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हां, मैं सरकार पर दबाव डालती रहती हूं: मार्गरेट अल्वा

चुनाव में टिकटों की बिक्री के मामले पर कभी कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ मोर्चा खोल चुकीं मार्गरेट अल्वा अब राजस्थान की राज्यपाल हैं. उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंशः

रोहित परिहार
  • जयपुर,
  • 23 जुलाई 2013,
  • अपडेटेड 11:45 AM IST

क्या आप अलग तरह की राज्यपाल नहीं हैं?
राज्यपाल की पारंपरिक भूमिका बदलने की जरूरत है. राज्यपाल ऐसा होना चाहिए जिससे लोग अपनी बात कह सकें और वह उनकी शिकायतों पर गौर करें.

सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त बांटने जैसे चुनावी वादों पर रोक लगाने पर जोर दिया है.
अगर पैसे की ताकत से चुनावों का फैसला होगा तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे की बात है. पैसे की ताकत से चुनाव में हार-जीत का फैसला नहीं होना चाहिए. नगद पैसा गरीब महिलाओं के हाथ में नहीं जाता है. उनके पति उन पैसों को हड़प लेते हैं और उनसे शराब खरीदते हैं. इसीलिए महिलाएं अकसर नगद पैसे दिए जाने का विरोध करती हैं.

एक बार कर्नाटक में टिकटों की बिक्री के मामले पर सोनिया गांधी से आपकी अनबन हो गई थी, जिसके कारण आपको सक्रिय राजनीति से हटना पड़ा.
नो कमेंट.

क्या 11 पन्नों के उस पत्र को कभी सार्वजनिक करेंगी, जिसे आपने पार्टी का महासचिव पद छोड़ते समय सोनिया गांधी को लिखा था.
हां, इसका हर शब्द चार खंडों वाली मेरी आत्मकथा में मिलेगा. मैं अभी राजीव जी के साथ वाले वर्षों तक पहुंची हूं.

राजभवन में आपने जनजातीय प्रकोष्ठ बनाया है. क्या इससे सरकार में लोग नाराज नहीं हैं.
हां, इससे बहुतों को नाराजगी हुई है, लेकिन यह  मेरा शौक या हस्तक्षेप नहीं, बल्कि पांचवीं अनुसूची के तहत राज्यपाल का अधिकार है. मैं मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधी नहीं हूं.

आपको अब राज्य के विश्वविद्यालयों में काफी अधिकार मिल गए हैं.
मैंने देखा कि दूसरे राज्यों के मुकाबले यहां कुलाधिपति के रूप में राज्यपालों की भूमिका बहुत सीमित है. इसलिए मैंने कानून में संशोधन कराया ताकि कुलपतियों की नियुक्ति और कर्मचारियों की शिकायतों के समाधान में राज्यपाल का पूरा अधिकार हो.

आपने लड़कियों के छात्रावास में महिला रसोइया, महिला गार्ड और महिला वार्डन नियुक्त किए जाने की मांग की है.
लड़कियों के हॉस्टल में पुरुष स्टाफ देखकर मैं चकित थी. वहां लड़कियों के लिए शौचालय भी नहीं थे. मुझे लगा कि लड़कियों के साथ कभी भी कोई घटना हो सकती है. और जल्दी ही पुरुष कर्मचारियों द्वारा लड़कियों के साथ बलात्कार और शोषण की घटनाएं सामने आ गईं. हां, मैं सरकार पर दबाव डालती रहती हूं.

आपने उदयपुर में झीलों की बदहाली पर चिंता जताकर सरकार को शर्मिंदा किया था.
हां, मैंने उदयपुर की झीलों का मामला उठाया था, लेकिन साथ ही बंगलुरु में भी झीलों के गायब होने की बात कही थी. मैंने कहा था कि किस तरह बिल्डर माफिया और प्रशासन इसके पीछे हैं. मैंने नागरिकों को भी जिम्मेदार बताया था.

क्या आपको सरकार की कलई खोलने में मजा आता है. एक बार आपने जयपुर में नवनिर्मित घाट की गूणी सुरंग का मुआयना करके उसकी खामियां बताई थीं?
मैं घाट की गूणी देखने तब गई थी, जब सोनिया गांधी जनवरी में इसका उद्घाटन करने के लिए आने वाली थीं. लेकिन कुछ अधिकारियों ने उसकी बहुत सुंदर तस्वीर पेश की. अप्रैल में वहां एक दुर्घटना में एक महिला की मौत हो गई तो पता चला कि इमर्जेंसी के समय वहां बचाव की कोई व्यवस्था नहीं थी.

अप्रैल में आपने सांगानेर के दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया था.
मैंने अपने दौरे को गुप्त रखा. मुझे यह जानकर बहुत तकलीफ हुई कि पार्किंग जैसे मामूली से मुद्दे पर दंगा भड़क गया था और पर्यावरण प्रेमी कांग्रेसी नेता निशाना बन गए थे.

पिछले साल अगस्त में बाढ़ प्रभावित इलाकों का भी दौरा करने गईं, जिसके बाद गहलोत की अनिच्छा के बावजूद सोनिया गांधी ने भी वहां का दौरा किया.
मैंने देखा कि वहां की हालत बहुत खराब थी. बच्चे तीन दिन से भीगे कपड़े भी नहीं बदल पा रहे थे. मेरे दौरे से प्रशासन ने उस पर ध्यान दिया.

सरकार अपना काम करती है. फिर आप क्यों दखलंदाजी करती हैं.
मैं कलेक्टरों से भी बात करती हूं और उनसे काम कराती हूं. आपदा के समय प्रशासन की ढिलाई पर मुझे बहुत दुख होता है.

वसुंधरा राजे को गले लगाना गहलोत समर्थकों को अच्छा नहीं लगा था.
अगर मैं गहलोत को गले लगाती तो कितना हंगामा खड़ा होता?

क्या आप सक्रिय राजनीति में लौटना चाहती हैं?
मुझे  सक्रिय राजनीति अच्छी लगती है. जब मैं अपने शहर बंगलुरू में होती हूं तो सौ-दो सौ लोग मुझ्से मिलते रहते हैं. मैं 1969 से राजनीति में हूं.

क्या आप सत्ता में महिलाओं की स्थिति से संतुष्ट हैं?
हममें से कुछ महिलाएं बहुत ऊंचे मुकाम तक पहुंच गई हैं, लेकिन वे मुकाम बर्फीली चोटियों की तरह सिर्फ चमकते भर हैं. पुरुष प्रधान समाज में अब भी उनकी राय को अहमियत नहीं दी जाती है.

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