
कविता (बदला हुआ नाम) को हमेशा पेट में तकलीफ रहती है. कभी एसिडिटी और गैस की शिकायत तो उसे चार साल से लगातार रही है. पेट दर्द तो कभी कब्ज की दिक्कत को लेकर वो गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट को दिखा चुकी. खानपान एकदम सादा कर दिया. मिर्च मसाले छोड़ दिए, नियमित वॉक उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया. तमाम जांचों में कोई समस्या नहीं निकली. एसिडिटी की दवाओं का भी असर भी नहीं हुआ.
उसने बताया कि शायद वो बीते आठ नौ सालों से पेट की समस्याओं से परेशान है. पेट दर्द के साथ ही साथ उसे कभी कब्ज और डायरिया भी हो जाता है. उसे ऐसा लगता है, जैसे पेट में बहुत गैस बन रही है. बार-बार डकारें भी आती रहती हैं. उसे कई बार तो लगता है जैसे गैस सिर में चढ़ गई और सिर बहुत भारी हो गया है. इसके कारण ही उसे नींद नहीं आ रही, कभी घबराहट तो कभी अपनों से चिड़चिड़ा जाती है. घर का काम भी पूरे मन से नहीं कर पाती.
कुछ डॉक्टरों ने आइबीएस (इरिटेबल बावेल सिंड्रोम )बताया तो किसी ने एसिडिटी की दवाएं दीं. लेकिन लंबे समय तक घबराहट होने पर उसके पति ने उसे मनोचिकित्सक को दिखाया. डॉक्टर ने काउंसिलिंग से पाया कि उसे सोमेटोफॉर्म डिसऑर्डर (Somatoform Disorder)है. आजकल के खानपान और शहरी लाइफस्टाइल के चलते ज्यादातर लोग एसिडिटी से पीड़ित है. एसिडिटी से गैस और कब्जियत हो जाती है. लेकिन मनोचिकित्सक तो यहां तक कहते हैं कि इस समस्या की जड़ शारीरिक नहीं बल्कि ये पूरी तरह मेंटल डिसऑर्डर है. इसे मनोचिकित्सा की भाषा में सोमेटोफॉर्म डिसऑर्डर कहा जाता है.
क्या है पेट का ब्रेन से कनेक्शन
भोपाल मध्यप्रदेश के जाने माने मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी के अनुसार सोमेटोफॉर्म डिसऑर्डर एक प्रकार का मानसिक रोग है. इसमें शारीरिक बीमारियों की अनुपस्थिति में भी कई बार शरीर में इसके लक्षण बने रहते हैं. ये डिसऑर्डर कई बार व्यक्ति को सूडो पेन और दूसरे सिंप्टम देता हैं. इसके बाद ये सिंप्टम पीड़ित को रोजमर्रा की जिंदगी में नुकसान पहुंचाते हैं. डॉक्टर कहते हैं कि शरीर की हर क्रिया पर हमारे मष्तिष्क का कंट्रोल होता है. ठीक वैसे ही आंतों का भी कंट्रोल हमारे दिमाग के पास है इसे ब्रेन गट एक्सिस भी कहते हैं. इस कनेक्शन का असर ही कई बार हमारे शरीर में गलत प्रतिक्रिया के रूप में आता है जो कि इस डिस ऑर्डर के चलते होता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)के इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज ने आइबीएस का उल्लेख सोमेटोफॉर्म डिसऑर्डर के अंतर्गत किया है. मस्तिष्क-आंतों के बीच तंत्रिका तंत्र में असंतुलन, हाइपोथैलेमस -पिट्यूटरी अक्ष के समन्वय पर प्रभाव, संक्रमण, आंतों के असंतुलित संचालन, आंतरिक अंगों की अतिसंवेदनशीलता, पारिवारिक समस्याओं, मानसिक रोगों की उपस्थिति आदि को प्रमुख कारणों के रूप में देखा गया है.
घबराहट, तनाव और अनिद्रा से आंतों की गति एवं आंतरिक अंगों की संवेदनशीलता प्रभावित होती है. एक शोध के अनुसार आइबीएस के लगभग 60 से 95 प्रतिशत मामलों में कोई अन्य मानसिक रोग भी देखा गया है. कई लोगों में स्वयं को नुकसान पहुंचाने के विचार भी देखे जाते हैं. इसमें प्रत्यक्ष रूप से जांचों, परामर्श और अप्रत्यक्ष रूप से कम उत्पादकता से पूरा परिवार नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है.
इसी के चलते कई बार इस समस्या से पीडि़त अधिकतर लोग गैर-मनोचिकित्सकों के पास परामर्श के लिए जाते रहते हैं. फिर इस बारे में पेशेवर सलाह न मिलने के कारण वे कई बार आजीवन मनोचिकित्सक से परामर्श मिलने से वंचित रह जाते हैं. डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि अगर ये समस्या लगातार तीन चार महीने बनी रहती है तो आपको एक बार मनोचिकित्सक से भी परामर्श जरूर लेनी चाहिए, खासकर जब एसिडिटी और गैस के लक्षणों के साथ घबराहट, अनिद्रा और चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण भी लगातार बने रहते हों.