
भाजपा से लोकसभा के सांसद रहे होने के बावजूद पोलिटिकली करेक्ट बातें करना खांटी अभिनेता परेश रावल का स्वभाव नहीं बन सका है. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के चेयरमैन के रूप में पिछले डेढ़ साल से वे देश में नाट्य कला के इस शीर्ष संस्थान में कुछ बुनियादी बदलाव लाने की जद्दोजहद में लगे हैं. इस दौरान विद्यालय के बारे में किए गए अपने ऑब्जर्वेशन और अपनी कुछ योजनाएं उन्होंने एसोसिएट एडिटर शिवकेश से साझा कीं:
परेश जी, 2003 में जब आप अपने थिएटर ग्रुप अंगिकम का पहला हिंदी नाटक शादी@बर्बादी लेकर दिल्ली आए थे तो आपने कहा था कि दिल्ली आते वक्त एक आदर और सम्मान का भाव रहता है कि यहां पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय है. अब आप उस एनएसडी को चलाने वाली सोसाइटी के मुखिया यानी उसके चेयरमैन हैं. इस प्रीमियर थिएटर इंस्टीट्यूशन को आपने भीतर से देख लिया है. अब आपकी उस संस्था के बारे में क्या राय बनी है?
(हंसते हुए) मैं आपका सवाल समझ गया...कि 2003 का आदर अभी भी बरकरार है कि नहीं. अब नजदीक से देखने पर लगता है कि इसकी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पा रहा. काम करने का रवैया भी कभी सामंती, कभी मनमर्जीपन, कभी सुस्ती वाला. मैं चाहता हूं कि अपने रहते यह सब टाइट कर सकूं. जो लोग सोचते हैं कि चेयरमैन होने के नाते ये रोजमर्रा के कामकाज में क्यों दखल देते हैं, वे भूल जाते हैं कि मैं 1972 से प्रोफेशनल थिएटर कर रहा हूं.
मुझे पता है एक नाटक में क्या लगता है, कैसे प्रोडक्शन किए जाते हैं. हम दुनिया भर में भटके हुए हैं. 50-50 दिन मैंने अमेरिका जैसे देशों में 55 जगह पर शो किए हैं. हमको पता है भइया! उस आदमी के नजरिए का, तजुर्बे का फायदा उठाना चाहिए. लेकिन अब किसी को लगे कि ये चेयरमैन है, नईं. चेयरमैन होने के नाते मेरा हक तो बनता है और मुझे शौक भी है. क्यूं इतना खर्चा करते हैं? पिछले दिनों दिनेश खन्ना जी ने खूब लड़ी मर्दानी नाम का ड्रामा किया, 37 लाख रुपए में. एक शो हुआ.
ये जो अय्याशी है, ये जो नवाबी है, ये जो बिल्कुल वेस्टेज है, ये कैसे चलेगा यार! थिएटर की पहली और सबसे बड़ी जरूरत है टेक्स्ट और ऐक्टर. मुझे लगता है कि ज्यादा पैसा आने पर कल्पनाशीलता थोड़ी कुंठित हो जाती है. लिमिटेड रिसोर्सेज में आप जादू करके दिखाओ कल्पनाशीलता का.
एनएसडी के पास 15,000 घंटों का वर्ल्ड क्लास मैटीरियल पड़ा है. इसका डिजिटाइजेशन करने को कहा है. दुनिया के बाकी के थिएटर (संस्थानों) से जुड़ के उससे अपना ओटीटी प्लेटफॉर्म बना सकते हैं. डिजिटाइजेशन के बहाने हम इसको मेंटेन भी कर सकते हैं और आने वाली फ्रैटर्निटी के लिए यह रेफरेंस के तौर पर आगे चलता ही रहेगा.
एनएसडी को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान वाला दर्जा दिलाने के मोर्चे पर आप कहां तक बढ़े हैं?
हम लगातार इस पर जोर लगाए हुए हैं. बहुत जल्द उसका नतीजा आएगा.
आपने एनएसडी रेपर्टरी के किसी नाटक में अभिनय के लिए अपनी सहमति दी है. उस बारे में कितने गंभीर हैं आप?
मैंने अभिनय की कभी फॉर्मल ट्रेनिंग ली नहीं. मैं तो मुंबई में अच्छे-अच्छे कलाकारों को देखकर सीखता रहा हूं. एनएसडी आया तो देखा कि कितना सब कुछ हो सकता है! मुझे अफसोस भी हुआ कि यहां पहले आना चाहिए था. तो कम से कम अब किसी अच्छे डायरेक्टर के हाथ के नीचे रेपर्टरी के एक प्ले में काम कर लूं. रेपर्टरी को फायदा हो न हो, मुझे तो ऐज एन ऐक्टर फायदा होगा ही.
दूसरी बात, यहां से ट्रेनिंग लेकर ऐक्टर होके जाने वालों का भी एक पेबैक टाइम होना चाहिए. जिस संस्था ने आपको मां की तरह तीन साल संभाला, निखारा. अगर मैं गलत नहीं कह रहा हूं तो एक-एक छात्र पर औसतन ढाई-तीन करोड़ रुपए सालाना.
आप 50 साल से अभिनय में हैं. थिएटर और सिनेमा दोनों ही जमीन पर आपके पांव बराबरी से जमे हैं. आपने एनएसडी में स्टुडेंट्स की क्लास लेने के बारे में नहीं सोचा? इसे आप इस संदर्भ में रखकर देखें कि हर बैच में आने वाले 26 छात्रों में से 18-20 अभिनय को चुनते हैं. और अभी एनएसडी में शिक्षकों के कुल 17 पदों में से 10 खाली हैं. सात में से दो ही पूरी तरह से अभिनय के शिक्षक हैं. इसी बहाने से सही, छात्रों को आपके अनुभव का लाभ मिल सकता है.
आप यह बात कर रहे हैं! सिलैबस नहीं है एनएसडी का. इसमें प्लेराइटिंग (नाट्यलेखन) का कोर्स नहीं है. (हंसते हैं). स्टुडेंट्स के साथ तजुर्बा साझा कर सकता हूं, पर मेरी दिक्कत है कि मैं सीखा नहीं हूं, कोई फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली है मैंने. मैं स्टुडेंट्स के सामने उसका ब्लूप्रिंट निकालकर वैसे नहीं रख सकता. मुझे लगता है, मैं सिखाने में सक्षम नहीं हूं. हां, बैठके कोई पूछे कि ये कैसे करें तो बता सकता हूं क्योंकि वो मेरा ही तजुर्बा है. मेरी बरकत है.
एनएसडी को लगातार प्रभारी निदेशकों से काम चलाना पड़ रहा है. नया स्थायी निदेशक कब मिलेगा?
मामला बीच में अदालत में चला गया था. अभी अस्थायी तौर पर प्रो. रमेशचंद्र गौड़ जी हैं, हाइली लर्नेड हैं पर पहले दिन से मेरा सवाल रहा है कि डायरेक्टर की पोस्ट को प्रशासन के साथ जोड़ना नहीं चाहिए. सचिन तेंडुलकर को बैटिंग कोच के लिए बुलाऊं और बाद में बीसीसीआइ के अकाउंट भी करवाऊं तो ये कैसे होगा! इसको अलग कर देना चाहिए. इसके पीछे क्या मंशा है समझ नहीं आता.
वैसे जून तक हमें नया डायरेक्टर बिठा देना पड़ेगा. आइ नो कि उसकी प्रोसेस बहुत लंबी है. लेकिन प्रक्रिया तेज करने के बारे में हम काफी कुछ कर चुके हैं.
एनएसडी एंप्लाइज यूनियन की विद्यालय में आपके स्टाफ को लेकर शिकायत रही है कि आपको बताए बगैर यहां आपके नाम पर काम कराए जाते हैं.
उन लोगों की शिकायत है जिनको तकलीफ होती है. हम पेपर के बहुत पक्के हैं. गलत काम न करेंगे, न करने देंगे. मुझे अंदर से बाहर तक सारे नियम-कानून पता हैं. मैं यहां मेरे नाम पर धब्बा लगाने के लिए नहीं आया हूं. मुझे पता है एक नाटक के इंटरवल में कितनी चाय आती है, सेट में कितनी कीलें लगती हैं. आप मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते.
आप अपने ग्रुप का अगला प्ले कब और कौन-सा कर रहे हैं?
अक्तूबर या नवंबर में मैं शुरू करूंगा. गुजराती में, फिर उसका हिंदी होगा. नाम है काबरचितरा (चितकबरा).
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