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मध्य प्रदेश : सरकारी तोहफों की बरसात
मध्य प्रदेश में सरकारी तोहफे बरस रहे हैं और इसमें कोई अचरज भी नहीं होना चाहिए क्योंकि यहां विधानसभा चुनाव बमुश्किल नौ महीने दूर हैं. जमीन, मकान, नगदी...सब कुछ मिल रहा है. घोषणाएं पूरी करने में आने वाली वित्तीय लागतों की चिंता किए बगैर राजनीतिक दल मुफ्त लाभों की घोषणाएं करने की होड़ में हैं क्योंकि अधिकांश आबादी लाभार्थी है, उसे इन स्थितियों से शिकायत नहीं. लेकिन ईमानदार करदाता, जो लाभार्थी नहीं हैं, इससे चिंतित हैं. उन्हें पता है कि सत्ता में रहने की होड़ में हो रही इन घोषणाओं का बोझ अंतत: उन पर ही पड़ेगा.
बीती 28 जनवरी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की कि राज्य में बहुत जल्द 'लाडली बहना' योजना शुरू की जाएगी. वयस्क होने पर लड़कियों को वित्तीय सहायता देने का वादा करने वाली लाडली लक्ष्मी योजना के शिल्पी का कहना है कि मैं ''बहनों को और ज्यादा लाभ पहुंचाने के बारे लगातार सोच रहा था.'' लाडली बहना योजना के अंतर्गत आयकर भुगतान सीमा से नीचे के परिवारों की 18 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों को प्रति माह 1,000 रुपए दिए जाएंगे. वित्त विभाग के आला अधिकारियों का दावा है कि उन्हें योजना से पैदा होने वाले वित्तीय बोझ के आकलन के लिए नहीं कहा गया है, लेकिन प्रारंभिक गणनाओं के अनुसार इस पर अनुमानत: 12,000 करोड़ रु. का वार्षिक व्यय होगा. योजना में लगभग 1.2 करोड़ युवातियों के शामिल होने की उम्मीद है. इसका पंजीकरण आगामी 8 मार्च यानी महिला दिवस से शुरू होना है जबकि पहला भुगतान अगस्त में रक्षाबंधन के आसपास शुरू होने की संभावना है.
लाडली बहना की पूर्ववर्ती योजना, लाडली लक्ष्मी योजना का चौहान को राजनीतिक लाभ मिला था और वे खुद को राष्ट्रीय स्तर पर सफल मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर सके थे. अब वे इस जनसमुदाय के बीच अपने समर्थन के आधार को और मजबूत करने की योजना बना रहे हैं. उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के कुल 5.40 करोड़ मतदाताओं में 48 प्रतिशत महिलाएं हैं.
कुछ हफ्ते पहले, चौहान ने गरीबों को मुफ्त आवासीय भूखंड देने की घोषणा भी की थी. इस घोषणा पर काम आगे बढ़ाते हुए पहले टीकमगढ़ (10,500 लोगों को) और बाद में सिंगरौली जिले (25,000 लोगों को) में जमीन बांटी गई. इस योजना में भुगतान शामिल नहीं है, लेकिन अधिकारियों ने स्वीकार किया कि मुफ्त भूमि की लागत टीकमगढ़ में 120 करोड़ रुपए और सिंगरौली में 250 करोड़ रुपए आंकी गई है.
सरकार के शीर्षस्थ सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के हिस्से के रूप में भुगतान की जाने वाली राशि भी बढ़ाई जा सकती है. वर्तमान में, पीएम किसान सम्मान निधि के तहत केंद्र सरकार द्वारा भुगतान किए गए 6,000 रुपए के अलावा 80 लाख से अधिक छोटे और सीमांत किसानों को सालाना 4,000 रुपए मिलते हैं. राज्य की राशि दो किस्तों में जारी की जाती है. इसमें कितनी वृद्धि होगी यह अभी पता नहीं है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि चूंकि बोनस भुगतान में समस्या है, इसलिए चुनाव से पहले ही मध्यम और बड़े किसानों की तुलना में अधिक संख्या में मौजूद छोटे और सीमांत किसानों को किसान कल्याण योजना के तहत किए जाने वाले भुगतान में बढ़ोतरी की जाएगी.
कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान कृषि ऋण माफी की घोषणा की थी. इसे कुछ चरणों में किया जाना था और पार्टी का दावा है कि सत्ता में आने पर वह 2023 में अपना वादा पूरा करेगी. पार्टी ने राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को वापस लागू करने की भी घोषणा की है. हालांकि, अभी यह पता नहीं है कि इसका वित्तपोषण कैसे किया जाएगा. पार्टी ने खर्च का भी अनुमान नहीं लगाया है.
मध्य प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर एक दृष्टि डालना यहां अप्रासंगिक नहीं होगा. वर्ष 2022-23 के लिए राज्य के बजट में व्यय का अनुमान 2,47,715 करोड़ रुपए था. इसमें हर साल बढ़ती जा रही भारी ऋण चुकौतियां शामिल नहीं थीं. राजकोषीय घाटे का अनुमान जीएसडीपी का 4.56 प्रतिशत का था, जबकि 4 प्रतिशत की अनुमति थी. यह अनुमति इस विचार के साथ दी गई थी कि विद्युत क्षेत्र में सुधार किए जाएंगे. वर्तमान में राज्य सरकार की कुल देनदारियां 3,45,543 करोड़ रुपए की हैं और इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि नई उधारियों में कोई कमी आएगी. इस बात का किसी के पास जवाब नहीं है कि नए सरकारी तोहफों के लिए धन की व्यवस्था कैसे की जाएगी.
राज्य का कर राजस्व (उत्पाद शुल्क, जीवाश्म ईंधन पर कर, टिकट और पंजीकरण, खनन आदि) 2021-22 में 81,613 करोड़ रुपए था और इसके बढ़कर 87,945 करोड़ रुपए होने की उम्मीद है. इनमें से 2022-23 के लिए आबकारी से लक्षित संग्रह 13,613 करोड़ रुपए था. लेकिन, राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शराब विरोधी अभियान चलाते हुए राज्य में शराबबंदी की मांग कर रही हैं. लोकलुभावन घोषणाओं की पूर्ति की खातिर अतिरिक्त राजस्व जुटाने के लिए राज्य सरकार को या तो जीवाश्म ईंधन पर करों में वृद्धि करनी होगी या उधारी को बढ़ाना होगा जिसकी अपनी जटिलताएं भी हैं. लेकिन इसकी परवाह किसे है.
दरियादिली
लाड़ली बहना योजना के तहत गरीब परिवारों की 18 की उम्र से बड़ी लड़कियों को 1,000 रुपए महीना दिया जाएगा. अनुमानित सालाना खर्च : 12,000 करोड़ रुपए
गरीबों को मुफ्त आवासीय प्लॉट. करीब 36,000 प्लॉट दिए जा चुके हैं. अब तक का खर्च : 370 करोड़ रु.
मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के तहत किसानों को दिए जा रहे सालाना 4,000 रुपए के फायदों में की बढ़ोतरी दरियादिली
लाड़ली बहना योजना के तहत गरीब परिवारों की 18 की उम्र से बड़ी लड़कियों को 1,000 रुपए महीना दिया जाएगा. अनुमानित सालाना खर्च : 12,000 करोड़ रुपए
गरीबों को मुफ्त आवासीय प्लॉट. करीब 36,000 प्लॉट दिए जा चुके हैं. अब तक का खर्च : 370 करोड़ रु.
मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के तहत किसानों को दिए जा रहे सालाना 4,000 रुपए के फायदों में की बढ़ोतरी
—राहुल नरोन्हा
राजस्थान: लोकोपकारी जादूगर
यह बजट होना तो ऐतिहासिक था पर ऐसा हुआ गलत कारण से. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बजट भाषण शुरू करने के ठीक पांच मिनट बाद यानी 11 बजकर 06 मिनट पर उन्हें बजट भाषण रोकना पड़ा. वजह यह कि वे पुरानी कॉपी पढ़ रहे थे. मुख्यमंत्री के रुकते ही पूरा विपक्ष हमलावर हो गया. गहलोत ने कहा, ''बजट भाषण के बीच में एक अतिरिक्त पेज गलती से लग गया था. अफसरों ने सुबह छह बजे मुझे यह कॉपी लाकर दी थी.''
संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण ने राजस्थान के बजट पर चुटकी ली तो सड़क पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट को लेकर निशाना साधा. सीतारमण ने संसद में कहा, ''राजस्थान में बहुत गड़बड़ है, वहां पिछले साल का बजट इस साल पढ़ रहे हैं. गलती किसी से भी हो सकती है लेकिन ऐसी गलती नहीं होनी चाहिए कि पिछले साल का बजट ही पढ़ जाएं.'' वहीं दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे के दौसा उपखंड का उद्घाटन करने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान बजट का जिक्र करते हुए कहा, ''राजस्थान में जिस तरह पुराना बजट पढ़ा गया है उससे यह पता चलता है कि कांग्रेस के पास न विजन है और न ही उनकी बातों में कोई वजन. कांग्रेस के लिए बजट और घोषणाएं कागजों में लिखने के लिए होती हैं.'' हालांकि गहलोत ने इस स्थिति का सामना दिलेरी से किया और अपने बजट की ताकत को इन आलोचनाओं की वजह बताया.
गहलोत ने इंडिया टुडे को बताया, ''इसे चुनावी बजट न कहें. यह लगातार पांचवीं बार है जब मैंने कर मुक्त बजट पेश किया है. यह क्षमता और बुनियादी ढांचे का निर्माण करके आम जनता की मदद करने के मेरे प्रयास का विस्तार है.'' फिर उन्होंने भावुक होते हुए कहा, ''2028 का मेरा बजट जरूर चुनावी होगा.'' अपने पिछले दो कार्यकालों में गहलोत ने लोकलुभावन बजट लाने के लिए चुनावी वर्ष का इंतजार किया लेकिन वे काम नहीं आए. आखिरी समय पर आने के कारण उदार सूखा राहत और वृद्धावस्था पेंशन उनकी सरकार को बचा नहीं सकीं. उनके पिछले कार्यकाल में जरूर मुफ्त जेनरिक दवाओं की योजना ने उन्हें फायदा पहुंचाया. इस बार गहलोत का संदेश साफ है. इस बार वे लोकोपकारी जादूगर की तरह पहली ही साल से जादू की छड़ी घुमाते हुए आए हैं. अगर वे सचिन पायलट के साथ रस्साकशी के चलते पार्टी और सरकार को हुए नुक्सान की भरपाई चाहते हैं तो अपनी इस जादूगर की छवि को उन्हें ठीक तरह जनता तक पहुंचाना होगा.
बजट के बाद के पहले कदम में 13 फरवरी को मुख्य सचिव ऊषा शर्मा ने सचिव और उससे ऊपर के स्तर के सभी नौकरशाहों को पत्र लिखकर बजट में हुई घोषणाओं पर काम शुरू कर देने को कहा. जहां केवल प्रशासनिक आदेश चाहिए थे, वहां तुरंत और जहां वित्त विभाग और संबधित विभाग को साथ मिलकर काम करना था, वहां पखवाड़े के भीतर काम शुरू करने के निर्देश थे. जहां खास वित्तीय अनुमोदन जरूरी थे वहां 15 दिन में प्रस्ताव भेजने को कहा गया.
यह जल्दबाजी समझ भी आती है. कुछ बड़ी घोषणाएं अमल में लाई जानी हैं: महंगाई से राहत, एक महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य बीमा योजना, विद्युत शुल्क में बड़ी राहत, लंपी बीमारी के कारण मरने वाले दुधारू गौवंश पर पशुपालकों को 40 हजार रुपए प्रति गाय का मुआवजा, केंद्र की उज्ज्वला योजना को एक और सहारा, न्यूनतम आय गारंटी स्कीम, एक 200 करोड़ रुपए का श्रमिक राहत कोष, सभी संविदा कर्मचारियों को नियमित किया जाना और लड़कों को भी मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराना. लेकिन इन कल्याणकारी योजनाओं को जमीन पर लाने के लिए उन्हें अपनी प्रशासनिक इच्छाशक्ति का मजबूती से इस्तेमाल करना होगा क्योंकि क्रियान्वन के स्तर पर राज्य अक्सर पिछड़ जाया करते हैं. यह अभी उतनी महत्वपूर्ण बात नहीं कि अकेले महंगाई/मद्रास्फीति राहत पर ही उस राज्य में 19,000 करोड़ रुपए खर्च होने हैं जिसका 40 फीसद तक पहुंच रहा कर्ज/जीएसडीपी अनुपात काफी खराब है.
गहलोत के लिए अहम हैं इस उदारता के बदले मिलने वाले वोट जो उन्हें सत्ता में बनाए रख सकते हैं या यह कि कम से कम वे जाएं तो एक कल्याणकारी मुख्यमंत्री की छवि लेकर सत्ता से बाहर जाएं.
गहलोत की महत्वाकंक्षी स्वास्थ्य बीमा योजना चिरंजीवी को एक बड़ा आवंटन मिला है, जिसके चलते फ्लोटिंग कवरेज को बढ़ाकर 10 लाख रुपए से 25 लाख रुपए कर दिया गया है. एपीएल और बीपीएल परिवारों के लिए यह मुफ्त और अन्य परिवारों के लिए महज 850 रुपए में उपलब्ध है. सभी सरकारी अस्पतालों के अलावा कई निजी अस्पतालों को भी इस योजना में शामिल किया गया है. सैद्धांतिक रूप से इसका मतलब है कि सरकार लगभग सभी के लिए अस्पताल में होने वाले इलाज का खर्च वहन करेगी, और यह भी कि सरकारी अस्पताल सभी दवाइयां और जांचें मुफ्त में उपलब्ध कराएंगे जिसमें, उपलब्धता की स्थिति में सीटी स्कैन और एमआरआइ जैसी जांचें भी शामिल हैं. योजना में 10 लाख रुपए का आक स्मिक मृत्यु बीमा भी शामिल है. सरकारी अस्पताल अब तक निजी अस्पतालों जैसी सेवाएं देने में विफल रहे हैं. मरीजों की लंबी कतारें, उन्हें एक खिड़की से दूसरी के बीच घुमाते रहना और दवाइयों की कमी सरकारी अस्पतालों की आम समस्याएं हैं. वहीं निजी अस्पताल मरीजों को यह कहकर लंबा बिल थमाते रहे हैं कि अमुक इलाज या जांच योजना में शामिल नहीं है.
हालांकि इस योजना में लगभग सभी महंगे निजी इलाज शामिल हैं. लेकिन इसके चलते राज्य का वित्तीय ढांचा ट्रॉमा वार्ड में जा पहुंचा तो? इसके अलावा बिजली अगला वह क्षेत्र है जो सरकारी खजाने की बत्ती गुल कर सकता है. बजट में हर परिवार को मिलने वाली मुफ्त बिजली को 50 यूनिट से बढ़ाकर 100 यूनिट कर दिया है. इससे हर परिवार को करीब 750 रुपए की बचत होगी. राजस्थान उन राज्यों में से है जहां बिजली की कीमत बाकी राज्यों से ज्यादा है, ऐसे में आम उपभोक्ता को यह एक बड़ी राहत साबित होगी. करीब एक करोड़ परिवारों को कोई शुल्क नहीं चुकाना होगा. इसके अलावा 2000 यूनिट तक बिजली खर्च ने वाले 11 लाख किसानों को भी कोई शुल्क नहीं देना होगा. पहले यह सीमा 1000 यूनिट थी. वैसे, सरकार को पावर कंपनियों को 17,000 करोड़ रुपए चुकाना बाकी है.
उदारता का एक अंश केंद्र को जवाब देता हुआ भी नजर आता है, जिसकी उज्ज्वला योजना को आलोचना झेलनी पड़ी है कि एलपीजी सिलेंडर को फिर भरवाना इतना महंगा है कि योजना का लाभ असली लाभार्थियों को मिल ही नहीं सका है. ऐसे में गहलोत ने 76 लाख परिवारों को 500 रुपए प्रति नग सिलेंडर उपलब्ध कराने की योजना बनाई है. ग्रामीणों की समस्याओं को हल करने वाले एक और मोर्चे पर आएं तो राज्य लंपी बीमारी से मरने वाली हर गाय के लिए 40,000 रुपए का मुआवजा देगा और इसके अलावा दो दुधारु गायों के लिए 40,000 रुपए का कवर भी मिलेगा. इसका फायदा करीब 20 लाख परिवारों को मिलेगा. गहलोत का बजट नया वाहन पंजीकृत कराने वालों के कंधों से राज्य के सड़क कर का भारी वजन भी हलका करता है. इसमें 100 सीसी के दोपहिया पर 2,500 रुपए, 800 सीसी की कार पर 8,000 रुपए और डीजल वाहन पर 20,000 रुपए की छूट का प्रावधान है.
न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा पेंशन को दोगुना कर 1,000 रु. कर दिया गया है. गहलोत वह न्यूनतम आय गारंटी स्कीम योजना भी लेकर आ रहे हैं जिसका वादा राहुल गांधी ने 2019 के चुनाव के समय किया था. इसके लिए संभव है कि राज्य की तमाम रोजगार गारंटी योजनाओं व अन्य संबंधित योजनाओं को एकीकृत कर कोई बेहतर योजना लाई जाए जो सामाजिक सुरक्षा से जुड़कर एक न्यूनतम आय सुरक्षित करे. भाजपा की इस आलोचना पर कि ये योजनाएं बस कागजों पर रहेंगी, गहलोत का जवाब है कि वे देश भर के लिए एक मिसाल पेश करने जा रहे हैं. वे कहते हैं, ''केंद्र हमें 300 करोड़ रुपए देता है पर हम पेंशन पर 9,000 करोड़ रुपए खर्च करते हैं. हर राज्य अपनी क्षमता के हिसाब से खर्च करता है. केंद्र को सभी राज्यों को समान सहायता सुनिश्चित करने वाला कानून लाना चाहए.'' बजट को लेकर पक्ष-विपक्ष के अपने-अपने दावे हैं लेकिन एक हकीकत यह भी है कि राजस्थान में आठ माह बाद विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. चुनावों से एक-दो माह पहले आचार संहिता अस्तित्व में आ जाएगी. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या इतने कम समय में यह बजट राजस्थान को बचत, राहत और बढ़त प्रदान कर पाएगा?
13 फरवरी को देर रात गहलोत ने 75 आइपीएस अफसरों के तबादले के आदेश जारी किए. ऐसा ही फेरबदल आइएएस अफसरों को लेकर भी संभावित है. चुनाव के नजदीक पहुंचने पर एक और ऐसे ही बड़े फेरबदल की संभावना के साथ, यह बड़ा बदलाव नेताओं की सिफारिशों को अमल में लाने के अलावा जमीन पर प्रशासन को नई दिशा देने का प्रयास भी मालूम होता है.
इससे कितना फायदा मिलेगा? इसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है. इस पर गहलोत का कहना है, ''मैं अपनी पूरी कोशिश करता हं.'' यह कम से कम उससे तो बेहतर है जो कई बार उनकी पार्टी करती नजर आती है.
खोल दिया खजाना
हर परिवार के लिए 100 यूनिट मुफ्त. 2000 यूनिट तक इस्तेमाल करने वाले 11 लाख किसानों को बिल नहीं देना होगा
76 लाख परिवारों के लिए गैस सिलेंडर 500 रुपए प्रति नग
न्यूनतम आय गारंटी योजना; 200 करोड़ रुपए का श्रमिक राहत कोष
राज्य की चिरंजीवी बीमा पॉलिसी को बड़ा आवंटन
— रोहित परिहार और आनंद चौधरी
केरल: कड़वी दवा
यकीनन केरल के वित्त मंत्री के.एन. बालगोपाल ने 3 फरवरी को विधानसभा में 2023-24 का बजट पेश किया तो चौंकाने वाली बातें थोड़ी ही थीं. शराब की कीमतें फिर से बढ़ गईं, भूमि पंजीकरण शुल्क भी बढ़ा, और पेट्रोलियम उत्पादों पर 2 रुपए प्रति लीटर नया सामाजिक सुरक्षा उपकर लगा दिया गया, जो लोगों के पेट्रोल पंपों या गैस स्टेशनों पर जाने को भी राष्ट्र-निर्माण की कीमत अदा करने जैसा बना देता है. उम्मीद के मुताबिक, विपक्ष फौरन 'जनविरोधी बजट' के खिलाफ सड़कों पर उतर आया.
केरल पिछले करीब दो दशकों से बजट घाटे और बढ़ते सार्वजनिक कर्ज के तले दबा हुआ है. माकपा के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने नए करों का बचाव इस दलील के साथ किया है कि केंद्र ने राज्य की उधारी उठाने की सीमा ''हमारी माली हालत पर विचार किए बिना'' सीमित कर दी है, इसलिए कठोर निर्णय लेने की आवश्यकता थी.
इसके अलावा, विचित्र यह भी है कि केरल बढ़ती प्रति व्यक्ति आय के साथ घटती जनसंख्या की भी कीमत चुका रहा है. इन मापदंडों के तहत केंद्रीय करों के बंटवारे में राज्य का हिस्सा 2020-21 में 1.92 फीसद तक कम हो गया, जो 1980 के दशक में उसे मिलने वाले 3.9 फीसद के आधे से भी कम है. सो, केरल लगातार केंद्र से राजस्व घाटा अनुदान में कमी की शिकायत करता रहा है.
केरल का वित्तीय ढांचा अजीबोगरीब किस्म का है. बालगोपाल ने 1.35 लाख करोड़ रुपए की राजस्व प्राप्तियों का अनुमान लगाया है, जिसका 72 फीसद राज्य में ही उगाहा जाएगा. और इस वर्ष खर्च का अनुमान 1.76 लाख करोड़ रुपए है. राजस्व वृद्धि के लगातार दबाव से कैसे निबटा जाएगा? दरअसल नाममात्र की मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों वाला केरल मोटे तौर पर एक उपभोक्ता राज्य है. राज्य की अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 10-12 फीसद से भी कम है. इसलिए राज्य में राजस्व उगाही के साधन जीएसटी के अलावा शराब की बिक्री और लॉटरी जैसी दो प्रमुख मद हैं. जून, 2022 से जीएसटी मुआवजे की समाप्ति के कारण राज्य को 5,700 करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ. उधार लेने पर प्रतिबंध के कारण 5,000 करोड़ रुपए की और कटौती हो गई. केंद्र ने कहा है कि वित्त वर्ष 24 में यह जीएसडीपी का 3.5 फीसद से अधिक नहीं हो सकता है. आलोचकों के मुताबिक, संकट के लिए आंशिक रूप से राज्य भी जिम्मेदार है. कर्ज का बोझ उसके 'बजट से इतर' दो कार्यक्रमों केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (केआइआइएफबी) और केरल सामाजिक सुरक्षा पेंशन लिमिटेड (केएसएसपीएल) की वजह से पिछले 5-6 साल में बढ़ा है.
इसके अलावा, नए जीएसटी प्रारूप के लागू होने के बाद राज्य के राजस्व में सालाना लगभग 11,000 करोड़ रुपए की कमी होगी. केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) में भी ऐसी ही स्थिति है. केरल 'सामाजिक रूप से विकसित राज्य' है इसलिए उसे सीएसएस के लिए निर्धारित धन का केवल एक फीसद ही मिलता है. इस साल केंद्रीय मनरेगा फंड में भी एक-तिहाई की कमी की वजह से उसकी मुश्किल और बढ़ेगी.
केरल में वेतन (30 फीसद), पेंशन (21 फीसद) और ब्याज भुगतान (19 फीसद) की मदों में तय खर्च हैं, जिसमें कुल राजस्व प्राप्तियों का 70 फीसद खप जाता है. राज्य 1 लाख रुपए से कम वार्षिक आय वाले 52.2 लाख लोगों को प्रति माह 1,600 रुपए की सामाजिक सुरक्षा पेंशन भी देता है. बालगोपाल कहते हैं, ''हम कल्याणकारी मदों में कटौती नहीं कर सकते और केरल के प्रति केंद्र की बेरुखी हमें और मजबूर कर रही है. नए कर इसलिए लगाए गए हैं, ताकि इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और कल्याणकारी कार्यक्रम प्रभावित न हों. कांग्रेस और भाजपा का दुष्प्रचार अभियान राजनीतिक एजेंडे के तहत है.''
मुख्यमंत्री विजयन भी नए करों को संतुलन साधने की कोशिश बताते हैं. वे कहते हैं, ''विपक्ष और मीडिया का एक वर्ग वाम मोर्चा सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन पर दोष मढ़ने की कोशिश कर रहा है. यह राजनीति से प्रेरित प्रोपेगैंडा है. दरअसल, हम पिछले चार वर्षों में राज्य के सार्वजनिक कर्ज में 2.5 फीसद की कमी लाने में कामयाब हुए हैं, जबकि महामारी के दौरान और उससे पहले के वर्षों में बाढ़ की वजह से राज्य के अंदरूनी राजस्व में गिरावट आई.'' उन्होंने 1,284 परियोजनाओं और 15,896 करोड़ रुपए के आवंटन के साथ '100-दिवसीय मिशन' की भी घोषणा की, जो कथित तौर पर राज्य में 4,33,644 नए रोजगार के अवसर पैदा करेगा.
लेकिन विपक्षी कांग्रेस के नेता वी.डी. सतीशन इन दलीलों से कतई सहमत नहीं हैं. वे महंगाई और महामारी से पहले से ही पीड़ित लोगों पर नया बोझ डालने के लिए वामपंथी सरकार की खिंचाई करते हैं. पेट्रोल-डीजल वगैरह पर 2 रुपए प्रति लीटर अधिभार से सामाजिक सुरक्षा बीज कोष में 750 करोड़ रुपए अतिरिक्त तो आएंगे, लेकिन इससे केरल में सबसे महंगा ईंधन मिलेगा. दरअसल, पड़ोसी कर्नाटक और तमिलनाडु में अब एक लीटर पेट्रोल की कीमत औसतन 4 रुपए कम है. खाली पड़े मकानों पर टैक्स भी लोगों को नागवार गुजरा है. सतीशन कहते हैं, ''जनता की राय हमारे साथ है. यह हमारा कर्तव्य है कि जब सरकार जनविरोधी नीतियां लाए तो हम उसे सुधार के कदम उठाने पर मजबूर करें. राजस्व बकाया मद में 21,798 करोड़ रुपए एकत्र करने में नाकाम रहने के बाद वे नए करों को कैसे सही ठहरा सकते हैं?''
उनका इशारा 10 फरवरी को जारी 2019-21 के लिए नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की संयुक्त अनुपालन लेखापरीक्षा रिपोर्ट की ओर है, जिसमें केरल में 21,797.9 करोड़ रुपए की राजस्व कमी का खुलासा किया गया था. उसमें 7,100.3 करोड़ रुपए की राशि पांच साल से अधिक समय से बकाया है. रिपोर्ट में राजस्व बकायों के भुगतान की दिशा में कदम न उठाने के लिए राज्य सरकार की जमकर आलोचना की गई है. माल व्यापार (13,830.4 करोड़ रुपए), बिजली पर कर और शुल्क (2,929.1 करोड़ रुपए), और वाहन कर (2,616.9 करोड़ रुपए) में बकाए की हिस्सेदारी घाटे में सबसे अधिक है.
एक बड़ा तबका शराब की बढ़ती कीमतों से नाराज है. केरल में शराब पर निषेधात्मक 251 फीसद बिक्री कर है, और पिछले वर्ष की तीसरी वृद्धि में देश में निर्मित विदेशी शराब (आइएमएफएल) की 999 रुपए से कम एमआरपी वाली प्रति बोतल पर 20 रुपए का नया उपकर लगाया गया, जिससे कीमत 40 रुपए बढ़ गई. बजट के मुताबिक, इससे अतिरिक्त 400 करोड़ रुपए मिलेंगे, लेकिन शराब पीने वाले खुश नहीं हैं. लोकप्रिय अभिनेता-निर्देशक मुरली गोपी कहते हैं, ''हर बजट के साथ केरल में शराब पर टैक्स बढ़ जाता है. दुर्भाग्य से, यह गरीबों को सबसे अधिक निचोड़ता है क्योंकि वे कुछ बहुत ही कम गुणवत्ता वाले ब्रांडों के लिए बहुत पैसा चुकाते हैं.''
यह तमाम गुस्सा मुख्यमंत्री विजयन का संतुलन बिगाड़ सकता है. हालांकि वे अपने दूसरे कार्यकाल के दूसरे वर्ष में ही हैं—या हो सकता है कि राज्य के पास अतिक्ति पैसा होने के बावजूद उनके लिए तीसरे कार्यकाल पर दांव लगाना आसान न हो.
तूफान में कश्ती
शराब की कीमत और भूमि पंजीकरण का शुल्क फिर बढ़ा. पेट्रोलियम उत्पादों पर 2 रुपए प्रति लीटर सामाजिक सुरक्षा उपकर. विपक्ष ने बजट को जन-विरोधी बताया
वेतन, पेंशन, सामाजिक सुरक्षा पेंशन और ब्याज के भुगतान में आय स्वाहा
1,284 परियोजनाओं के साथ '100 दिवसीय मिशन', 15,896 करोड़ रुपए का व्यय घोषित, 433,644 नौकरियों का सृजन संभव
—जीमॉन जैकब