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करीब दो दशक तक मध्य प्रदेश और गुजरात के बीच चली कानूनी लड़ाई के बाद बब्बर शेरों को गिर से कूनो पालपुर अभयारण्य लाने का रास्ता साफ हुआ. लेकिन तुरंत ही दूसरे सवाल उठ खड़े हुए हैं. खास तौर पर शेरों की सुरक्षा का मामला. राजस्थान के रणथंभौर से आने वाले बाघों ने भी वन्य प्राणी विशेषज्ञों की चिंता बढ़ाई है क्योंकि इससे शेर और बाघ में टकराव की नौबत पैदा हो सकती है.
कूनो पालपुर अभयारण्य मध्य प्रदेश के सीमावर्ती जिले श्योपुर में पड़ता है. राजस्थान के रणथंभौर वाले सवाई माधोपुर जिले और इसके बीच बस चंबल नदी का फासला है. कूनो का बफर एरिया 900 वर्ग किमी और कोर एरिया 344 वर्ग किमी है. इसके रेस्ट हाउस पर एक बड़ा होर्डिंग लगा है, जिस पर शेरों के चित्र के साथ अंग्रेजी में लिखा है ''स्टिल वेटिंग फॉर न्यू बिगिनिंग'' यानी एक नई शुरुआत का अब भी है इंतजार. यहां शेरों की असल तस्वीर लगने में अभी कुछ महीनों का समय बाकी है लेकिन चुनौतियों पर माथापच्ची शुरू हो गई है.
मध्य प्रदेश के बाघ अभयारण्य और संरक्षित वन इलाकों में शिकारी बड़े पैमाने पर सक्रिय रहे हैं. पिछले वर्ष प्रदेश में 13 बाघों की मौत हुई. हालांकि वन विभाग मानता है कि शिकार इनमें से तीन का ही हुआ है बाकीबाघ बीमारी, दुर्घटना और आपसी लड़ाई में मारे गए. सुरक्षा फिर भी बड़ी चिंता है क्योंकि कूनो पालपुर अभयारण्य शिकारियों की नजर से छिपा नहीं है. पिछले साल जून में देहरादून स्थित वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञ जब कूनो में तेंदुओं की गिनती कर रहे थे, तो उनके छह कैमरे चोरी हो गए थे, जो अब तक नहीं मिले. विशेषज्ञों की राय में शिकारियों का नेटवर्क तेंदुओं की असल संख्या ही सामने नहीं आने देना चाहता. कूनो-पालपुर से लगे जंगलों में पिछले माह ही दो शिकारियों को चिंकारा और दूसरे वन्य प्राणियों के मांस के साथ पकड़ा गया था. पिछले एक साल में ही अभयारण्य और आसपास शिकार के आधा दर्जन मामले सामने आए हैं.
उधर रणथंभौर के तीन बाघ पिछले दो वर्षों से मध्य प्रदेश की सीमा में हैं. इसके अलावा एक छोटा बाघ (करीब ढाई साल का) रणथंभौर से पिछले महीने इधर आ गया और इस समय ग्वालियर के पास दतिया जिले के सेंवढ़ा के जंगलों में घूम रहा है. बाघों की यह स्वाभाविक आवाजाही है, लेकिन रणथंभौर के फील्ड अफसर वाइ.के. साहू की राय में, बब्बर शेरों के दूसरे घर कूनो पालपुर में ''अगर बाघ भी आकर रहने लगे तो टकराव संभव है. कारण: शेरों और बाघों का भोजन एक ही है. एक ही क्षेत्र और भोजन इसका मुख्य कारण है. ''
कूनो पालपुर अभयारण्य पर शोध करने वाले फैयाज खुदसर वैसे मानते हैं कि यहां सुरक्षा इंतजाम अच्छे हैं पर इन्हें बहुत अच्छा करने की जरूरत है. ''एक जंगल में शेरों के साथ एक-दो बाघों का रहना ज्यादा गंभीर समस्या नहीं है. अभी ऐसा कोई शोध सामने नहीं आया है, जिसमें यह साबित हो. करीब एक सदी पहले मध्य भारत के जंगलों में शेरों के रहने के प्रमाण मिले हैं, इसलिए ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं. ''
प्रदेश सरकार भी शेरों के आने को लेकर उत्साहित है. वन मंत्री सरताज सिंह कहते हैं, ''कूनो पालपुर अभयारण्य को सिंहों के लिए अच्छी तरह तैयार किया गया है. सुरक्षा व्यवस्था भी मुकम्मल ही रहेगी. यहां सुरक्षा स्टाफ संख्या में कम है पर कोई समस्या आई तो उसका अध्ययन कर पूरे प्रबंध किए जाएंगे. '' प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) सुहास कुमार यहां तैयारियों के बारे में बताते हैं, ''कूनो में अफ्रीका से चीता लाने का निर्णय लिया गया था. अब सिंहों को लाने से पहले हर पहलू से उसे दुरुस्त करेंगे.''
बहरहाल कूनो अभयारण्य में शेर की दहाड़ सुनने में अभी समय है. इसके पहले कई प्रभावी कदम उठाए जाने हैं. पहले तो शिकारियों की निगाह से इसे दूर रखना होगा. गिर से आने वाले शेरों पर भी लगातार निगरानी रखनी होगी. एक नाकाम मिसाल सामने है ही. 1957 में उत्तर प्रदेश के चंद्रप्रभा अभयारण्य में तीन शेरों को रखा गया था पर वे आसपास के गांवों के मवेशियों को ही मारने लगे, जिससे उन्हें मारना पड़ा. सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर रणनीति बनानी होगी. इसमें घास के मैदानों और पानी का उचित प्रबंधन भी शामिल है क्योंकि यह एशियाई शेरों के अलावा दूसरे प्राणियों की भी जीवन रेखा है.