
4 जुलाई 2019. लोकसभा के मॉनसून सत्र की कार्यवाही चल रही थी. तब संगरूर से आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान शून्यकाल में अपनी बात कहने के लिए खड़े हुए. उन्होंने भारतीय दूतावासों में कथित भ्रष्टाचार के मामले पर बोलना शुरू किया. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उन्हें बीच में ही टोक दिया. कहा, ''माननीय सदस्य बैठ जाइए. अगर आप जीरो आवर में दिए गए विषय को बदलना चाहते हैं तो मुझसे अनुमति लें. आपने विषय दिया था—पंजाब में शिक्षकों की सैलरी और डेप्युटेशन. मैं पढ़ा-लिखा सभापति हूं.’’
सियासत में कुछ लोग संयोग के चलते आते हैं. कुछ को राजनीति विरासत में मिलती है. लेकिन ओम बिरला का मामला अलहदा है. वे बचपन से राजनेता बनना चाहते थे. बिरला अपनी स्कूली शिक्षा के समय से ही छात्र राजनीति में सक्रिय थे. यह 1970 के आसपास की बात होगी, तब राजस्थान के स्कूलों में भी छात्रसंघ के चुनाव होते थे और ओम बिरला कोटा के गुमानपुरा के बहुउद्देशीय विद्यालय में अध्यक्ष चुने गए थे. उन्होंने बारहवीं तक की पढ़ाई विज्ञान और गणित के साथ की, लेकिन ग्रेजुएशन में विषय बदलकर कॉमर्स कर लिया. वजह गणित या विज्ञान में अरुचि नहीं, राजनीति में रुचि थी.
कोटा गवर्नमेंट कॉलेज उन दिनों कोटा का सबसे बड़ा कॉलेज था और छात्र राजनीति का गढ़ भी. यहां पहले से स्थापित नेता थे. किसी नए छात्र नेता के लिए जगह बनाना बड़ी चुनौती था. ओम बिरला ने आसान रास्ता अपनाया. बी. कॉम. में दाखिला ले लिया. कोटा कॉमर्स कॉलेज में गवर्नमेंट कॉलेज जैसी प्रतियोगिता नहीं थी. ओम बिरला यहां से अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़े, हालांकि वे यह चुनाव महज दो वोट से हार गए.
आपातकाल के दौर में छात्र राजनीति में सक्रिय रहे ओम बिरला ने सियासत में कई मुकाम देखे हैं. वे 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष हैं. सामान्य तौर पर इस पद पर सदन के वरिष्ठ सदस्य देखे गए हैं. मसलन, सुमित्रा महाजन या सोमनाथ चटर्जी ने अध्यक्ष बनने से पहले दो दशक से ज्यादा समय सदन में गुजारा था. लेकिन ओम बिरला को अपने दूसरे ही कार्यकाल में लोकसभा का अध्यक्ष बनने का अवसर मिला.
अध्यक्ष के तौर पर सदन की कार्यवाही चलाने के अलावा वे लोकसभा को आम जनता से जोड़ने के प्रयास भी कर रहे हैं. डिजिटल दौर में लोकसभा के दस्तावेजों का डिजिटलीकरण उनकी महत्वाकांक्षी परियोजना है ताकि यह आम जनता तक पहुंच सके. इसके अलावा उनकी पहल पर युवाओं और छात्रों में संविधान के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए 'संविधान को जानें’ अभियान का आयोजन भी हो रहा है. ओम बिरला नए संसद भवन को लेकर काफी उत्साहित हैं. उन्होंने अगला शीतकालीन सत्र नए संसद भवन में करवाने का लक्ष्य रखा है.
बीते 17 जून को बतौर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने तीन साल पूरे कर लिए हैं. इस मौके पर उन्होंने अपने राजनीतिक सफर, कार्यकाल और लोकसभा को जनता से जोड़ने की योजना जैसे विषयों पर इंडिया टुडे के संपादक सौरभ द्विवेदी और विशेष संवाददाता विनय सुल्तान से खास बातचीत की. इस बातचीत के प्रमुख अंश:
जानकार बताते हैं कि ओम बिरला अब बहुत शांत हैं, लेकिन जवानी के दिनों में बहुत उग्र नेता हुआ करते थे.
नहीं, उग्रता ऐसी नहीं होती थी कि किसी क्रिमिनल प्रोसेस से गुजरे हों. राजनैतिक रूप से जहां आक्रोश का प्रश्न उठता था तो विद्यार्थी जीवन में कभी-कभी आक्रोशित भी होना पड़ता था. जहां विद्यार्थियों या गरीबों के साथ अन्याय होता था तो न्याय की लड़ाई भी लड़नी पड़ती थी.
आप एक राजनैतिक दल के सदस्य हैं, ऐसे में बतौर लोकसभा अध्यक्ष कोई फैसला लेते वक्त एक संशय तो होता होगा कि अपनी ही पार्टी के लोगों को बुरा न लग जाए.
एक वकील, सुप्रीम कोर्ट का जज बनता है, चीफ जस्टिस बनता है. उसने कभी न कभी किसी क्लाइंट के पक्ष में भी सुनवाई की होगी, मुखालफत भी की होगी. तो अगर व्यक्ति पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर किसी सदन की कुर्सी पर या न्याय की कुर्सी पर बैठा है, तो उस समय उसका किया हुआ न्याय, देश के साथ न्याय नहीं होगा. लोकसभा का सीधा प्रसारण देश-दुनिया देखती है. अगर आप आसन पर बैठकर निष्पक्षता से सबको साथ लेकर कार्य नहीं करेंगे तो आप सदन नहीं चला सकते.यह आसन की गरिमा है, व्यक्ति की नहीं. जिन्होंने मेरे लिए फैसला किया है, वे भी हमेशा अपेक्षा रखते हैं कि आसन निष्पक्ष रहे.
जब राजस्थान में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की फेहरिस्त बनती है तो उसमें आपका भी नाम आता है. जयपुर जाना चाहेंगे?
मैं अभी किसी दावेदारी में नहीं हूं. अभी लोकसभा अध्यक्ष हूं, संवैधानिक पद पर हूं और इसकी मर्यादा समझता हूं. मैं दल से ऊपर उठकर सबको साथ लेकर निष्पक्ष रूप से सदन चलाऊं, यह मेरी जिम्मेदारी है.
बीते साल शिमला में पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में आपने विधानमंडलों में कानूनों पर चर्चा और बैठकों की संख्या में कमी आने पर चिंता जताई थी. जरा इस बारे में बताइए.
2001 में जब माननीय बाल योगी जी स्पीकर हुआ करते थे, उस समय उन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्रियों, संसदीय कार्य मंत्रियों, सभी दलों के नेताओं से डिसिप्लिन डेकोरम पर एक व्यापक चर्चा की थी. उस समय भी यही मुद्दा था कि सदनों का अनुशासन कम होता जा रहा है. और उसके पहले भी सदन में घटती बैठकों और सदन के अंदर चर्चा, संवाद की कमी को लेकर कई बार चिंता व्यक्त की गई थी.
शिमला में चर्चा के दौरान वर्तमान परिप्रेक्ष्य की जो आवश्यकता है, उसे लेकर कुछ विषय निकलकर आए. इनको आगे बढ़ाने की जरूरत है ताकि सभी पीठासीन अधिकारी, जो चाहे राज्यों के हों या देश के, मिलकर इन लोकतांत्रिक संस्थाओं को सशक्त कर सकें, जनता के प्रति जवाबदेह बना सकें और जिससे प्रशासन में पारदर्शिता आए.
हमारे यहां संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था है. माननीय सदस्यों के माध्यम से सदन चलाने की कार्ययोजना बनी थी. इसलिए यह भी चिंता हुई कि हमारे चुने हुए व्यक्तियों के आचरण और व्यवहार पर भी चर्चा होनी चाहिए. उनके आचरण और व्यवहार से ही सदन चलता है. मुझे लगता है कि हम चर्चा और संवाद से लोकतंत्र को सशक्त कर पाएंगे.
लोकसभा में बहुत समृद्ध पुस्तकालय है, ज्ञान का विपुल भंडार है, लेकिन आम लोगों तक उसकी पहुंच नहीं है. यह कैसे हो सकता है?
लोकसभा देश की 130 करोड़ जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली सभा है. लोकसभा में होने वाली चर्चा से हमारे देश की जनता सीधी जुड़ी रहे इसलिए माननीय प्रधानमंत्री जी ने 'एक देश, एक विधायी’ प्लेटफॉर्म की बात की थी. हम उस दिशा में काम कर रहे हैं ताकि हमारे देश में केंद्र और राज्यों की जितनी भी विधायी संस्थाएं हैं, उनकी कार्रवाई, उनकी बहसें, उनके बजट, सभी एक मंच पर आ सकें.
2023 तक हम इसे पूरा कर लेंगे. लेकिन उसके पहले हमारे देश में आजादी के बाद सदन में जो भी चर्चाएं हुई हैं, हम उन सभी का डिजिटाइजेशन कर रहे हैं. दिसंबर, 2022 से किसी भी विषय के नाम से, वर्ष से उस चर्चा को खोजकर देख सकेंगे. उसी तरीके से हमने पुस्तकालय की सभी किताबों के डिजिटाइजेशन का काम शुरू कर दिया है.
देश की नौजवान पीढ़ी को लोकसभा और हमारी संसदीय परंपराओं से जोड़ने के लिए क्या योजना है?
हमारा युवा लोकतंत्र में सक्रिय भागीदारी निभा सकें, इसके लिए हमने व्यापक अभियान शुरू किया है, हालांकि कोविड के दौरान हमारा अभियान नहीं चला. इसी तरह जो हमारे महान नेता रहे, स्वतंत्रता सेनानी रहे, उन पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित होगी, चर्चा कराएंगे, ताकि देश की जनता उन्हें जाने.
इसके अलावा हम स्कूल और विश्वविद्यालयों के साथ भी संपर्क कर रहे हैं. हम छात्रसंघ के प्रतिनिधियों और स्कूल के छात्रों को लोकसभा के साथ जोड़ना चाहते हैं. वे यहां आएं. लोकसभा के समृद्ध इतिहास, हमारी संसदीय परंपराओं से वाकिफ हों ताकि कल को अच्छे नागरिक, अच्छे राजनेता बनें.
नए संसद भवन का काम कहां तक पहुंचा?
नए संसद भवन का निर्माण चल रहा है. माननीय प्रधानमंत्री जी ने जब उसका शिलान्यास किया था तो यह भी जिम्मेदारी दी थी कि 2022 तक निर्माण पूरा हो जाए. मुझे आशा है कि नवंबर-दिसंबर में शीतकालीन सत्र नए संसद भवन में होगा.
बतौर लोकसभा अध्यक्ष आपको तीन वर्ष हो गए हैं. आपको सबसे ज्यादा संतुष्टि किस काम को लेकर होती है?
मुझे लगता है कि सदन के अंदर जो नए सदस्य हैं, महिला सदस्य हैं, आदिवासी इलाकों से आए सदस्य हैं, वे सदन के माध्यम से अपने क्षेत्र के मुद्दे उठाते हैं. जिससे उनके क्षेत्र में विकास कार्य हुए हैं. कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर पहली बार चुनकर आए सदस्यों को मौका मिला है. पहले वरिष्ठ सदस्य ही ज्यादातर समय बिल पर बोलते रहे हैं. मैंने नए सदस्यों को उनकी पार्टी की तरफ से नाम न देने के बावजूद भी बोलने का मौका दिया है.
‘‘हमारे देश में आजादी के बाद सदन में जो भी चर्चाएं हुई हैं, हम उन सभी का डिजिटाइजेशन कर रहे हैं, उसे मेटा डेटा पर डालेंगे. दिसंबर, 2022 से किसी भी विषय के नाम से, वर्ष से उस चर्चा को खोजकर लोग उसे देख पाएंगे.’’