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नौकरीपेशा युवाओं पर मंडरा रहा कैंसर का खतरा! डराने वाली है ICMR की ये स्टडी

मेटाबोलिक सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जो 45 वर्ष से कम आयु वालों में मिलने पर उनके 65 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते कैंसर का जोखिम दोगुना बढ़ाती है. आइए जानते हैं ICMR ने कैसे किया अध्ययन.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:33 PM IST

आज के वक्त में नौकरीपेशा युवाओं में मेंटल स्ट्रेस होना आम बात है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि नौकरीपेशा लोगों में कैंसर का खतरा भी मंडरा रहा है. नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अध्ययन में एक तिहाई कर्मचारी मेटाबोलिक सिंड्रोम से ग्रस्त मिले हैं.

क्या है मेटाबोलिक सिंड्रोम?
मेटाबोलिक सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जो 45 वर्ष से कम आयु वाले लोगों में मिलने पर उनके 65 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते कैंसर का जोखिम दोगुना बढ़ाती है. मेटाबॉलिक सिंड्रोम कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक स्थिति है, जिसमें शरीर में रोग के कारण बढ़ जाते हैं. उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा और अनियंत्रित कोलेस्ट्रॉल इन चारों के संयुक्त रूप को मेटाबॉलिक सिंड्रोम कहते हैं. यह हृदय रोगों के अलावा कैंसर, स्ट्रोक जैसी बीमारियों के बढ़ते जोखिम को भी दर्शाता है.

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ICMR ने कैसे किया अध्ययन?
आईसीएमआर के अधीन राष्ट्रीय पोषण संस्थान ने तीन बड़ी आईटी कंपनियों में काम कर रहे युवाओं पर यह अध्ययन किया है, जिसमें लगभग सभी कर्मचारियों की आयु 30 वर्ष से कम थी. जांच में पता चला कि हर दूसरा कर्मचारी या तो अत्यधिक वजन वाला है या फिर पूरी तरह से मोटापा ग्रस्त है. 10 में से छह कर्मचारियों में एचडीएल यानी कोलेस्ट्रॉल का स्तर बहुत मिला, जो सीधे तौर पर भविष्य में दिल से जुड़ी बीमारियों के उभरने की ओर संकेत करता है.

युवाओं में मिलीं कौन सी बीमारियां?
जांच में 44.2 % कर्मचारी अधिक वजन वाले मिले, जबकि 16.85% मोटापा ग्रस्त थे. वहीं, 3.89 फीसदी मधुमेह ग्रस्त और 64.93 फीसदी में कोलेस्ट्रॉल का स्तर काफी बढ़ा हुआ पाया गया. 

क्यों बढ़ रहा कैंसर का खतरा?
अध्ययन के अनुसार, आईटी और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) जैसे क्षेत्रों में सबसे ज्यादा नौकरीपेशा युवा हैं, लेकिन यहां कार्यस्थलों का भोजन और वातावरण उन्हें मोटापा व अस्वस्थ्य माहौल दे रहा है. व्यावसायिक स्वास्थ्य पर बीमारियों और पोषण संबंधी विकारों का प्रभाव शीर्षक से प्रकाशित मेडिकल जर्नल एमडीपीआई में इस अध्ययन को शामिल किया है. 

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