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जयपुर ब्लास्ट की जांच पर भारी आंच

सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आगे जो भी फैसला दे, उससे इतर हाइकोर्ट के ताजा फैसले से जांच ऐजेंसियों की कार्यप्रणाली पर कई सवालिया निशान लगे हैं और यह सभी के लिए खतरे की बात है

दोषी या निर्दोष : जयपुर बम ब्लास्ट के आरोपी ट्रायल कोर्ट में 20 दिसंबर, 2019 को पेश किए जाने के दौरान दोषी या निर्दोष : जयपुर बम ब्लास्ट के आरोपी ट्रायल कोर्ट में 20 दिसंबर, 2019 को पेश किए जाने के दौरान
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 6:56 PM IST

आनंद चौधरी

मई 13, 2008 की शाम जयपुर शहर को जो जख्म मिले थे, वे 29 मई, 2023 को एक बार फिर हरे हो गए. राजस्थान हाइकोर्ट की जयपुर खंडपीठ ने इस दिन जयपुर बम ब्लास्ट के चार आरोपियों को मृत्युदंड और राजद्रोह के आरोपों से बरी कर दिया. इस फैसले का एक मतलब यह भी था कि ब्लास्ट के लिए जिम्मेदार असल आतंकवादी अब भी पुलिस की पकड़ से दूर हैं. इससे इतर राजस्थान हाइकोर्ट के जस्टिस पंकज भंडारी और समीर जैन की डिविजनल बेंच ने फैसला सुनाते हुए बम ब्लास्ट केस के जांच अधिकारियों की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए और उनके खिलाफ कई लिखित तल्ख टिप्पणियां भी कीं. अदालत का कहना था, ''जांच अधिकारी में कानूनी ज्ञान का अभाव था और पूरी जांच त्रुटिपूर्ण, घटिया और खामियों से भरी हुई थी.'' अदालत ने राजस्थान के पुलिस महानिदेशक को जांच अधिकारियों के खिलाफ जांच व कार्रवाई करने और मुख्य सचिव को जांच की निगरानी करने के आदेश भी दिए. इस मामले में बचाव पक्ष ने 24 गवाह पेश किए जबकि सरकार की ओर से 1,270 गवाह पेश हुए. सरकार की ओर से वकीलों ने 800 पेज की बहस की. वहीं बचाव पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील नित्या रामकृष्णन के नेतृत्व में आठ वकीलों ने पैरवी की.

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13 मई, 2008 की शाम को करीब सवा सात बजे के बाद 20 मिनट के भीतर एक के बाद एक 8 बम धमाके हुए थे. आतंकवादियों ने शहर में कुल नौ जगह बम फिट किए थे हालांकि आखिरी बम डिस्पोजल स्क्वॉड ने डिफ्यूज कर दिया था. इन धमाकों में कुल 71 लोगों की मौत हुई थी और 185 लोग घायल हुए थे. तब इस मामले की जांच राजस्थान पुलिस की एटीएस को सौंपी गई थी.

एटीएस की जांच के आधार पर जयपुर ब्लास्ट मामले में 20 दिसंबर, 2019 को ट्रायल कोर्ट ने चारों आरोपियों सरवर आजमी, सलमान, मोहम्मद सैफ और सैफुर्रहमान को फांसी की सजा सुनाई थी. हालांकि अब हाइकोर्ट ने एटीएस की ओर से जुटाए गए सबूतों के साथ ही ट्रायल कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठाए हैं. आदेश में कहा गया है, ''ट्रायल कोर्ट ने अस्वीकार्य सबूतों पर भरोसा किया और विरोधाभासों को नजरअंदाज किया. यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 का उल्लंघन है... जांच एजेंसियों की विफलता के कारण पीड़ित (निर्दोषों के) होने वाला यह पहला मामला नहीं है और अगर इसे ऐसे ही छोड़ दिया गया तो यह निश्चित रूप से आखिरी मामला नहीं होगा. इसलिए मुख्य सचिव को इस मामले को देखना चाहिए.'' 

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इस मामले में बचाव पक्ष के वकील सैयद सआदत अली कहते हैं, ''हाइकोर्ट का यह फैसला न्याय की जीत है. एटीएस की गलती और मनगढ़ंत जांच के कारण इन युवकों को अपनी जिंदगी के बेशकीमती 15 साल जेल में बिताने पड़े.'' वहीं एडीशनल एडवोकेट जनरल (एएजी) राजेश महर्षि ने कहा है कि हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार जल्द सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेगी. 

यह दिलचस्प है कि हाइकोर्ट ने जिस तरह यह फैसला दिया है, उसकी एक मिसाल इसी मामले में ट्रायल कोर्ट में भी बनी थी. 18 दिसंबर, 2019 को जयपुर शहर की ट्रायल कोर्ट ने बम ब्लास्ट मामले में एक आरोपी शाहबाज को सबूतों के अभाव में बरी किया था. उस वक्त भी ट्रायल कोर्ट के सामने अभियोजन पक्ष ने राजस्थान हाइकोर्ट की तरह कई दलीलें पेश की थीं, लेकिन कोर्ट ने बचाव पक्ष की दलीलों के आधार पर शाहबाज को बरी कर दिया. शाहबाज के वकील निशांत व्यास के मुताबिक, ''शाहबाज पर बम धमाकों की जिम्मेदारी लेने वाला ईमेल भेजने का आरोप था, लेकिन एटीएस ईमेल कोर्ट में पेश नहीं कर पाई. इसके अलावा साइबर कैफे संचालक को भी बयान के लिए न तो पेश कर पाई और न उसकी ओर से बताए गए स्केच को कोर्ट में पेश कर पाई.'' 

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हाइकोर्ट ने 29 मार्च, 2023 के अपने फैसले में भी एटीएस की कुछ ऐसी ही खामियों की तरफ ध्यान दिलाया है (देखें बॉक्स-अदालत ने एटीएस की जांच थ्योरी पर सवाल उठाए). 20 दिसंबर 2018 को जिन सबूतों के अभाव में शाहबाज को बरी किया गया था, कुछ वैसा ही दृश्य 29 मार्च को ट्रायल कोर्ट की ओर से मृत्युदंड और आजीवन कारावास के दोषी करार दिए गए आरोपी मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सरवर और मोहम्मद सलमान और सैफुर्रहमान के मामले में नजर आया.

सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आगे जो भी फैसला दे, उससे इतर हाइकोर्ट के ताजा फैसले से जांच ऐजेंसियों की कार्यप्रणाली पर कई सवालिया निशान लगे हैं और यह सभी के लिए खतरे की बात है.

अदालत ने एटीएस की जांच थ्योरी पर उठाए सवाल 

एटीएस ने बम धमाकों में इस्तेमाल साइकिलों को खरीदने के जो बिल बरामद किए थे, उन पर हाइकोर्ट ने कहा कि इन बिलों पर दर्ज नंबर और जब्त की गईं साइकिलों पर दर्ज नंबर अलग-अलग हैं 

एटीएस का दावा था कि 13 मई, 2008 को आरोपी दिल्ली से जयपुर आए. जालूपुरा स्थित करीम होटल पर खाना खाया और किशनपोल बाजार से साइकिलें खरीदीं. फिर उनमें बम प्लांट किए और शाम 4.30 से 5 बजे के बीच जयपुर रेलवे स्टेशन से शताब्दी एक्सप्रेस से दिल्ली लौट गए. अदालत का इस पर कहना था कि यह सब एक ही दिन में कैसे संभव है? एटीएस और सरकारी वकील आरोपियों के दिल्ली से जयपुर यात्रा करने के उनके नाम के टिकट पेश नहीं कर सके

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एटीएस ने बम में इस्तेमाल हुए छर्रे दिल्ली की जामा मस्जिद के पास से खरीदना बताया, लेकिन एटीएस-पुलिस ने जो छर्रे पेश किए उनकी और बम में इस्तेमाल हुए छर्रों की एफएसएल रिपोर्ट मेल नहीं खा सकीं 

हाइकोर्ट ने आरोपियों की शिनाख्ती परेड को गैर कानूनी बताया क्योंकि मजिस्ट्रेट और जांच अधिकारी एक ही समय में शिनाख्ती परेड के दौरान जेल में मौजूद थे. नियमों के मुताबिक, शिनाख्ती परेड के दौरान जांच अधिकारी (आइओ) जेल परिसर में मौजूद नहीं होना चाहिए 

 एटीएस ने जांच में यह दावा किया कि दिल्ली से दो न्यूज चैनलों को ईमेल और वीडियो मिले हैं जिनमें  इंडियन मुजाहिदीन ने ब्लास्ट की जिम्मेदारी ली थी. एटीएस ये ईमेल अदालत के सामने पेश नहीं कर सकी. साथ ही जिन लोगों ने दावा किया था कि उनके न्यूज चैनल में ईमेल आया है, उन्हें कोर्ट में एग्जामिन नहीं कराया गया 

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