
संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस लखनऊ में अब मरीजों की दिल की पथरी से छुटकारा पाने का नया रास्ता मिल गया है. यह नया रास्ता है लिथोट्रिप्सी मशीन का, इस मशीन से अब तक 20 सफल केस किए जा चुके हैं. इन सभी मरीजों को बिना बायपास सर्जरी के दिल की पथरी से मुक्ति मिली है. आइए जानते हैं किस तकनीक से काम करती है ये मशीन.
अक्सर दिल की नसों में कैल्शियम जमा होने से बंद हो चुकी धमनियां एक तरह की पथरी का रूप ले लेती हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अब इसका सस्ता और बेहतर इलाज मिल रहा है. एसजी पीजीआई लखनऊ में लेटेस्ट लीथोट्रिप्सी मशीन से इसका सफल ट्रीटमेंट शुरू किया जा चुका है. अब तक 20 से ज्यादा मरीजों का इलाज किया गया है.
बता दें कि इस तकनीक से इलाज करने पर बायपास सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती है. कई रिसर्च बताती हैं कि साउथ एशिया में कैल्शीफिकेशन की समस्या पुरुषों में 8.8 और महिलाओं में 3.6 फीसदी पाई जाती है. पीजीआई के कार्डियो लॉजी डिपार्टमेंट के डॉ नवीन गर्ग ने बताया कि कई बार मरीजों में किसी बीमारी या उम्र बढ़ने के साथ कैल्शियम बढ़ने लगता है, यही नहीं उनका पुराना कोलेस्ट्र्रॉल आगे चलकर कैल्शियम बन जाता है.
कई बार हार्ट की धमनियों में कैल्शियम जमा हो जाता है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में दिल की पथरी भी कहते हैं. पहले इसके डायग्नोज होने पर मरीज की बाईपास सर्जरी करनी पड़ती थी. अब एडवांस लिथोट्रिप्सी मशीन की मदद से ऑपरेशन के दौरान कैल्शियम को तोड़ा जाता है. ये एक बहुत छोटी सी मशीन है, जिससे स्टंट लगाते हैं. सबसे पहले बलून पर इसे लगाया जाता है जो हार्ट की आर्टरी में चला जाता है. इसी से जमा कैल्शियम को तोड़ा जाता है.
लिथोट्रिप्सी मशीन कैसे करती है काम
लिथोट्रिप्सी मशीन साइंस की नई तकनीक पर आधारित है. इसके जरिये उच्च दबाव वाली ध्वनि तरंगों को मरीज के शरीर में भेजा जाता है. शॉक वेब (ध्वनि तरंगों) से पथरी पर फोकस किया जाता है, फिर पथरी को तोड़ने के लिए उस पर तरंगों के माध्यम से फोकस किया जाता है. इसके बाद उसकी लोकेशन पर 1 से 2 हजार शॉक वेब के वार किए जाते हैं. ध्वनि तरंगों की चोट से पथरी पाउडर बन जाती है.
जानिए- कितना आता है खर्च
पीजीआई में लीथोट्रिप्सी से ऑपरेशन करने पर ढाई लाख रुपये का खर्च आता है. वही प्राइवेट अस्पताल में इसका खर्च करीब पांच लाख रुपये होता है. संस्थान में अब तक 20 से 25 मरीजों का इस तरह ऑपरेशन किया गया है.
इस उम्र में होती है समस्या
डॉ नवीन गर्ग के अनुसार यह समस्या अधिकतर 70 से 80 वर्ष की उम्र में होती है. हमारे ब्लड में कैल्शियम होता है. ऐसे में चोट या अन्य समस्या होने पर बॉडी सेल्फ डिफेंस में खुद ठीक करने की कोशिश करती है और शरीर में कैल्शियम बढ़ा देती है. धीरे धीरे इसका असर किड़नी पर आता है. साथ ही ये ब्रेन पर भी असर डालता है.