
वूडी एलन की एक कॉमेडी है हॉलीवुड एंडिंग. उसमें एक डायरेक्टर को अपनी फिल्म की शूटिंग से एक दिन पहले दिखना बंद हो जाता है. अंधेपन में ही वह पूरी फिल्म शूट करता है. रिलीज के दिन घबराया होता है. बचने की कोई उम्मीद नहीं. लेकिन तभी फ्रेंच रिव्यूज आते हैं. उनमें उसे 50 वर्षों का सबसे महान अमेरिकी निर्देशक कहा जाता है.
और वूडी का किरदार राहत की सांस लेते हुए कहता है, ''थैंक गॉड! द फ्रेंच एग्जिस्ट.’’ उसका एजेंट कहता है कि फ्रांस में अच्छे रिव्यूज का अर्थ है यूरोप में भी इसका असर होगा. लिबरल विश्व की इसी राजधानी फ्रांस में 1946 से हो रहा है—''फेस्टिवल दु केन्न. ’’ कान फिल्म फेस्ट. ऑस्कर, टेल्यूराइड, टोरंटो, बर्लिनैल एक तरफ और कान दूसरी तरफ. कला और सिनेमा के चरम दर्शकों का ऐसा छत्ता, जहां मधु भी है और विषबुझा डंक भी.
जहां गिएर्मो डेल टोरो की पैन्स लैबरिंथ को 22 मिनट लंबा विलक्षण स्टैंडिंग ओवेशन मिलता है, और वहीं गेस्पर नो की विचलित करने वाली इर्रिवर्सिबल की स्क्रीनिंग में 250 लोग फिल्म बीच में छोड़कर थियेटर से निकल जाते हैं और 20 लोग बेहोश हो जाते हैं.
फ्रेंच रिविएरा की मनोरम, चित्ताकर्षक भूमि पर इसी कान का 76वां फिल्म महोत्सव चल रहा है 16 से 27 मई तक. भारत की तीन फिल्में यहां प्रदर्शित होने वाली हैं. डायरेक्टर कनु बहल की आगरा, अनुराग कश्यप की केनेडी और अरिबम श्याम शर्मा की मणिपुरी फिल्म इशानू.
इशानू 1991 में कान में प्रदर्शित हुई थी. अब 32 साल बाद इसी फेस्ट के क्लासिक्स सेक्शन में इसे दिखाया जा रहा है. भारत के फिल्म हैरिटेज फाउंडेशन और अन्य लैब्स ने इसे रीस्टोर किया है. यह मणिपुर की एक महिला की कहानी है. बसा बसाया घर है. मां है, पति है और एक बेटी है. एक दिन उसे दौरे-से पड़ने लगते हैं और वह एक स्पिरिचुअल आह्वान की दिशा में खिंची चली जाती है.
आगरा कनु बहल की दूसरी फीचर है. पहली फीचर तितली 2014 में कान के अं सर्तेन रगाद सेक्शन में प्रदर्शित हुई जो परिवार, हिंसा और सर्कुलैरिटी के बारे में थी. दिल्ली का एक झुग्गीनुमा घर. तीन भाई, एक पिता. रात के अंधेरों में लोगों पर हमला करते हैं, कारें लूटते हैं. सबसे छोटा भाई इस सबसे अलग होना चाहता है पर यह आसान नहीं.
शशांक अरोड़ा, रणवीर शौरी और अमित सियाल ने भाइयों के ये रोल किए थे. पिता का रोल खुद कनु के पिता ललित बहल ने यादगार ढंग से किया था. अब आठ बरस बाद कनु आगरा लेकर आए हैं जिसका वर्ल्ड प्रीमियर कान के डायरेक्टर्स फोर्टनाइट में हो रहा है.
फ्रांस रवाना होने से पहले वे एक बातचीत में कहते हैं, ''फिल्में इसलिए नहीं बनाता कि कान में जाना है. लेकिन दुनिया की 6,000-7,000 फिल्मों में से चुनिंदा 60-70 फिल्मों में आपका काम चुना जाता है तो ढांढस बंधता है कि शायद आप सही रास्ते पर हैं.’’
आगरा बुनियादी तौर पर सेक्शुअल रिप्रेशन के बारे में है. एक लड़का है 24-25 साल का. गुरु. घर में पिता अपनी रखैल 'आंटी’ के साथ ऊपर वाली मंजिल पर रहते हैं. नीचे गुरु अपनी मां के साथ रहता है. एक अजीब-सा माहौल है. घर में सेक्शुएलिटी के भूत कुछ ऐसे घूम रहे हैं जिसके बारे में कोई भी बात करना नहीं चाहता.
वह लड़का थोड़े पागलपन भरे तरीके से इस बारे में बोलने की कोशिश करता है. काफी चीजें वह ऐसी कर जाता है जो नृशंस और अस्वीकार्य होती हैं. तितली की तरह आगरा में भी कनु की आत्मकथात्मकता कहीं न कहीं है. वे कहते हैं, ''मैं बड़ा हो रहा था तो 15 से लेकर 25-26 की उम्र तक मुझे एक तरह का सेक्शुअल रिप्रेशन महसूस हुआ.
मैं जिंदगी के इस खास पहलू के बारे में किसी से बात नहीं कर पा रहा था. आस-पास भी बहुत ऐसे केसेज देखे थे. मुझे इस फिल्म को यूं बनाना था कि यह इस लार्जर प्रॉब्लम को दिखलाए.’’ अपनी फिल्मों के लिए असाधारण रिसर्च करने वाले कनु ने आगरा के लिए बहुत सारा टाइम सेक्स चैट रूम्स में बिताया. ''मैं वहां जाकर एक काल्पनिक इनसान की तरह पोज करता था, कभी कभी एक महिला बनकर भी.’’
फिल्म में मोहित अग्रवाल, प्रियंका बोस (लॉयन, एलएसडी), विभा छिब्बर और सोनल झा प्रमुख भूमिकाओं में हैं. एक सुस्वादु नाम राहुल रॉय का है. बस इक सनम चाहिए आशिकी के लिए (1990) वाले. यह उनके जीवन का उलटबांसी रोल है. उन्होंने गुरु के पिता 'डैडी’ का रोल किया है जो एक सीरियल वुमनाइजर है.
उन्हें लेने की वजह कनु बताते हैं, ''हमें ऐसा ऐक्टर चाहिए था जिसमें थोड़ी डेबोनेयर, आकर्षक क्वालिटी भी हो. और ऐसा भी हो जो एक पेट्रियार्क के पतन, क्षरण को दर्शा सके. राहुल ने अपने जीवन में ये दोनों चीजें अनुभव की हैं.’’
कान-2023 में अनुराग कश्यप की केनेडी भी प्रीमियर हो रही है, मिडनाइट स्क्रीनिंग्स सेक्शन में. यह एक ऐसे एक्स-कॉप की कहानी है जिसे रात को नींद नहीं आती. सबको लगता है वह मर चुका है पर वह जिंदा है और उसी करप्ट सिस्टम में आज भी काम कर रहा है. उसे मोक्ष की तलाश है.
राहुल भट्ट और सनी लियोनी इसमें मुख्य भूमकाओं में दिखेंगे. अनुराग के मुताबिक, यह पुलिस+नुवार यानी पोलर जॉनर की फिल्म है. इसका म्युजिक खासा एक्सपेरिमेंटल है जिसमें रैपर राघव, आमिर अजीज और चायकोवस्की का हाथ है. वेस्टर्न क्लासिक के एलिमेंट्स के लिए अनुराग फिल्म लेकर प्राग गए और वहीं बैकग्राउंड स्कोर वगैरह रेकॉर्ड हुआ.
लेकिन अब तक अमूमन डांस और देह प्रदर्शन के लिए इस्तेमाल होती आईं सनी लियोनी अनुराग की फिल्म में कैसे? डायरेक्टर के ही शब्दों में, ''एक रोल था जिसके लिए उन्होंने बाकायदा आकर ऑडिशन दिया. मेरा दावा है कि दर्शक उन्हें पहली बार ऐक्टिंग करते हुए देखेंगे.’’
फिल्म कान में ले जाने के पीछे अनुराग का तर्क है कि इंडिया में फिल्मों का पैटर्न फिक्स-सा है. नई तरह की फिल्मों के लिए गुंजाइश नहीं रहती. लेकिन कान में नए आइडियाज को स्वीकारा जाता है. उन पर चर्चा होती है, नई ऑडियंस तैयार होती है और मार्केट भी बढ़ता है. कनु बहल को अनुराग नए किस्म की एक ऐसी सशक्त आवाज मानते हैं जो इंडियन ऑडियंस को नए सिरे से समझ रहा है.
कनु भी बताते हैं, ''अनुराग दूसरों के काम में भी खुद को उतना ही इन्वेस्ट करते हैं, देखते हैं, फीडबैक देते हैं. आगरा में भी उनका फीडबैक बेहद कीमती रहा है. कान में निश्चित रूप से मैं उनकी केनेडी सबसे पहले देखने के लिए लाइन में खड़ा होऊंगा. मैं बड़ा क्यूरियस हूं यह देखने को कि इस बार उन्होंने क्या किया है, क्या फिल्म बनाई है.’’
आगरा सेक्शुअल रिप्रेशन के बारे में है जबकि केनेडी एक ऐसे एक्स-कॉप की कहानी है जो सबकी नजर में मर चुका है पर वह जिंदा है. उसे मोक्ष की तलाश है.
—गजेंद्र सिंह भाटी