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भाजपा ने चला आरक्षण का दांव

भाजपा को उम्मीद है कि कोटा पुनर्निर्धारण से चुनाव में उसे फायदा मिलेगा. लेकिन कुछ जगहों पर विरोध प्रदर्शन शुरू होने से सवाल उठता है कि क्या यह दांव कारगर साबित होगा.

तैयारी: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (दाएं) मुख्यमंत्री बोम्मई के साथ बेंगलूरू में 26 मार्च को एक कार्यक्रम में तैयारी: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (दाएं) मुख्यमंत्री बोम्मई के साथ बेंगलूरू में 26 मार्च को एक कार्यक्रम में
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 11:00 PM IST

अजय सुकुमारन

कर्नाटक की भाजपा सरकार ने पिछले हफ्ते जब अपनी कैबिनेट बैठक बुलाई तो उसमें लिए गए फैसलों की जानकारी प्रेस को देने का जिम्मा किसी वरिष्ठ मंत्री को सौंपने की परंपरा के बजाए खुद मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने मोर्चा संभाला. यह राज्य में विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले कुछ आखिरी कैबिनेट बैठकों में से एक थी और इसमें 119 विषयों पर चर्चा हुई, लेकिन इनमें दो ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रहे. एक, अनुसूचित जाति (एससी) सूची में शामिल विभिन्न उप-समूहों के लिए आंतरिक कोटा निर्धारित करना और राज्य के दो प्रमुख जाति समूहों, वीरशैव-लिंगायत और वोक्कालिगा के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आरक्षण बढ़ाना.

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इसके बारे में मुख्यमंत्री ने कहा, ''यह मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा'' है. उन्होंने कहा, ''दो-तीन दशकों तक सरकारें इस मसले को टालती रहीं. समाधान निकालने का कोई प्रयास ही नहीं किया गया.'' बहरहाल, भाजपा जो समाधान लेकर आई, उसके पीछे इरादा जाहिर तौर पर मुसलमानों को पिछड़े वर्गों के आरक्षण से बाहर करना था, और इससे मुक्त हुआ 4 फीसद कोटा लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के बीच समान रूप से बांटा जाएगा.

कर्नाटक सरकार के इस फैसले के साथ ही विभिन्न वर्गों में तीखी आलोचना शुरू हो गई. चार महीनों में यह दूसरा मौका था जब बोम्मई सरकार ने ओबीसी आरक्षण में कोई बदलाव किया है. इससे पहले दिसंबर में, लिंगायत समुदाय के पंचमशाली उप-समूह की तरफ से 15 फीसद आरक्षण की मांग को लेकर किए जा रहे आंदोलन के बीच, सरकार ने दो नई श्रेणियां बना दी थीं. इसका उद्देश्य लिंगायत और वोक्कालिगा, दोनों को समायोजित करना था और उन्हें आश्वस्त किया गया कि वे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए निर्धारित 10 फीसद आरक्षण के एक हिस्से पर दावा कर सकते हैं.

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सरकार ने यह दलील देते हुए कि धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण का संवैधानिक प्रावधान नहीं है, अपना रुख बदला और श्रेणी 2(बी) के तहत चार फीसद आरक्षण पाने वाले मुसलमानों को ईडब्ल्यूएस समूह में वर्गीकृत करने का प्रस्ताव रखा. बोम्मई ने इसे 'साहसिक' कदम बताते हुए जिक्र किया कि कैसे आंध्र प्रदेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के आरक्षण को अदालत में चुनौती दी गई और इसे रद्द कर दिया गया. उन्होंने यह तर्क भी दिया कि चूंकि पात्रता मानदंड जैसे कि आय ओबीसी और ईडब्ल्यूएस दोनों श्रेणियों पर लागू होते हैं, इसलिए मुसलमानों को 2(बी) श्रेणी से बाहर करने से कोई बदलाव नहीं आएगा. उन्होंने कहा, ''इससे असल में बिना किसी बदलाव के वे 4 फीसद से 10 फीसद के पूल में आ जाएंगे.''

कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष सी.एस. द्वारकानाथ का कहना है, ''यह सब महज दिखावा है. इसका कोई भी कानूनी आधार नहीं है.'' 26 मार्च को, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने धार्मिक आधार पर आरक्षण खत्म करने के लिए कर्नाटक सरकार को बधाई दी, जिसे पिछली सरकारें 'वोट बैंक के लालच' में लाई थीं. जनता दल (सेक्युलर) के प्रदेश अध्यक्ष सी.एम. इब्राहिम ने 26 मार्च को एक रैली में इस बात को रेखांकित किया कि 2(बी) श्रेणी 1994 में तब बनाई गई थी जब एच.डी. देवेगौड़ा मुख्यमंत्री थे. साथ ही सवाल उठाया, ''क्या यह अदालत में टिक पाएगा.?'' कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार ने सत्ता में आने पर यह कदम रद्द करने का संकल्प जताते हुए कहा, ''हमें 4 प्रतिशत कोटे में कोई दिलचस्पी नहीं है. लिंगायत और वोक्कालिगा भिखारी नहीं हैं.''

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भाजपा को उम्मीद है कि कोटा पुनर्निर्धारण से चुनाव में उसे फायदा मिलेगा. लेकिन कुछ जगहों पर विरोध प्रदर्शन शुरू होने से सवाल उठता है कि क्या यह दांव कारगर साबित होगा.

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