद वो इन मुद्दों के आसपास अपनी भावनाओं और चिंताओं को लेकर बातें करते हैं. 

Advertisement

एक वास्तविक कहानी शेयर करते हुए उन्होंने बताया कि पंजाब सरकार के साथ चल रहे हमारे कार्यक्रम में हमारे एक बच्चे ने पराली जलाने के बारे में यह सुंदर कविता लिखी. बच्चा वास्तव में समुदाय के बीच गया और उसने सिविल सेवकों सहित सभी हितधारकों के सामने कविता को सुनाया. ऐसा करने के बाद बच्चे में जो पहला बदलाव आया वह यह था कि कोई महत्वपूर्ण संदेश देने के लिए वो कला का उपयोग करने लगे. दूसरा यह कि उसमें जो असहाय महसूस करने की भावना थी, उसके अंदर इसे लेकर बदलाव आया. उसे ऐसा लगा कि लोगों ने उसकी बातों को सुना. साथ ही उसे यह भी महसूस हुआ कि अगर लोग सुन रहे हैं, तो क्या कहना महत्वपूर्ण है.

स्लैम आउट लाउड का लक्ष्य 2025 तक 20 मिलियन बच्चों तक पहुंचना है. इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए क्या रणनीतियां हैं और आप वैश्विक स्तर पर क्या प्रभाव देखने की उम्मीद करते हैं? इस सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि हम इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अगले दो वर्षों में 7 से 8 राज्य सरकारों के साथ सहयोग करने की उम्मीद करते हैं और अंततः हाई क्वालिटी वाली कला कक्षाओं को सुलभ बनाने के लिए एक राष्ट्रव्यापी ढांचे पर जोर देंगे. ग्लोबल लेबल पर, हम कला आधारित शिक्षा और सामाजिक-भावनात्मक शिक्षा की वकालत करने की उम्मीद करते हैं, न कि इसे केवल एक अच्छा माध्यम बनाना चाहिए. बता दें कि स्लैम आउट लाउड क्लाईमेट राइज (Climate Rise Alliance) अलायंस का एक हिस्सा है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement