
डॉ. अमिताभ भारद्वाज, 49 वर्ष
डॉक्टर, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी, पटना
उनके पिता को 39 वर्ष की उम्र में दिल का दौरा पड़ा था, इसलिए डॉ. अमिताभ भारद्वाज जानते थे कि वे भी दिल की बीमारियों के जोखिम से घिरे हैं. मगर तनाव और काम के चलते वे कभी दिल के अनुकूल जीवनशैली अपना ही नहीं पाए.
पटना में इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी के 49 वर्षीय डॉक्टर कहते हैं, ''मैं अक्सर अपनी डेस्क से चिपका रहता और कुर्सी तभी छोड़ता जब मरीजों को देखने जाना पड़ता और फिर फौरन डेस्क पर लौट आता. मुझे बहुत ज्यादा मानसिक तनाव भी था जो मेरी नौकरी और निजी जिंदगी से पैदा हुआ था.’’
आखिर मई 2016 में वे अपनी जीवनशैली के शिकार हो गए. डॉ. अमिताभ उस वक्त 43 बरस के थे और एक साथी से मिलने गए थे. उस दिन एलीवेटर काम नहीं कर रहा था और डॉ. अमिताभ को छठवें माले पर स्थित अपार्टमेंट के लिए सीढ़ियों से जाना पड़ा. जब वे पांचवें माले पर पहुंचे तो अचानक सांस फूलने और सीने में तेज दर्द से वहीं गिर पड़े.
बिल्डिंग के बाशिंदे उन्हें एक बिस्तर पर ले गए और यह एहसास होते ही कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है, डॉ. अमिताभ ने फौरन मोनोनाइट्रेट टैबलेट ले ली, जो आम तौर पर सीने के दर्द से राहत और बंद धमनियों को खोलने के लिए ली जाती है.
वे कहते हैं, ''फिर मुझे फौरन अस्पताल ले जाया गया जहां एंजियोग्राफी से मेरी दाहिनी धमनी में ब्लॉकेज का पता चला. मुझे इमरजेंसी एंजियोप्लास्टी करवानी पड़ी और मैं छह दिन आइसीयू में रहा.’’
महीने भर आराम के बाद सेहत और जिंदगी के प्रति उनका नजरिया बदल गया. उन्हें रोज सात टैबलेट लेनी पड़ती है, पर उन्होंने आलू, चावल, शक्कर और तली हुई चीजों से तौबा कर ली और रोटी के साथ फल और हरी सब्जियां खाने लगे हैं. वे हर रोज घूमने भी जाते हैं. उन्होंने तनाव कम से कम कर लिया है. वे कहते हैं, ''अब मैं ज्यादा जिम्मेदार शख्स हूं—खुद अपने और दूसरों के प्रति भी.’’
—अमिताभ श्रीवास्तव.